रिव्यू- प्रेमरंग के राग सुनाती ‘मल्हार’
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अव्वल तो हिंदी सिनेमा में ऐसी प्यारी फ़िल्में आपने आखरी बार कब देखी होगी आपको शायद ही याद हो। अगर लम्बे समय से प्रेम, बालपन, स्त्री पुरुष प्रेम भाव, गंगा-जमुनी तहजीब वाली फ़िल्म न देखी हो तो कल रिलीज होने वाली हिंदी और मराठी में आई इस फ़िल्म को अवश्य देखिएगा। और महसूस कीजिएगा कि आखिर किस तरह प्रेमरंग के राग सुनाती ‘मल्हार’ सिनेमाघरों में अपनी ख़ुशबू से रंग बिखेर रही है।
‘मल्हार’ की कहानी में तीन कहानियाँ हैं। दो छोटे बच्चों की दोस्ती की, उनके जीवन की छोटी-छोटी समस्याओं की और उनसे पार पाते इनकी कोशिशों की। दूसरी कहानी है एक युवा प्रेमी जोड़े की जिसमें लड़का हिन्दू है और लड़की मुस्लिम। तीसरी कहानी है एक ऐसी नवविवाहिता औरत की जो बच्चा न हो पाने के कारण ताने सुन रही है परिवार से। पहली कहानी में एक बच्चा जिसे कान से ठीक से सुनाई नहीं देता, उसकी मशीन एक दिन पानी में नहाते समय खराब हो गई अब वे दोनों दोस्त क्या इसे ठीक कर पाएंगे? या कुछ जादू होगा उसके साथ? दूसरी तरफ मुस्लिम लड़की का इश्क क्या हिन्दू लड़के से परवान चढ़ सकेगा? और तीसरी महिला की कहानी में क्या वह बच्चे होने का सुख देख सकेगी? क्या वही बाँझ हैं या कुछ और समस्या है उसके जीवन में।
कहानी, पटकथा, निर्देशन,संवादों के लिहाज से यह फ़िल्म पूरे नंबर पाने की हकदार है। साउंड और बतौर सहायक निर्देशक रह चुके ‘विशाल कुम्भर’ के निर्देशन से निकला यह पहला तीर सही निशाने पर जा लगा है। स्वप्निल सीताराम, सिद्धार्थ साल्वी के साथ मिलकर विशाल कुम्भर ने इस फ़िल्म को लेखन और पटकथा के सहारे जो मांजा है वह दर्शाता है कि विशाल इस सिनेमाई दुनिया में लम्बी रेस का घोड़ा बनने का पूरा माद्दा रखते हैं। कहानी में जहाँ हिंदी में संवाद होने चाहिए, जहाँ मारवाड़ी होने चाहिए, जहाँ अंग्रेजी होने चाहिए और जहाँ हिंदी होने चाहिए उन सभी का मिश्रण भरपूर तरह से संतुलित है।
सारंग कुलकर्णी, टी सतीश के म्यूजिक, ए. कुमार के सम्पादन, गणेश कांबले के छायांकन और प्रफुल्ल प्रसाद के इस फ़िल्म पर लगाये गये बजट से आप पूरी तरह संतुष्ट होते हैं। ऐसी फ़िल्मों के निर्देशन के लिए उनके निर्माता भी उतनी ही तारीफों के काबिल गिने जाने चाहिए। तीन कहानियों में तीन सुंदर गानों का मिश्रण और फिर रवि झांकल, शारिब हाशमी, श्रीनिवास पोकले, विनायक पोटदार, अंजली पाटिल, शुभांगी भुजबल, ऋषि सक्सैना, मोहम्मद समद, अक्षता आचार्य, श्रुति घोलप, कंचन पगारे, माहेश्वरी चैतन्य, बिंदा रावल, रजिया बी आदि सभी के मंझे हुए अभिनय से यह फ़िल्म हर एंगल से प्रेमरंग की, बालमन की, स्त्री की पीड़ाओं के आख्यानों की, पुरुषों के भीतरी द्वंद्व की ‘मल्हार’ (Malhar) छेड़ती है।
कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों में सराही जा चुकी इस फ़िल्म को फेस्टिवल सिनेमा या एकबारगी बच्चों की नजर का सिनेमा समझकर न देखने की भूल मत कीजिएगा। ऐसी फ़िल्में आपको कुछ सिखाती हैं, कुछ पढ़ाती हैं, कुछ बताती हैं और हमेशा के लिए अपनी छाप भी आपके जेहन में छोड़ जाती हैं। फिर न कहना कि आप हमें बताते नहीं ऐसी अच्छी फ़िल्में कब आकर चली गईं और आप देखने से चूक गए। ऐसी फ़िल्मों के मन-भावन गीत-संगीत और लोक से जुड़ी कहानियाँ जितनी सराही जायेंगी उतना अधिक सिनेमा में आपके-हमारे आस-पास की लोक संस्कृति मल्हार बहेगी।
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