इंटरव्यू

 रे जीतना तो था ही ‘संगीता देवी’

‘हरियाणा’ फिल्म में ममतामयी ताई की भूमिका में नजर आने वाली संगीता देवी का जीवन किसी के लिए भी प्रेरणादायक हो सकता है। अन्यायी, शादी के लड्डू, स्कैम, चंद्रो का चूल्हा, गौरव की स्वीटी, ओपरी पराई, जिद, वारिस, रांडा रामफल, खच्चर, तीसरी छोरी, मैं भी सरपंच, कुड़ी हरियाणे वल दी जैसी चार दर्जन से अधिक हरियाणवी और बॉलीवुड फिल्मों, वेब सीरीज और कई विज्ञापनों और गानों में अपने दमदार किरदारों और अभिनय से पहचान बनाने वाली संगीता देवी से हुई अंतरंग बातचीत आज लेकर आया है- गंगानगर वाला

 रे जीतना तो था ही ‘संगीता देवी’
रे जीतना तो था ही ‘संगीता देवी’

हरियाणा के भिवानी जिले के छोटे से गाँव बामला में जन्म लेने वाली संगीता देवी पेशे से कला अध्यापिका अवश्य हैं लेकिन साथ ही पिछले कई वर्षों से हरियाणवी सिनेमा जगत में अपने बेहतरीन अभिनय के लिए भी खासी चर्चित हैं। संगीता ने स्कूली शिक्षा अपने गांव के सरकारी स्कूल से ही पाई। किन्तु बेहद कम उम्र में और मात्र दसवीं क्लास में ब्याह दी गईं  संगीता की पढ़ाई में भी उस समय काफी बाधाएँ आईं।

 

संगीता देवी बताती हैं कि उनके पति परिवहन विभाग में परिचालक थे किन्तु जब किन्हीं कारणों से वे परिचालक नहीं रहे तभी उन्होंने फिर से पढ़ाई करने की ठानी और घर से ही पढ़ते हुए बारहवीं क्लास पास हुईं। फिर क्या था संगीता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और कॉलेज पूरा करते हुए वे आज कला अध्यापिका के रूप में हरियाणा सरकार में सेवाएं दे रहीं हैं।

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काफी छोटी उम्र में ब्याह दी जाने वाली लड़कियां ऐसा कम ही होता है कि वे आगे बढ़ पायें। उस समय में संगीता ने अन्य ऐसी महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनने का काम किया है। बतौर अध्यापिका संगीता स्कूल में ही बच्चों को रंगमंच हेतु तैयार कर रही हैं और उन्हें नृत्य कलाओं में भी पारंगत बना रही हैं। इसके अतिरिक्त वे गीत, कविताओं, चित्रकारी,  मिट्टी के खिलौने आदि जैसे क्राफ्ट पर भी काम कर रहीं हैं ताकि उन ग्रामीण बच्चों को भविष्य में कोई स्वयं का रोजगार करने में मुश्किलें ना हों। इस दौरान कई विश्व कीर्तिमान भी उनके पढ़ाये, लिखाए छात्रों ने बनाये जिनमें बतौर मार्गदर्शक के रूप में  संगीता देवी की मुख्य भूमिका रही।

जब वे नेशनल आर्ट एंड क्राफ्ट म्यूजियम दिल्ली में बतौर गेस्ट ऑफ़ ऑनर प्रस्तुत हुईं तो उसके बाद से ही उन्हें फिल्मों के लिए भी ऑफर्स आने लगे। कुछ समय तक संगीता ने इनसे दूरी बनाये रखीं किन्तु वे कहती हैं कि फिर जब मैंने सोचा तो पाया कि संभवत इस क्षेत्र में मेरे लिए काफी संभावनाएं हो सकती हैं। लिहाजा अब तक जो बतौर अध्यापिका स्कूल में बच्चों को प्रशिक्षण वे दे रहीं थीं उससे ही उन्होंने अपने लिए रास्ते बनाने आरम्भ कर दिए। हालांकि संगीता देवी बताती हैं कि उन्होंने रंगमंच का कोई विधिवत प्रशिक्षण नहीं लिया अपितु वे स्कूली जीवन में अवश्य इन गतिविधियों में हिस्सा लेती थीं।

 रे जीतना तो था ही ‘संगीता देवी’
रे जीतना तो था ही ‘संगीता देवी’

पहली बार किस फिल्म में कास्ट हुई? सवाल के जवाब में संगीता देवी कहती हैं कि- हरियाणवी फिल्म जिस समय ‘सोलह दूनी आठ’ के नाम से बन रही थी, जो बाद में ‘हरियाणा’ नाम से रिलीज हुई। तब उसके ऑडिशन के लिए रघुविंदर जी ने विशेष तौर पर उन्हें फोन कर और उनके कुछ स्कूली छात्रों को फिल्म के लिए कास्ट किया। इस फिल्म में संगीता देवी ने एक ऐसी ताई का किरदार निभाया जिसके अपने बच्चे नहीं हैं और जिन बच्चों को वह अपना मानती हैं उनके माँ-बाप नहीं है। एक ममता से भरी हुई माँ के रूप में संगीता देवी ताई के किरदार में खासी सराही गईं। इस फिल्म के एक सीन में जब संगीता कहती हैं- रे जीतना तो था ही, तो मानों वे अपने लिए भी यही कहलवाना चाह रही हों जिंदगी से।

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अब संगीता देवी खुद से भी निर्देशन करने की इच्छुक हैं किन्तु वे बिना कोई पूर्व तैयारी किये निर्देशन के क्षेत्र में नहीं आना चाहतीं। वे कहती हैं मैं जब भी निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखूंगी तो वह मजबूत कदम ही होगा। इसके अलावा वे बताती हैं- हाल में रिलीज हुई फिल्म ‘कूडी हरियाणे वल दी’ में काम करके सबसे अधिक आनंदित होने का अवसर मिला। वे कहती हैं इस फिल्म के बहाने से वे पंजाबी संस्कृति को भी काफ़ी करीब से जानने का अवसर मिला।

वे जल्द ही हरियाणवी ओटीटी स्टेज एप्प पर छापा, अग्निवीर और चौपाल ओटीटी पर कच्छाधारी, जालिमपुर आदि फिल्मों और वेब सीरीज में नजर आने वाली हैं। एक सवाल के जवाब में वे कहती हैं अगर मैं एक्टर्स न होती तो जो अभी हूँ वही होती। वे कहती हैं कि मेरा सपना रहा है कि समाज मुझे जाने तो एक शिक्षिका के रूप में या फिर अभिनेत्री के रूप में। अगर यह सब भी न हुआ होता तो मैं अवश्य ही सेना में जाकर देश की सेवा कर रही होती। आने वाले दस सालों में संगीता अपने को कहाँ देखना चाहती हैं? सवाल के जवाब में वे कहती हैं कि भविष्य का किसी को कुछ कहा नहीं जा सकता। जब तक सब सही चल रहा है चलता रहेगा। आत्मनिर्भर होकर अपना काम करते रहना ही वे पसंद करती हैं। संगीता गीत, कविताएँ इत्यादि लिखने में भी खासी दिलचस्पी रखती हैं जिन्हें वे निकट भविष्य में आम जन के लिए उपलब्ध करने की भी इच्छुक नजर आती हैं।

 रे जीतना तो था ही ‘संगीता देवी’
रे जीतना तो था ही ‘संगीता देवी’

वे संजय लीला भंसाली, इम्तियाज अली, सुभाष घई के निर्देशन को ख़ास तौर पर पसंद करती हैं। वहीं बतौर अभिनेता-अभिनेत्रियों में गोविंदा, नाना पाटेकर, नवाजुद्दीन सिद्दकी, यशपाल शर्मा, रेखा, मंदाकिनी, निरूपा राय, सायरा बानो का अभिनय उन्हें खासा पसंद आता है। वहीं गायकी उन्हें लता मंगेशकर, रफ़ी साहब, महमूद साहब, आशा भोंसले भाती है। अपने खुद के कास्ट होने को लेकर वे कहती हैं कि- मैं कास्टिंग से पहले कोई खास तैयारी तो नहीं करती। बस केवल स्क्रिप्ट अपने मुताबिक़ मिलती है तभी काम करना पसंद करती हैं। हालांकि वे यह भी कहती हैं कि मुझे ऑडिशन के ऑफर्स कम ही आते हैं क्योंकि जिन्होंने मेरा काम देख रखा होता है वे मुझे बिना किसी ऑडिशन के ही कास्ट कर लेते हैं।

 

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