हमारे भीतर के रावण का कब दहन होगा!
जयपुर
हमारे देश में बरसों से राम-रावण की कहानी सुनाई जा रही है। त्रेतायुग में घटी इस अविस्मरणीय घटना के बरसों बाद रावण को जलाने की प्रथा आरम्भ हुई। रावण को पहली बार कब जलाया गया इसके बारे में कोई पुष्ट और सटीक प्रमाण तो नहीं मिलता। लेकिन कई जगहों पर जिक्र जरुर मिलता है कि दिल्ली के सुभाष नगर के करीब तथा झारखंड के रांची शहर में सबसे पहले रावण जलाया गया। इसके अलावा भी कई जगहों के नाम लिए जाते हैं। लेकिन हजारों साल पहले की इस घटना के बाद आज भी रावण जलाया जा रहा है तो इसके पीछे कोई तो कारण होगा। अब आप कहेंगे ये भी भला क्या बात हुई! कारण तो सबको मालूम है।
लेकिन धीरे-धीरे वक्त बदल रहा है। अब आपमें ही बड़े शहरों में रहते हुए रावण को खरीदकर घर लाने और उसे अपने मोहल्लों में जलाकर मारने का चस्का भी बढ़ता जा रहा है। रावण को यूँ घरों में खरीदकर ले आना ही तो पर्याप्त नहीं? क्या हमने और आपने कभी विचार किया कि हमारे भीतर जो रावण द्वेष, वैमनस्य, काम-क्रोध, छल-कपट, माया-मोह और असत्य के रूप में घर कर गया है, बल्कि भीतर दुबक गया है उसे आखिर हम क्यों नहीं जलाकर खत्म कर पा रहे? अपितु यह वाला रावण तो उस वाले रावण से भी ज्यादा खतरनाक है।
जयपुर जैसे शहर में भी चौक-चौराहों पर रावण बनाकर हर साल बेचे जाते हैं। जिन्हें आप लोग चंद मिनटों की ख़ुशी के लिए खरीद कर घर ले आते हैं और फिर खूब गर्वित महसूस करते हुए उसका दहन करते हैं। सोसाइटी आपकी प्रतिष्ठा और एश्वर्य पर रश्क करने लगती है। आप अपने उस ऐश्वर्य के मद में चूर होकर ख़ुशी के नाम पर त्यौहार मना रहे होते हैं लेकिन आपके भीतर कब रावण प्रवेश कर गया इस बात का आपको भान नहीं होता। त्रेतायुग और उससे भी पहले सतयुग के समय में इस प्रकृति में जो सत्वगुण मौजूद था वह अब कहीं खत्म सा हो गया है। इसलिए तो प्राचीन काल में ऋषियों ने अनुभव किया था कि इस ब्रह्मांड में एक दिव्य नाद बराबर केन्द्रित हो रहा है। उस नाद में सभी स्वर एवं सभी भाव समाए हुए हैं। नाद में, संगीत में प्राणियों के अंदर भाव संवेदना जगाने की क्षमता है। जीवन की संवेदनाएँ सूख जाने पर जीवन नीरस हो जाता है। यदि संवेदनाएँ जाग जाएँ तो मनुष्य और मनुष्य के बीच, मनुष्य और भगवान के बीच दिव्य आदान प्रदान शुरू हो जाता है। यही नाद जब पहली बार शिव के डमरू से निकला, जिसे संस्कृत साहित्य में माहेश्वर सूत्र कहा गया। तब संस्कृत के ही पहले आचार्य पाणिनि ने इन सूत्रों को आधार बनाकर अष्टाध्यायी की रचना की।
अब वही शिव और उसका वही प्रकांड पंडित तथा बलशाली भक्त रावण वर्षों से जलाया जा रहा है। इस देश-दुनिया में कई प्रकांड पंडित हुए। जिनमें से एक ऋषि विश्रवा तथा कैकसी माता की ब्राह्मणी संतान रावण भी थे। शांडिल्य गोत्र में उत्पन्न रावण प्रकांड पंडित होने के साथ ही चारों वेदों के ज्ञाता भी थे। दशानन कहे जाने वाले रावण को लंका देश के राजा होने के कारण लंकेश या लंकाधिपति भी कहा गया। लेकिन आज जहाँ उत्तर भारत में बड़े धूमधाम से रावण जलाया जा रहा है वहीं इसी देश के कई हिस्सों में इस प्रकांड पंडित के पुतले को फूंका नहीं जाता। अपितु उसका तर्पण अथवा श्राद्ध किया जाता है, पितृ मानकर।
विश्रवा की दूसरी पत्नी कैकसी से रावण का जन्म हुआ। पुराणों एवं मिथकों के अनुसार ही राक्षसों के वंश को बढ़ाने के लिए कैकसी ने विश्रवा ऋषि से विवाह किया। लिहाजा कह सकते हैं रावण ऋषि-मुनियों के कुल से थे। उनके प्रपितामह यानी परदादा जी संसार के रचियता भी कहलाये। जिन्हें दुनिया ब्रह्मा के नाम से जानती है, के पुत्र महर्षि पुलस्त्य दादा थे और उनकी पत्नी हविर्भुवा दादी। खर, दूषण, कुम्भकर्ण, विभीषण, अहिरावण आदि रावण के सगे भ्राता थे और भाई कुबेर तथा शूर्पनखा, कुम्भिनी आदि उनके सौतेले भाई बंधु थे।
कुबेर को जो लंका विष्णु, संसार के पालनकर्ता ने दी उसे ही छीन कर रावण लंकाधिपति कहलाया। दूसरी ओर एक कथा यह भी प्रचलित है कि रावण ने एक बार भगवान शिव के साथ छल किया और उस छल में उन्होंने दक्षिणा स्वरूप शिव से सोने का महल माँग लिया। आगे चलकर माँ पार्वती ने शिव से सोने के महल की माँग की तो कुबेर से एक सोने के महल का निर्माण करवाया। रावण इस महल पर मोहित हो गया और उसे हासिल करने की तिकडम बैठाने लगा। रावण ने एक योजना बनाई और उस योजना में उसने ब्राह्मण का वेश धारण किया और शिव के समक्ष प्रकट हुआ। शिव उस ब्रामण को पहचान नहीं पाए और सोने की लंका को दक्षिणा में रावण को भेंट कर दी। रावण को विचार हुआ कि यह महल को माँ पार्वती की इच्छा पर बना है। उनके बिना कैसा महल ? तब रावण ने शिव से पार्वती को ही माँग लिया। शिव बैठे भोले बाबा, भोले भंडारी उन्होंने यह माँग भी पूरी कर दी।
आज का सिनेमाई गाना माँग में भरो की तर्ज पर। शिव ने पार्वती से कहा की त्रेतायुग में वे वानर के रूप में वहाँ आएंगे और सम्पूर्ण लंका को भस्म कर पार्वती को वहाँ से छुड़ा लेंगे। रावण का साम्राज्य इतना विस्तृत था कि उसकी कल्पना भी सम्भव नहीं। इस तरह के कई अन्य प्रसंग और भी हैं। जिनमें सुंबा और बाली द्वीप को जीतते हुए अंगद्वीप, मलय द्वीप, वराह द्वीप, शंख द्वीप आदि कई द्वीपों पर उसने अपना परचम लहराया। रावणैला गुफा, रावण का महल अशोक वाटिका, रावण के विमान और चार एयरपोर्ट क्रमश: उसानगोड़ा, गुरुलोपोथा, तोतूपोलाकंदा, वारियापोला आदि। रावण का झरना रावण का तकरीबन 7 हजार 90 साल पुराना शव जिसे नासा ने भी पुष्टि प्रदान की है। रामसेतु आदि ऐसे कई चिन्ह खोज और अनुसंधान तथा अनेक रिसर्च तथा शोधों से प्राप्त हुए हैं कि जिनको देखने के बाद इन मिथकों पर यकीन करना लाजमी हो जाता है।
रामायण के हर 1000 श्लोक के बाद आने वाले पहले अक्षर से गायत्री मन्त्र का बनना। राम और उनके भाईयों के अलावा राजा दशरथ की एक शांता नाम की पुत्री। शेषनाग के अवतार राम के भ्राता लक्ष्मण जिन्हें गुदाकेश के नाम से भी जाना जाता है। पिनाक नाम धनुष की प्रत्यंचा केवल मर्यादा पुरुषोत्तम राम के हाथों चढ़ाई जाना। रावण का एक उच्च कोटि के विद्वान होने के साथ-साथ उत्कृष्ट वीणा वादक होना तथा नासा द्वारा भी इन सबकी पुष्टि हमारी आस्था को और चरमोत्कर्ष के शिखर पर पहुँचा देती है।
किन्तु भक्ति के इसी चरमोत्कर्ष में क्या हमने कभी सोचा है कि आज के समय में हम कितना अधिक दिखावा करते हैं। भक्ति के नाम पर रावण के पुतलों में विस्फोटक पदार्थ डालकर उसे जलाना और मनोरंजन करके घर लौट आना ही अब हमारा मूल केंद्र रह गया है। रावण ने जिस तांडव स्त्रोत की रचना भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए की उसे फिल्मों में मनोरंजन के रूप में इस्तेमाल करके दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचाना ही हमारा मकसद रह गया है। हाल में आई आदिपुरुष इसका सटीक उदाहरण है।
लेकिन वर्तमान में हमारे आस-पास इतने रावण मौजूद हैं कि हर रोज यदि दशहरा बनाया जाए और एक दिन पुतले को फूंकने के बजाए उन्हें फूंका जाए तो यह धरती पुन: राम का सतयुग बन सकती है। और सत युगे चंडी, द्वापरे द्रौपदी की संकल्पना फिर से साकार हो सकती है। वैसे किसी ने ठीक ही कहा है छोटी सोच और पैर की मोच आदमी को कभी आगे नहीं बढ़ने देती। आज हमें जरूरत है अपनी सोच को बड़ा करने की और पैर की मोच उस अच्छी सोच के चलते स्वत: ठीक होती चली जाएगी। क्योंकि मनुष्य अपने कर्मों से महान बनता है। रावण भी इसीलिए पूजनीय है, वन्दनीय है साथ ही वह कई जगहों पर मिथक कही जाने वाली गाथा रामायण के एक प्रमुख प्रसंग के रूप में है कि – जब राम रावण का युद्ध होता है और रावण मारा जाता है तब राम लक्ष्मण से कहते हैं कि जाओ लक्ष्मण और रावण से दिव्य ज्ञान प्राप्त करो। इसलिए महान हुतात्माओं को सदैव अच्छे रूपों में याद किया जाता रहना चाहिए।
इसलिए यह अच्छा है कि आप रावण दहन कर रहे हैं। रावण को घर में खरीदकर ला रहे हैं। अच्छा है कि आप अपने मद में, ऐश्वर्य में चूर हैं, अच्छा है कि आप कामी हैं, पापी हैं, दुष्ट हैं, दुराचारी हैं, बलात्कारी हैं, मोह में ग्रसित हैं, अध्यात्म से कोसों दूर हैं, दिखावे के करीब रहकर आप भी रावण रुपी अपने आलिशान महलों में सूकून से जी रहे हैं। लेकिन फिर दूसरी ओर आपको ही देश और दुनिया के हालातों पर, अपने घरों में यदा कदा आने वाले मुश्किल पलों में राम को याद करने की जरूरत क्यों है? आप दिखावे के लिए रामत्व का चोला ओढ़कर रावणत्व सा व्यवहार कर रहे हैं तो यह त्रेतायुग के रावण से भी अधिक खतरनाक है। लेकिन अरबों की संख्या में जो सात्विक बुद्धि के राम रुपी प्रतीक जो मनुष्य बचे हैं उन्हें असल में दशहरे की आप सभी को शुभकामनाएँ। बुराई पर अच्छाई की जीत का यह त्यौहार मंगलकारी हो। इस उम्मीद के साथ की आपके भीतर भी रामत्व जगेगा और रावणत्व में कमी आएगी।
Is tarike se likha hai ki poora padhe bagair Pathak nahi reh paega 👌
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