अच्छा फिल्म एडिटर बनना है तो अच्छी समझ का होना जरुरी ‘मयूर महेश्वरी’
‘मयूर महेश्वरी’ राजस्थान के जयपुर में जन्में और यहाँ मिट्टी की सौंधी महक ने इन्हें सिनेमा के तकनीकी क्षेत्र में उतारा। वर्तमान में कई फिल्मों और वेब सीरीज के अलावा कई सरकारी और कॉर्पोरेट प्रोजेक्ट को अपनी एडिटिंग की कैंची से संवारा, सजाया है। आज के दौर में जब हर कोई सिनेमा के क्षेत्र में जाकर कलाकार, निर्देशक इत्यादि बन नाम, शोहरत कमाना चाहता है तो वहीं मयूर कहते हैं मैं शांति से अपना काम करने में विश्वास रखता हूँ और फिर अच्छा फिल्म एडिटर बनने के लिए अच्छी समझ का भी होना बहुत जरुरी है। आज गंगानगर वाला आपको उन्हीं ‘मयूर महेश्वरी’ से रूबरू करवाने आया है जिन्होंने ‘डिज्नी हॉट स्टार’ की ‘क्राइम नेक्स्ट डोर’ और फिर चर्चित राजस्थानी फिल्म ‘नानेरा’ को एडिट कर फिल्म एडिटिंग के क्षेत्र में बेहद कम समय में अपने उम्दा काम से जगह बनाई है।
सवाल – अपने जन्म और उसके बाद की कहानी बताएं।
मयूर महेश्वरी – जन्म हुआ जयपुर में और बचपन साधारण था और आज के दौर में भी उन्हें साधारण लाइफस्टाइल ही रुचती है। जमीन से जुड़े हुए हैं तो उसी तरह से हमेशा रहे भी हैं। जयपुर से बीकॉम ग्रैजुएट हुआ और फिल्म एंड टेलीविजन का कोर्स भी किया। लेकिन जहाँ से कोर्स किया वहाँ ज्यादा सुविधाएं नहीं थीं लिहाजा यूट्यूब पर वीडियो ट्यूटोरियल्स देख-देख कर एडिटिंग सीखी। साल 2014 में जब बीकॉम सेकंड ईयर में था तो एक कॉल सेंटर में जॉब की करीब डेढ़-पौने दो साल तक, वहां का अनुभव भी बेहद अच्छा रहा। हालांकि पढ़ाई और जॉब के बीच सब अच्छे से चल रहा था लेकिन बावजूद इसके मैंने अपने दिल की सुनी और फिल्म एडिटिंग के क्षेत्र में उतरने का फैसला किया। इन सबके बीच जीवन में सबसे अच्छा रहा कि जो मैं एक्चुअल में जो अचीव करना चाहता था उसे समय पर अचीव किया। जैसे एक बड़ी वेब सीरीज डिज्नी हॉट स्टार के लिए ‘क्राइम नेक्स्ट डोर’ एडिट की। उसके बाद मैं चाहता था कि एक फीचर फिल्म भी कर लूं तो 2021 के अंदर ही वह मौका दोबारा मिला और ‘नानेरा’ जैसी ऐतिहासिक बड़ी फिल्म का एसोसिएट डायरेक्टर और एडिटर बनने का मौका मिला। कड़वी यादों के रूप में भी जीवन में कुछ क्षण आये मसलन अपने करियर स्टार्ट होने से पहले कुछ गलतियाँ की जिनसे ठोकर खाकर संभला। ये कड़वी यादें भी इसलिए बनी क्योंकि मैं हमेशा से एक्सपेरिमेंट करने में बिलीव करता था। उसकी भी वजह यह रही की कुछ डिसाइड नहीं था करियर में करना क्या है? ग्रेजुएशन के बाद काफी सारी चीज करने की कोशिश की करियर के लिहाज से जैसे मुझे आर्मी में जाना है या मुझे अफसर बनना है। वह सब इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि पढ़ाई से रुचि खत्म सी हो गई थी। ये कड़वी यादें भी हमेशा स्थायी नहीं होती क्योंकि यही है जो आपको आगे जीवन में आने वाले बड़े धोखों से बचाकर रखती हैं। साथ ही यही यादें ही आपको समर्थ बनाती हैं और एक सही राह पर चलते रहने की दिशा प्रदान करती है।
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सवाल – फिल्म लाइन में कैसे आना हुआ?
मयूर महेश्वरी- हालांकि मुझे ग्रेजुएशन के समय से कुछ डिसाइड नहीं था कि क्या करना है। बस ऐसे ही कंपटीशन एग्जाम्स की तैयारी करता रहा। वह भी बस कोशिश मात्र थी जॉब के साथ-साथ आर्मी ऑफिसर्स, एसएससी इत्यादि की। आगे पढ़ाई भी करना चाहता था पर मन कहीं और ही अटका रहा काफी बाद में खुद को समझ पाया भीतर से की बचपन से ही मुझे अभिनय करने का बड़ा शौक है। हीरो-हीरोइन को देखना, अवॉर्ड शो देखना तब मुझे लगा कि क्यों न एक्टिंग से कोशिश की जाए। इंटरेस्ट भी था इसमें तो काफी खोजबीन और सोच समझ के साथ हमारे एक सीनियर जो हमें ताइक्वांडो, मार्शल आर्ट सिखाया करते थे वे ड्रैमेटिक्स से रिलेटेड थे। काफी कुछ प्ले भी उन्होंने किये थे और मंच इत्यादि की भी उनकी काफी जानकारी थी, उनसे संपर्क किया। फिर उन्होंने ही एक प्ले के दौरान जयपुर के सबसे बड़े रंगमंच ‘रविंद्र मंच’ से जोड़ा। जॉब से एक-दो घंटे का ब्रेक लेकर प्ले की प्रैक्टिस करना शुरू की। परिवार वालों को इस क्षेत्र को लेकर कई असंभावनाएं भी नजर आ रही थीं। मैं क्या करना चाहता हूं? कहीं गलत दिशा में आगे बढ़ रहा हूँ? जैसी बातें घर में होने लगीं और घर वालों से भी नाराजगी उठानी पड़ी। लेकिन जब ठान लिया की इसी क्षेत्र में कुछ करना है तो फिर प्ले किया। जब घरवालों, नाते-रिश्तेदारों, दोस्तों को इनवाइट किया प्ले देखने के लिए तो उन्होंने मेरे रोल को भी सराहा। एक किस्म का कॉन्फिडेंस आया। जॉब करते हुए मुझे इतना समय नहीं मिल पाया और ना ही इतनी परमिशन की लगातार थियेटर कर पाता। फिर भी मैं किसी तरह जुड़ा रहा साल भर तक मंच से। यहीं पर जब फिल्म मेकिंग को लेकर समझ बढ़ी तो सिनेमैटोग्राफी, एडिटिंग के बारे में अपनी समझ विकसित करने में लगा रहा। काफी रिसर्च के बाद एक यूनिवर्सिटी ज्वाइन की जहां पर यह कोर्स था। वहां से मैंने शॉर्ट फिल्म बनाना चालू की, कुछ लोग जुड़े तो उनके साथ कुछ फिल्में बनाई जिनमें रविंद्र मंच से जुड़े कुछ लोग थे जिनके साथ मिलकर पहले-पहल सिनेमैटोग्राफी की लेकिन एडिटिंग करने के लिए कोई नहीं होता था तो इसमें भी हाथ आजमाया। हालांकि शुरुआत में एडिटिंग से भी काफी कोफ़्त हुई क्योंकि मैं करना चाहता था निर्देशन ही। लेकिन जब पहली बार एडिटिंग की और उसे देख मेरी सीनियर्स टीम ने सबने तारीफ की तब लगा कि आपकी आंखों के सामने से एक फिल्म निकल रही है, जिसमें उसके शॉट, डायलॉग सही जगह कट होना सब ठीक से हुआ है तो समझ आया कि एडिटिंग में भी एक बहुत बड़ी पावर है जिसमें आप डिसीजन मेकर हो और कहानी की डोर आपके हाथ में है। तब मेरी रुचि धीरे-धीरे एडिटिंग की तरफ शिफ्ट हुई और मैं जुड़ता गया लोगों से।
सवाल – हर कोई एक्टर, निर्देशक बनना चाहता है लेकिन आप तकनीकी के क्षेत्र में आए कोई खास वजह?
मयूर महेश्वरी- एक्टिंग जब मैं सीख रहा था तो उस दौरान मुझे एक चीज समझ में आई कि एक्टिंग से रोजगार मिलना आसान बात नहीं है। फिर राजस्थान में रहना है वो भी जयपुर में तब जब उन दिनों सिनेमा के नाम पर कुछ नहीं बन रहा था। ऐसे में रोजगार का कोई साधन भी नहीं विशेष फिर एक्टिंग तो हमेशा से एक डिपेंडेंसी वाली फील्ड हो जाती इसलिए मैंने सोचा कि इसी लाइन से जुड़े रहना है तो कुछ ऐसा खोजा जाए जिससे एक रोजगार मिलता रहे और कहीं जरूरत पड़ी तो एक्टिंग भी जरुर की जायेगी। यह सोचकर मैं फिल्म मेकिंग की तरफ बढ़ने लगा और काफी सालों की प्रैक्टिस के बाद धीरे-धीरे एक्टिंग से ज्यादा अच्छा फिल्म बनाने लगा। फिल्म मेकिंग में आपके पास एक अथॉरिटी, एक पावर होती है जिसमें आप फैसला ले सकते हो, आप किसी को निर्देश दे सकते हो, आप एक फाइनल डिसीजन मेकर होते हो। मेरे पास कुछ लीडरशिप क्वालिटीज थी तो इस तरफ मेरा रूझान हुआ। निर्देशन भी किया है अभी बहुत ज्यादा नहीं लेकिन काफी फिल्मों में सहनिर्देशक अवश्य रहा हूँ। कुछ शॉर्ट फिल्मों में, और काफी सारे कमर्शियल प्रोजेक्ट को मैंने निर्देशित किया है। ज्यादा समय मेरा एडिटिंग में ही बीता उसी के जरिए मेरा रोजगार चलता है और उसी से मेरी पहचान भी बनी है। इतने सालों में एडिटिंग के जरिए ही मेरा डायरेक्शन भी और ज्यादा उभरा है।
सवाल- फिल्मों की एडिटिंग की दुनिया में बॉलीवुड और विदेशी फिल्मों के कौन से एडिटर आपको प्रभावित करते हैं?
मयूर महेश्वरी- सच बात तो यह है कि मैं किसी भी एडिटर को फॉलो नहीं कर रहा लेकिन दो-तीन लोग हैं फिल्मी दुनिया के जो बहुत अच्छे एडिटर हैं मसलन- आरती बजाज जो कि अनुराग कश्यप की फिल्मों की मुख्य एडिटर है। फैमिली मैन जैसी बड़ी सीरीज को एडिट करने वाले सुमित कोटियन। हालांकि मैं काम से प्रभावित होने के कारण उन लोगों को नहीं जानता हूं लेकिन मैंने उनका काम देखा है, जो बहुत उम्दा स्तर का था।
सवाल- फिल्मों और सीरीज के बीच आपने कुछ सरकारी व कमर्शियल प्रोजेक्ट्स भी किये इनमें से किसमें सबसे ज्यादा मजा आया?
मयूर महेश्वरी- सबसे ज्यादा मजा तो जो हमारी फिल्में और सीरीज होती हैं उन्हीं के अंदर आता है क्योंकि मैं करना भी वही चाहता हूं अधिकतर। बाकी सरकारी प्रोजेक्ट्स और कॉरपोरेट फिल्मों आदि में दिलचस्पी जरूर रहती है बशर्ते प्रोजेक्ट अच्छा हो। अंतत: ज्यादा झुकाव फिक्शन फिल्मों और वेब सीरीज की तरफ ही है।
सवाल- अच्छा एडिटर बनने के लिए क्या गुण होना चाहिए और क्या तकनीकी शिक्षा जरूरी है?
मयूर महेश्वरी- अच्छा एडिटर बनने के लिए एक अच्छी अंडरस्टैंडिंग या समझ का होना बहुत जरूरी है और वह किसी में जन्म के साथ ही आ जाती। जैसे इंसान सीखता जाता है वैसे ही खुद-ब-खुद बदलता जाता है। फिर जब आप किसी चीज का अभ्यास कर रहे हो जैसे कि फिल्म एडिटिंग का तो उसमें आप देखते हैं कि किस तरह से कट लगे हैं? कैसे काम हुआ है? फिर उससे एक कदम आगे बढ़कर आप अपने काम को लेकर आ रहे हो तो यह नहीं कहेंगे कि हूबहू कॉपी कर रहे हो आप। बस आप उस चीज को अप्लाई कर रहे हो लेकिन खुद के तरीके के साथ। इसी में अगर खुद को यह लग रहा है कि मैं एकदम सही हूं या कोई गलती नहीं कर रहा हूं तो मेरे ख्याल से आप अपने काम में बेहतर कर पा रहे हैं। फिर आपको अनुभवी लोगों के साथ में भी रहना चाहिए जो आपको समय-समय पर आपकी गलतियों के बारे में आपको बताते रहें इससे आपके अंदर इंप्रूवमेंट होगा। इसके लिए मैं जरुरी नहीं समझता कि किसी स्पेशल टेक्निकल डिग्री या एजुकेशन की बहुत जरूरत है। बल्कि सिनेमा का हरेक क्षेत्र ऐसा है जिसके अंदर डिग्री होना आवश्यक नहीं है। किसी स्कूल से आपको पढ़ना आवश्यक नहीं है। यह किताबी ज्ञान नहीं है, यह एक प्रैक्टिकल ज्ञान है। यहां पर काफी सारे बड़े फिल्मकार मिलेंगे, काफी बड़े एडिटर मिलेंगे, सिनेमैटोग्राफर मिलेंगे और अन्य तकनीकी लोग मिलेंगे जिन्होंने कोई कोर्स नहीं किया है इस चीज का और वह बहुत एक्सपर्ट है अपने काम। तकनीकी शिक्षा आपके ऊपर है अगर आपको लगता है आप उस शिक्षा को फंड कर सकते हैं, उसके लिए पैसा लगा सकते हैं तो एक बहुत अच्छे इंस्टिट्यूट में जाइए और वहां से आप तकनीकी शिक्षा हासिल कीजिए बेशक लेकिन आपको वहां पर भी खुद से अभ्यास तो करते रहना ही पड़ेगा। बाकी तो यूट्यूब खोलिए उसमें ज्ञान का भंडार है एक-से-एक तकनीकी लोग, एक-से-एक बड़े-बड़े फिल्मकार वहां पर फ्री में आपको सब चीज सीखते हैं। मैं भी वहीं से सीख के आगे बढ़ा हूं और मुझसे सीनियर लोग भी वहीं से सीख के आगे बढ़े हैं बस आपको बहुत ज्यादा अभ्यास की जरूरत होगी।
सवाल- ए.आई का जमाना फिल्मों की एडिटिंग को प्रभावित कर पाएगा?
मयूर महेश्वरी- ए आई एक बहुत अच्छी तकनीक है जो समय के साथ विकसित होती जा रही है। ए आई का हमेशा यही योगदान रहेगा कि वह आपके लिए एक सहायक के तौर पर काम कर सकती है। आपको कोई काम जल्दी करना है या खुद से नहीं करना तो उनमें ए आई सहायक रहेगा। यह आपका समय ही बचाएगा, हो सकता है आपकी लागत भी बचाए आने वाले समय में। लेकिन एडिटिंग में ए आई इतना ज्यादा इंटेलिजेंट या समझदार हो जाएगा कि कौन से सीन को कहां पर काटना है क्या डायलॉग कहां रखना है या स्टोरी लाइन कैसे बनानी है आदि वह कर पाएगा मुश्किल लगता है। क्योंकि रोबोट या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यह सब एडवांस्ड है जो हम इंसानों से काफी तेज गति में काम कर लेते हैं लेकिन यह यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि इनको बनाने वाला भी इंसान है, तो इंसान से बड़ा दिमाग या नॉलेज किसी के पास नहीं है। तो कुछ चीजों में बस यही सहायक ही रहेगा लेकिन मुझे नहीं लगता कि एडिटिंग ए आई कर पाएगा।
सवाल – 10 साल बाद अपने आप को कहां देखना चाहते हैं और कोई आगामी प्रोजेक्ट?
मयूर महेश्वरी- 10 साल बाद अपने आप को सच कहूं तो मुझे भी नहीं पता मैं कहां देखना चाहता हूं खुद को। क्योंकि मैं ऐसा कुछ प्लान करके नहीं चला कभी कि इतने सालों में यहां पर पहुंच जाऊं या वहां पहुंच जाऊं। इस तरीके से अपने आप को प्रेशर में या इमिटेशन के अंदर नहीं ले जाना चाहता, मैं बस यही चाहता हूं कि यह प्रयास चलता रहे अच्छे स्तर पर हम काम करते रहें और आगे बढ़ते रहें। हां बस यह जरूर चाहता हूं कि काम की गति थोड़ी और तेज होनी चाहिए। आगामी प्रोजेक्ट के लिए प्लानिंग तो चल ही रही है इस बीच हम काफी कमर्शियल प्रोजेक्ट्स कर रहे हैं और आगे के लिए कमर्शियल फिल्में भी प्लानमें है हमारी। तो जैसे ही कुछ ऑफिशियल होगा तब सबको पता चल ही जाएगा कि कब क्या आने वाला है।
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