सामान्य ज्ञान का सवाल हैं ‘पीयूष गोयल’ का नाम
पिछले दिनों लेखक पीयूष गोयल को जयपुर में सम्मानित किया गया था क्या थी ख़ास वजह? पढ़िए गंगानगर वाला यानी तेजस पूनियां से हुई उनकी अंतरंग बातचीत- सामान्य ज्ञान का सवाल है ‘पीयूष गोयल’ का नाम बातचीत कैसी लगी कमेन्ट में अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें….
पीयूष कुमार गोयल पिछले 27 साल से पेशे से यांत्रिक अभियंता हैं। वे अब तक 18 किताबें अलग-अलग ढंग से लिख चुके हैं, दुनिया की पहली किताब उन्होंने सुई से लिखी। फिर जब अलग-अलग ढंग से वे किताबें लिखने लगे तो इसी कड़ी में उन्होंने दर्पण शैली में भी किताबें लिखीं। साल 1967 में रविकांता गोयल और डॉ. देवेंद्र कुमार गोयल के एक मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुए पीयूष बचपन से ही कुछ अलग करना चाहते थे वे बताते हैं कि जब मैंने बहुत सारे प्रयास किए और असफल रहा तब भी हार नहीं मानी। वे कहते हैं कि- जो आदमी 999 बार फेल हो सकता है और दुनिया में नाम कर सकता है, जो 1018 बार फेल हो सकता है और दुनिया में नाम कर सकता है। तो मैं क्यों नहीं? पूरी दुनिया में सुई, कार्बन पेपर, मेहँदी, आयरन से हेमरिंग करके और दर्पण शैली में किताबें लिखने वाले पीयूष पहले ऐसे लेखक बने हैं।
आयरन हेमरिंग शैली में लिखी किताब के बारे में वे बताते हैं कि यह मैंने एलुमिनियम शीट पर कील से ठोक-ठोककर लिखी है। उनकी लिखी इन किताबों में से तीन किताबें वृन्दावन के एक म्यूजियम में भी रखी गईं हैं। यांत्रिक अभियंता से होते हुए इस तरह लिखने का कीड़ा उन्हें कहाँ से लगा इस बारे में बात करते हुए पीयूष कहते हैं- इसमें मेरे मित्रों का बहुत बड़ा हाथ रहा जब कई मित्रों ने उन्हें कहा कि तू कुछ कर सकता है तब वहीं से उनके जेहन में उल्टा लिखने की सूझी इसी उल्टे लिखने की कला ने उन्हें कई जगह सम्मानित भी करवाया। वे कहते हैं साल 2000 में हिंदी और अंग्रेजी दोनों में दर्पण शैली लिखनी सीख ली खुद से ही किन्तु उसके बाद एक दुर्घटना होने के चलते वे 2003 में मानसिक तनाव से घिर गये। मानसिक तनाव से उबरने के लिए उन्होंने गीता पढ़ी और उस श्रीमदभगवद्गीता ने उनकी जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया। सबसे पहली किताब भी उन्होंने दर्पण शैली में भगवद्गीता ही लिखी। वे कहते हैं कि यह एक ऐसा ग्रन्थ है जिसे हर किसी को पढ़ना ही चाहिए अगर वे अपनी जिंदगी को बदलकर सकारात्मक दिशा में ले जाना चाहते हैं तो।
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दर्पण शैली में उल्टी भगवद्गीता लिखने पर जब उनसे इसे पढ़ेगा कौन तो? सवाल किया गया तो वे कहते हैं वाल्मीकि जी ने मरा-मरा बोला किन्तु बाद में राम-राम निकला और उन्होंने पूरी रामायण लिख दी वो भी संस्कृत भाषा में। तो जब मरा-मरा बोलने से राम-राम निकल सकता है तो मेरा पूरी दुनिया को संदेश है कि सीधी नहीं तो उल्टी पढ़ लो मेरी लाइफ बदली है तो आपकी भी बदलनी ही चाहिए। अलग-अलग ढंग से किताबें लिखने के पीछे उन्हें प्रेरणा कहाँ से मिलती है, के जवाब में वे कहते हैं दी इसके पीछे सबसे पहली प्रेरणा तो यही है कि कुछ ऐसा काम करके जाओ कि दुनिया याद करे दूसरी बात बचपन में मैंने एक कहानी पढ़ी थी कि कौए ने कंकड़ डालकर पानी पी लिया था अगर पक्षी कंकड़ डालकर पानी पी सकता है तो पीयूष गोयल किताब क्यों नहीं लिख सकता भला?
मैथलीशरण गुप्त के लिखे- नर हो न निराश करो मन को कुछ काम करो, जग में रहकर कुछ नाम करो। रॉबर्ट फ्रॉस्ट के लिखे- आई हैव नाइल्स टू गो बिफोर स्लीप। और गीता यह तीन चीज उनकी जिंदगी में ऐसी हैं जो उन्हें प्रेरित करती रहती हैं। पीयूष अब तक ‘मधुशाला’, ‘गीतांजलि’, ‘पंचतंत्र’, ‘साईं बाबा के चरित्र’, ‘गणेश स्त्रोत’, ‘पीयूष वाणी’ नाम से कई किताबें अलग-अलग ढंग से लिख चुके हैं। हाल में उन्होंने रमेश पोखरियाल निशंक उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री की किताब ‘जीवन पथ में’ को दर्पण शैली में लिखा है। इसके बाद वे 19 वीं किताब ‘रश्मिरथी’ को रंगीन पेंसिल से लिख रहे हैं। क्योंकि मैं जो काम करता हूँ उल्टे ही करता हूँ। इसके अलावा अब उनके पास बहुत से लोग इस तरह कि शैली में लिखना सीखने भी आने लगे हैं। वे कहते हैं कि उल्टा लिखने का भी एक अलग फ़ायदा है वो यह कि ऐसा करने से आपके दिमाग में शार्पनेस आती है, कुछ क्रिएटिविटी जन्म लेती है। वे कहते हैं कि मैं हमेशा चार चीजों पर काम करता हूँ- ऑब्जर्वेशन, इमेजिनेशन, क्रिएशन और इनोवेशन।
पूरी दुनिया में इन चार चीजों पर काम हुआ है और जो इन चीजों पर काम करता है वह अवश्य ही कुछ नई चीजों का आविष्कार कर लेता है। तो मेरी सोच यह थी कि दुनिया में किसी ने उल्टा लिखा नहीं है तो लिख लो। क्या आपकी किताबें आपको नहीं लगता कि सिर्फ दिखावे के लिए म्यूजियम में रह जाएंगी और कहीं पाठ्यक्रम में शामिल नहीं हो पाएंगी? सवाल के जवाब में वे कहते हैं- निश्चित रूप से यह पाठ्यक्रम में शामिल नहीं हो पाएंगी। इधर गैलीलियो ने जो लिखा है वह मिरर इमेज में लिखा है गैलीलियो ने किसलिए लिखा? जहां तक मैं समझता हूँ, मैं अपना ओपिनियन दे रहा हूँ। उनका उद्देश्य क्या रहा? यह तो मैं नहीं जानता क्योंकि 500-600 साल पुरानी बात है। उन्होंने अपनी चीज को छुपाने की कोशिश की कि कोई इसको पढ़े ना। लेकिन मैंने अलग-अलग प्रयोग किए कम से कम मेरा यह काम लोगों को ऊर्जा अवश्य प्रदान करेगा ऐसा मैं मानता हूँ क्योंकि इस तरह का काम नहीं हुआ था दुनिया में अब तक। हाथ से भी किताबें लिखी जा सकती हैं, सुई से भी किताबें लिखी जा सकती हैं। मेंहदी की कोन से भी किताबें लिखी जा सकती हैं।
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मैं बस यही दिखाना और बताना चाहता था ऐसे करके कि हम हिंदुस्तानी हैं हम पीछे क्यों रहें? कुछ भी कर सकते हैं हम। फिर मेरा पहली किताब भगवद्गीता लिखने के पीछे यही उद्देश्य था कि मैं उसे बाई हुक और बाई क्रुक पूरा करूंगा। क्योंकि अगर मैं अधूरा छोड़ देता तो अध्यात्म की नजर से मुझे पाप लगता। लिहाजा सबसे पहले आध्यात्मिक किताब लिखने का उद्देश्य यही था जिससे मुझे ऊर्जा भी मिलती रही।
हाल के दिनों में प्रतयोगी परीक्षाओं में भी पूछा जाने लगा है कि दुनिया की पहली किताब कौन सी है जिसे सुई से लिखा गया। तो क्या कोई ऐसी फील्ड रह गई है जिस शैली में आपको अभी काम करना है? सवाल के जवाब में वे कहते हैं- यूँ तो बहुत सारी फील्ड हैं, मैं उनके लिए लगातार रिसर्च करता रहता हूँ। जैसे अभी रंगीन पेंसिल से लिखना शुरू किया है। मैं इसी खोज में लगा हूँ कि हर बार कोई नई चीज निकलकर आए। ठीक इसी तरह डॉट-डॉट, शैली या आयरन हेमरिंग शैली में समय भी बहुत अधिक लग रहा है। इसके साथ ही वे इन किताबों पी.डी.एफ में भी कन्वर्ट कर रहे हैं।
वहीं एक अन्य सवाल रमेश पोखरियाल निशंक की किताब को लिखने के पीछे की वजह बताते हुए पीयूष कहते हैं- जब उनके एक कार्यक्रम में मुझे निमंत्रण मिला तो उनके सलाहकार ने कहा कि ‘जीवन पथ में’ किताब को उल्टे ढंग से लिखिए। फिर वे एक सम्मानित आदमी हैं तो मैंने यही सोचा कि ‘एक पंथ दो काज’ हो जायेंगे ऐसे करके। यह किताब दर्पण शैली में लिखने के बाद उनसे मिलना हुआ और उन्होंने ने ही इसका विमोचन भी किया। निशंक के बाद में जो नई युवा पीढ़ी है या जो स्थापित रचनाकार हैं उनके बारे में भी आपने कुछ सोचा है? सवाल के जवाब में पीयूष कहते हैं- मैं आज 57 की उम्र में भी खुद को युवा ही समझता हूँ, मेरी पुस्तक है ‘पीयूष वाणी’ उसको मैं कई तरीके से लिख चुका हूँ। इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी जी कि ‘मेरी इक्क्यावन कविताएँ’ को मैंने मैजिक पैन से लिखा और उनसे हस्ताक्षर भी लिए।
इसके अलावा उन्होंने साधारण आम लेखक कि तरह भी करीब 10 किताबें लिखीं हैं- ‘गणित एक अध्ययन’, ‘इजी स्पेलिंग’। इजी स्पेलिंग के लिए वे कहते हैं मैंने करीब 7 महीने डिक्शनरी को स्टडी किया और उसमें पता लगाया कि डिक्शनरी में कितने ऐसे वर्ड हैं जिनमें एक भी वोवेल नहीं है, तो 23 वर्ड ऐसे हैं जिनमें पांचों वोवेल हैं। जबकि 34 वर्ड ऐसे हैं जिनमें एक भी वोवेल नहीं हैं। कुछ शब्द हमारे संस्कृत भाषा से लिए गए जैसे- ओथ वोट बन गया, एहम आई(I) बन गया, वयम् यू (You) बन गया, नीतिचर का नी हटा दो तो टीचर बन गया। अब हिंदुस्तानी भी कम नहीं है उन्होंने टेक्नोलॉजी बनाई हमने तकनीकी बना दी।
पीयूष वाणी क्या है? सवाल के जवाब में वे कहते हैं- उसमें मेरे थॉट्स है, मैं कविताओं पर काम नहीं करता हूँ मैं थॉट्स पर काम करता हूँ। जिन्हें आप सद्वाक्य भी कह सकते हैं। थॉट पर काम इसलिए करता हूँ क्योंकि वह प्रोडक्टिविटी पर काम करते हैं। तीन लाइन में, दो लाइन में लिखा क्योंकि आजकल किसके पास टाइम है। मोबाइल पर सब बैठे हुए हैं लेकिन किंडल को कोई पढ़ नहीं रहा मेरे ख्याल से। मैं समझता हूं कि ऐसे कोई नहीं पढ़ता क्योंकि या तो फिजिकल हो किताब या फिर व्यक्ति किताब पढ़ने का शौकीन हो। या फिर एक ब्रांड होगा, उसका लेखक होगा तो वह इस किताब पढ़ेगा। फिर आजकल के बच्चे अपने सिलेबस की किताब ही पढ़ नहीं रहे तो 300 पेज की 400 की किताब लिखकर क्या फायदा? पढ़ोगे तुम हो नहीं, बिकेगी नहीं तो फायदा है नहीं। लिहाजा प्रोडक्टिविटी पर काम करो दो-तीन वाक्य लिखो और ऐसे लिखोगे तो पढने वाले के दिमाग पर वे हिट करेंगे। जैसे-
“सबसे पहले पूरी दुनिया नतीजों को सलाम करती है, प्रयास करने वालों की कभी हार नहीं होती है।” “सपने आपके अपने और आप अपनों के अपने, आप अपने सपने पूरे कर लो क्योंकि आपके सपनों में आपके मम्मी पापा के सपने छिपे हुए हैं।”, “यह जिंदगी मिलेगी न दोबारा, उन सपनों को दिल से लगा लो और दिमाग से पूरा कर लो”, “जो करते हैं मम्मी-पापा से प्यार वो नहीं करते हैं मेहनत से इंकार”, “फल की इच्छा रखने वाले फूल नहीं तोड़ते हैं, दोस्त याद रखना जिंदगी को जीना है तो जीने चढ़ने पड़ेंगे”, तीन चीजें याद रखना नीति, नियम और नियत, अगर काम करने की नियत है तो सफलता के दरवाजे आपके सामने है।”, “जिंदगी टालने से टलने वाली नहीं है, कब तक टालोगे दोस्त”, “चुनौतियों की चिंता न करो, चिंतन करो क्योंकि चुनौतियां किसी-न-किसी रूप में चल रही हैं।”, “जिंदगी में किसी का सहारा लेकर जिओगे तो एक दिन खुद को हारा हुआ महसूस करोगे।”, “मैं एक दीया हूँ मेरा काम है चमकना, हो सकता है मेरी रोशनी कम हो मगर दोस्त दिखाई बहुत दूर से दूंगा। आप भी एक दीया हैं मैं भी एक दीया हूँ, चमकना आपने है डिसाइड आपने करना है सूरज बनके चमकोगे तो पूरी दुनिया में प्रकाश फैलाओगे, चांद बनकर चमकोगे तो रात में नज़र आओगे और तारा बनकर चमकोगे तो बहुत दूर से नज़र आओगे।” पीयूष इन कारनामों के अतिरिक्त कई भाषाओं में किताबों का अनुवाद भी करवा चुके हैं।