इंटरव्यू

‘शांतिनिकेतन’ जैसी फ़िल्में यहाँ की जड़ों का सिनेमा है- नीरज सैदावत

पिछले दिनों जयपुर में दीपांकर प्रकाश एक फिल्म शूट कर रहे थे- शांतिनिकेतन। उसी फिल्म के सेट पर और बाद में हुई कुछ अंतरंग बातचीत के अंश आपके लिए लेकर आया है ‘गंगानगर वाला‘ पढ़िए –  ‘शांतिनिकेतन’ जैसी फ़िल्में यहाँ की जड़ों का सिनेमा है- नीरज सैदावत

जयपुर, राजस्थान में जन्में कलाकार, रंगकर्मी नीरज सैदावत बच्चन पाण्डेय, सैम बहादुर, आर्या, मिस्टर एंड मिसेज माही, मर्डर मुबारक जैसी कई बड़ी फिल्मों और वेब सीरीज का अहम हिस्सा रह चुके हैं। हाल में अपनी पहली  फीचर राजस्थानी फिल्म ‘शांतिनिकेतन’ की शूटिंग खत्म कर यहाँ के क्षेत्रीय सिनेमा में भी अपनी छाप छोड़ने के इरादे से नीरज सैदावत ने ‘दीपांकर प्रकाश’ निर्देशित इस फिल्म में मुख्य भूमिका अदा की है। गौरतलब है कि ‘दीपांकर’ इससे पहले ‘नानेरा’ नाम से राजस्थानी फिल्म बना चुके हैं, जिसने कई बड़े फिल्म फेस्टिवल्स में लगभग हर कैटेगरी में अवार्ड्स अपने नाम किये हैं।

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जयपुर के ही एक केन्द्रीय विद्यालय से स्कूली शिक्षा हासिल करने वाले नीरज ने राजस्थान विश्वविद्यालय से स्नातक करते हुए चार्टेड अकाउंटेंट भी बनने की कोशिश की किन्तु किस्मत को कुछ और मंजूर था। लिहाजा पढ़ते-पढ़ाते थियेटर भी करने लगे बचपन का शौक परवान चढ़ा तो यार-दोस्तों से थियेटर के बारे में बातें करते रहे। फिर विधिवत तौर से रविन्द्र रंगमंच, जयपुर में कुछ अच्छे अध्यापकों के मिलने से उनकी यह यात्रा आरम्भ हुई। थियेटर करते हुए ही उन्होंने एम.कॉम किया, कई थियेटर स्कूल के लिए भी तैयारी की जिसके चलते भारतेंदु नाट्य अकादमी में चयनित हुए। वहाँ दो साल रंगमंच पढ़ते-खेलते हुए वहीं से सत्यजित रे फिल्म संस्थान पहुँच गये। जहाँ विश्व सिनेमा देखा-सीखा। अब तक फिल्मों का जो कीड़ा लग चुका था वही उन्हें एक से एक बड़े प्रोजेक्ट में कास्ट करवाता गया।

‘शांतिनिकेतन’ जैसी फ़िल्में यहाँ की जड़ों का सिनेमा है- नीरज सैदावत
‘शांतिनिकेतन’ जैसी फ़िल्में यहाँ की जड़ों का सिनेमा है- नीरज सैदावत (On The Set Of FIlm Sam Bahadur)

पहली बार कास्टिंग के रूप में कैमरा पर ‘बच्चन पांडे’ फिल्म में नजर आने वाले नीरज सैदावत जयपुर में रहते हुए ही उस फिल्म में ऑडिशन से सलेक्ट हुए। जिसमें अलग-अलग उम्र के हिसाब से जिन पात्रों की जरूरत थी, के अलग-अलग ऑडिशन उन्होंने दिए। नीरज बताते हैं कि- यह मेरे लिए बड़ी ख़ुशी की बात थी, मैं इस फिल्म का हिस्सा बन पाया। हालांकि इसके पहले भी कुछ छोटे स्तर के शूट कर चुका था किन्तु इस फिल्म में पहली बार वन टेक शूट करने का अनुभव भी बहुत कुछ सीखा कर गया। यह बहुत ही महत्वपूर्ण सीन था मेरे लिहाज से फिल्म का और पूरी फिल्म भी।

निर्देशन के बारे में बात करते हुए नीरज कहते हैं- फिल्मों के निर्देशन का तो अभी सोचा नहीं किन्तु रंगमंच के लिए निर्देशन अवश्य कर चुका हूँ। बताते चलूं कि नीरज सैदावत ‘राजेश कुमार’ लिखित सोलो प्ले ‘हन्नू हटेला से लड़की सेट क्यों नहीं होती’,  ‘रमेश बक्षी’ लिखित नाटक ‘फाइव स्टार’ , ‘गुरशरण सिंह’ लिखित ‘बंद कमरे’ जैसे नाटकों का निर्देशन करने के अलावा ‘शनिवार को दो बजे’ नाटक का निर्देशन कर चुके हैं। ‘शनिवार को दो बजे नाटक  के निर्देशन के साथ उसमें नीरज ने अभिनय भी किया।

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शादी? – ख्याल तो अभी नहीं है।

सबसे ज्यादा मजा? – किसी एक का नाम लेना मुश्किल है। सभी के साथ काम करके मजा तो आता ही है और सीखने को भी मिलता है।

एक्टर नहीं होते तो क्या होते?-  खेल में या फिर रिसर्च में नजर आता।

दस साल बाद कहाँ देखना चाहते हैं खुद को? कुछ तय नहीं।

पसंद? – जॉन स्टेनबैक, मैक्सिम गोर्की, प्रेमचंद, इम्तियाज अली, अनुराग कश्यप।

‘शांतिनिकेतन’ जैसी फ़िल्में यहाँ की जड़ों का सिनेमा है- नीरज सैदावत
‘शांतिनिकेतन’ जैसी फ़िल्में यहाँ की जड़ों का सिनेमा है- नीरज सैदावत

शांतिनिकेतन में हुई कास्टिंग को लेकर नीरज कहते हैं- क्रिकेट खेलने के कारण मेरी इस फिल्म के लिए कास्टिंग हुई। दीपांकर उस समय मुम्बई में थे। ‘नानेरा’, ‘मसक्कली’ जैसी फ़िल्में देखने के बाद इनके साथ काम करने की मेरी इच्छा भी थी। फिर एक दिन मुंबई के वर्सोवा में क्रिकेट खेलते समय इनसे मुलाक़ात हुई और दीपांकर के साथ ही मैच की ओपनिंग करते-करते कास्ट हो गया।

शांतिनिकेतन में नीरज सैदावत बतौर मुख्य भूमिका में नजर आने वाले हैं। घर में सबसे छोटे होते हुए भी कैसे जिम्मेदारी आपको एक बड़े व्यक्ति के तौर पर उभारती है वही इसमें नजर आता है। वे कहते हैं कि- ऐसा किरदार करना मेरे लिए काफ़ी चुनौतीपूर्ण भी था।

‘शांतिनिकेतन’ जैसी फ़िल्में यहाँ की जड़ों का सिनेमा है- नीरज सैदावत
‘शांतिनिकेतन’ जैसी फ़िल्में यहाँ की जड़ों का सिनेमा है- नीरज सैदावत

राजस्थानी भाषा और राजस्थानी सिनेमा को लेकर नीरज कहते हैं- भाषा से तो रूबरू था ही यहीं की पैदाईश होने के कारण किन्तु यहाँ के कल्चर को मैंने सिनेमा के माध्यम से ही अधिक देखा-जाना। क्योंकि यह तो पहले से तय नहीं था कि मुझे एक्टिंग में ही करियर बनाना है, लिहाजा छात्र जीवन से सिनेमा में आने पर जब सोचा तो पाया कि जैसे अन्य भाषाओं (मराठी,तमिल, तेलगू, मलयालम) सिनेमा होता है वैसे ही राजस्थानी भी होगा। फिर दूसरी ओर मेरे लिए राजस्थानी सिनेमा ‘अनुराग कश्यप’ की ‘गुलाल’ फिल्म थी। उस फिल्म से समझ आया कि राजपुताना तो राजपूतों का है। उसके संवाद, कहानी, परिवेश यही सब मेरे लिए राजस्थानी होने का मतलब था। हाँ राजस्थान में भी कई बोलियाँ हैं लिहाजा कई राजस्थानी भाषा में रंगमंच भी किये। उन्हीं में कई ऐसे प्ले भी थे जिनका हमने हिंदी से राजस्थानी में रूपांतरण करते हुए उन्हें खेला। इसके बाद रंगमंच के स्कूल में आने के बाद जब विश्व सिनेमा देखा ईरानी, स्पेन, साउथ का सिनेमा, मराठी सिनेमा आदि तब रीजनल सिनेमा की जड़ों तक पहुँचा और समझ पाया किंतु राजस्थानी सिनेमा मैंने कभी नहीं देखा।

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‘शांतिनिकेतन’ जैसी फ़िल्में यहाँ की जड़ों का सिनेमा है- नीरज सैदावत
‘शांतिनिकेतन’ जैसी फ़िल्में यहाँ की जड़ों का सिनेमा है- नीरज सैदावत

वे राजस्थानी सिनेमा के हालातों को लेकर कहते हैं- जयपुर में एक दौर था जब राजस्थानी सिनेमा के बड़े-बड़े पोस्टर नजर आते थे, उनके डिजाइन भी बड़े अजीब होते थे। इसके बाद जब पहली राजस्थानी फिल्म ‘रोटी कुंण बणासी’ की तब उसे हमने कांस में भी भेजा। यह हमारा ही पहला प्रयास था कि हम लोग पहली बार कांस में राजस्थानी भाषा का कॉलम जुड़वा सके। यहाँ से भी राजस्थानी सिनेमा के हालातों को समझा जा सकता है कि आज तक वहाँ हमारी भाषा का कॉलम ही नहीं था। इतने आन्दोलन होने के बाद भी हमारी भाषा को मान्यता भी नहीं मिल पाई है आज तक, इसे लेकर कई बार बड़ी बहसें भी हुई। राजस्थान में बनने वाले शुद्ध राजस्थानी सिनेमा को मैंने नहीं देखा हाँ ‘शांतिनिकेतन’ करने के बाद कुछ और इसकी जड़ों को समझने का मौका मिला है। जरूरत है तो यहाँ की जड़ों में जाकर आपको यहाँ का सिनेमा बाहर लाने की। ‘आर्या’ जैसी वेब सीरीज में भी रॉयलिज्म ही नजर आता है। ‘रोटी कुंण बणासी’ और ‘शांतिनिकेतन’ जैसी फ़िल्में यहाँ की जड़ों का सिनेमा है। ‘रोटी कुंण बणासी’ छोटे से गाँव में छोटे से परिवार की कहानी है जबकि शांतिनिकेतन बड़े शहर के छोटे से परिवार की बात करती है। दोनों कहानियाँ एक-दूसरे के विपरीत है।

राजस्थानी सिनेमा के लिए सुझाव? – यहाँ की लोक कहानियों को अगर सिनेमा में लाया जाए तो उम्दा काम हो सकता है।

‘शांतिनिकेतन’ जैसी फ़िल्में यहाँ की जड़ों का सिनेमा है- नीरज सैदावत
‘शांतिनिकेतन’ जैसी फ़िल्में यहाँ की जड़ों का सिनेमा है- नीरज सैदावत

राजस्थानी सिनेमा कहते हैं घाटे का सौदा है ऐसे में आपने दो फ़िल्में की उसका कारण? – घाटे के सौदे की बात तब होती है जब तक अच्छा प्रेजेंट नहीं करोगे। राजस्थान से राजस्थानी भाषा उठाकर कहानी कह दो तो उसका कोई मतलब नहीं। जब तक वह अच्छी नहीं होगी तब तक सिनेमाघरों में चलने वाली नहीं है। मैंने जिन दोनों फ़िल्में को किया उनका उद्देश्य भिन्न है। इनका मूल यही रहा कि इन्हें बड़े-बड़े फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाया जाए। हमारी एक शॉर्ट फिल्म ने जो फिल्म फेस्टिवल्स के लिहाज से काम किया है, वह उसका प्रभावित करना ही है। मेरे लिए कंटेंट पहले है, क्या चैलेंज मिल सकते हैं दूसरा और फिर बाकी अन्य।

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