फिल्म रिव्यू

रिव्यू- यहाँ हर किसी में एक ‘गिद्ध’ है

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‘गिद्ध’ एक ऐसा पक्षी जिसके होने या ना होने से भले आपको कोई फर्क न पड़ता हो। लेकिन इस प्रकृति में ईश्वर की बनाई हरेक चीज का महत्व है। शायद इसलिए ही कहते हैं लोक में कि गिद्ध का कम होना मनुष्य के जीवन पर खतरा होने का संकेत है। संजय मिश्रा अभिनीत एवं मनीष सैनी निर्देशित फिल्म ‘गिद्ध’ भी कुछ ऐसी ही कहानी दिखाती है, दार्शनिकता के आईने से।

यहाँ हर किसी में एक ‘गिद्ध’ है
यहाँ हर किसी में एक ‘गिद्ध’ है

एक इंसान जिसके जीवन में उसके बेटे के अलावा कोई नहीं। बुढ़ापे में वह शमशान से मरे हुए लोगों के कपड़े उठाकर लाता है और उन्हें बेचकर अपना पेट पाल रहा है। क्या देहात में उसका कोई अपना नहीं जो उसकी देखभाल कर सके? क्या वह इतना कमजोर है या मजबूर की कमाकर नहीं खा सकता? किसका दोष है उस आदमी को भरपेट खाना ना मिल पाने के पीछे? क्या इस व्यवस्था का, जो केवल बलिष्ठ लोगों को काम के लायक समझती है और बाकियों को मरने के लिए छोड़ देती है? यह कहानी हमें कई आँखों से देखने और कई चश्में लगाकर देखने को मजबूर करती है।

यहाँ हर किसी में एक ‘गिद्ध’ है
यहाँ हर किसी में एक ‘गिद्ध’ है

दार्शनिक धरातल पर इसे देखते हुए दर्शकों को हर किसी इंसान में ‘गिद्ध’ नजर आता है। वह गिद्ध जो अपने जीवनयापन के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। सिनेमा के धरातल पर इसे देखते हुए दर्शक संतुष्ट होता है कि एक ऐसी फिल्म जो बिना किसी संवाद के भी अपनी कहानी पूरी तरह से कह रही है। इंसानियत के धरातल पर इसे देखते हुए आप तमाम बुजुर्गों के प्रति संवेदनशील हो उठते हैं। सामाजिक धरातल पर इसे देखते हुए आप उस सामाजिक व्यवस्था को कोसने लगते हैं जो इसमें आपको नजर आती है। आर्थिक धरातल पर आप इसे देखते हुए खुद गिद्ध बन बैठते हैं और पुन: संजय मिश्रा के पात्र की भांति समाज में जीवन जीने लगते हैं।

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बतौर अभिनेता संजय मिश्रा ने अपनी आँखों से अभिनय किया है और ऐसा करके वे अपनी आँखों और चेहरे के भाव से उस किरदार में खोये नजर आते हैं। बतौर दर्शक संजय मिश्रा पर आज की पीढ़ी को रश्क होना चाहिए कि एक ऐसा अंडररेटेड कलाकार हमारे बीच मौजूद है जो बिना थके अब तक 500 फ़िल्में कर चुका है। बतौर निर्देशक ‘मनीष सैनी’ की भरपूर तारीफें की जानी चाहिए कि मात्र 20 मिनट की यह फिल्म आपको बिना संवादों के वह दिखाती, बताती है जिसकी जरूरत सचमुच एक सार्थक फिल्म के रूप में इस समाज को है। मनीष सैनी इससे पहले दो बार अपनी फिल्मों के लिए नेशनल अवार्ड भी जीत चुके हैं।

यहाँ हर किसी में एक ‘गिद्ध’ है
यहाँ हर किसी में एक ‘गिद्ध’ है

‘गांधी एंड कम्पनी’ और ‘ढ’ फिल्म के लिए उन्हें दो बार राष्ट्रीय फिल्म पुरुस्कारों से नवाजा जा चुका है। मनीष सैनी का बनाया सिनेमा वर्तमान दौर के सीख रहे निर्देशकों और कलाकारों के लिए एक पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए। हाल में उनकी बनाई शार्ट फिल्म ‘गिद्ध’ ऑस्कर तक के लिए क्वालीफाई हुई और इसके अलावा यह ढेरों फिल्म समारोहों में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समानित हो चुकी है। मनीष सैनी की यह फिल्म बताती है कि यहाँ हर किसी में एक ‘गिद्ध’ है। जब इंसान की नकारात्मक और सकारात्मक शक्तियाँ आपस में अवरोध उत्पन्न करने लगें तब इंसान ‘गिद्ध’ बनने लगता है।

अपनी रेटिंग …. 4.5 स्टार

 

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