रिव्यू- फिर क्यों आई ‘हसीन दिलरुबा’
Featured In IMDb Critic Reviews
फिर आई ‘हसीन दिलरुबा’ नेटफ्लिक्स पर आज रिलीज हुई यह फिल्म आज से तीन साल पहले आई हसीन दिलरुबा का सीक्क्वेल है आइये जानते हैं कैसी है दिलरुबा गंगानगर वाला के रिव्यू पड़ताल में।
साल 2021 में नेटफ्लिक्स पर हसीन दिलरुबा’ फिल्म आई थी। जिसकी कहानी कुछ यूं थी कि रानी और रिशु ने शादी के बाद रानी के प्रेमी नील को मार दिया था। और उसके बाद रानी का पति यानी रिशु कहीं चला गया। और पुलिस भी उसे नही खोज पाई। कायदे से इस फिल्म की कहानी एक काल्पनिक लेखक दिनेश पंडित के काल्पनिक जासूसी उपन्यास “कसौली का कहर” की ही कहानी थी। और जब पुलिस को पता चला कि रानी उन्हें जो कहानी सुना रही है वह एक काल्पनिक जासूसी उपन्यास लिखने वाले लेखक की कहानी है तो उसका माथा चकराया।
अब करीब 3 साल बाद फिर से नेटफ्लिक्स के द्वारा घोषित इस चर्चित फिल्म का सीक्वेल आया है ‘फिर आई हसीन दिलरुबा’ लेकिन हम पूछना चाहते हैं आखिर फिर क्यों आई हसीन दिलरुबा? इस फिल्म की कहानी जब आप इसे देखने बैठते हैं तो पता चलता है कि फिर से रिशु और रानी मिल चुके हैं। और रानी रिशु की विधवा बनी घूम रही है। इस नई कहानी में उसे नील के जैसा ही प्यार करने वाला बंदा मिलता है अभिमन्यु। पर देखना ये है कि नील तो उसे नहीं मिल पाया था क्या रानी अब रिशु को छोड़ अभिमन्यु के पास जाएगी? फिर एक किस्सा पुलिस का भी है जिसे आप देखते हैं तो पता चलता है कि नील का चाचा जो पुलिस में है रानी और रिशु का केस शुरू से खंगाल रहा है। क्या अबकी बार पुलिस रानी और रिशु के साथ कुछ कर पाएगी?
किसी ने अगर हसीन दिलरुबा का पहला वाला भाग नहीं देखा है तो उसे अब वाली दिलरुबा पल्ले नहीं पड़ने वाली। और अमूमन सीक्वेल फिल्मों के साथ होता भी यही है। लेकिन ठहरिए आपको पहला भाग देखने की भी जहमत नहीं उठानी पड़ेगी क्योंकि यह फिल्म अब अपने सीक्वेल में ही आपको पिछली दिलरुबा की कहानी बता देगी। फिल्म लिखने बनाने वालों ने मगर मजाल है यह काम भी ठीक से किया हो? तो कुल लबोलुआब यह है कि आपको दोनों हसीन दिलरुबा देखनी पड़ेगी। ओटीटी के जमाने में यह बात अच्छी है की आप कभी भी कहीं भी कोई भी फिल्म देख सकते हैं। फिर नेटफ्लिक्स जैसा प्लेटफार्म हो तो कहना ही क्या!
यह भी पढ़ें- ‘हॉकस फोकस’ चौकस होकर
खैर कई सारे मर्डर काफी सारे सस्पैंस और थ्रिल जैसे मसाले होने के बावजूद हसीन दिलरुबा हसीन नहीं नजर आती। तर्क से परे जो आप नहीं देखना चाहते वही यह आपको दिखाती है। और इस बार इस फिल्म में “कसौली का कहर” ही नहीं है बल्कि और भी दो बड़े उपन्यासों का जिक्र हुआ है। और तो और यह फिल्म रानी और रिशु की उस सनक की भी दिखाती है जब एक सीन में खूब सारे पंडित जी के लिखे उपन्यास दिखाई पड़ते हैं। जिनमें वे पुलिस से बदला लेते नजर आते हैं और हर बार उनसे पुलिस हारती दिखती है।
कनिका ढिल्लो की लिखी इस कहानी में कई सारे पेंच उलझे नजर आते हैं। बेहतर होता वे अपने ही लिखे को फिल्माने से पहले पढ़ लेती। फिल्म में कई सारे मर्डर होते हुए नजर आते हैं तो कई बार उनकी व्यूह रचनाएं भी बनती दिखती हैं। किंतु जब बिना सर पैर के कोई कहानी जोड़ी जाती है, इधर से उधर घुमाई जाती है तो वह भी आपको यूं ही बिना काम के सस्पेंस दिखाते हुए घुमाती हुई सपाट चलती चली जाती है। पुलिस वाले मानों उनके अधिकार में कभी कुछ है ही नहीं और कभी वे ही सबसे पावरफुल हैं। निर्देशक जयप्रद देसाई ने भी कनिका ढिल्लो ने जो लिखकर दिया उसे अपनी तरफ से मांजने का काम नहीं किया होगा। हां बतौर निर्देशक उन्होंने फिल्म के कलाकारों से उम्दा अभिनय करवाया है।
तापसी पन्नू विक्रांत मैस्सी, सन्नी कौशल, जिम्मी शेरगिल, आदित्य श्रीवास्तव, भूमिका दुबे, आलोक पाण्डेय आदि सभी अच्छा अभिनय करते नजर आते हैं। गीत-संगीत में ठीक ठाक दिखने वाली इस फिल्म की लोकेशंस सबसे प्लस पॉइंट है। किंतु कई सारे अरोचक पहलू इस फिल्म को अरोचक बना देते हैं। इस शर्त के साथ की इसका तीसरा भाग भी दर्शकों को झेलना होगा।
अपनी रेटिंग – 2.5 स्टार