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रिव्यू- ‘हॉकस फोकस’ चौकस होकर

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नर्क के तीन दरवाजे होते हैं लालच, गुस्सा और वासना। हर आपदा के साथ आता है मौका। और अपराध दो धारी तलवार है। बावजूद इसके 8 लोग… 8 इरादों के साथ … एक गुनाह… करने उतरे हैं। और उनकी हर एक हरकत को कैद किया जा रहा है। हिंदी सिनेमा में क्राइम पर जुदा-जुदा तरह से निर्माताओं, निर्देशकों ने फ़िल्में बनाई हैं। लेकिन उन सभी फ़िल्मों में यह बात जरुर कहीं-न-कहीं आपको मिलेगी। जो यह फ़िल्म भी बताती है कि क्राइम फन नहीं एक गेम होता है और इसे खेलने के लिए आपका एक अच्छा प्लेयर होना जरूरी होता है।

'हॉकस फोकस' चौकस होकर
‘हॉकस फोकस’ चौकस होकर

आगरा में दिन दहाड़े बैंक में डकैती हुई और इस केस में पुलिस ने बैंक मैनेजर को भी गिरफ्तार कर लिया है। उन्हें शक है कि इसमें उसका भी हाथ है। पुलिस ने एक कार और लाखों रुपए बरामद कर लिए हैं। दूसरी तरफ बबली है जिसका मालदार शादीशुदा बॉयफ्रेंड है, जिससे वह शादी करने के लिए मरे जा है। बबली के पूरे घर में कैमरे लगे हैं। जिससे पता चलता है कि वह भी बैंक डकैती करना चाहती है किसी के साथ मिलकर।

 

29 तारीख को कुछ लोग बैंक में डकैती करेंगे और यह वीडियो कॉल पर कोई इंस्पैक्टर खान को बता रहा है। वह चाहता है कि इंस्पैक्टर उनसे माल लूट ले और हीरो बन जाए। लेकिन उसे हर सैकेंड की वीडियो रिकॉर्डिंग चाहिए। लेकिन करेगा क्या वो इस वीडियो का? फिर उधर पुलिस वाला खान क्या करेगा लूट या अरेस्ट? एक तरफ अजीत जो कुछ दिन पहले ही जेल से छूटकर आया है, अपनी टीम बना रहा है लेकिन क्यों? इस तरह बैंक में डकैती की योजना के साथ कई और योजनाएँ भी बन रही हैं।

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इस फ़िल्म की कहानी खोजना शुरू आप करेंगे तो यह आपकी कल्पनाओं से कहीं अधिक टेढ़ी-मेढ़ी मिलेगी। इसलिए बेहतर होगा कि आप अपना दिमाग लगाना बंद करें और फ़िल्म के साथ एक ऐसी दुनिया में गोता लगाएँ जहाँ कुछ भी वैसा नहीं है जैसा आपको दिखता है। इस ‘हॉकस फोकस’ (Hocus Focus) को चौकस होकर देखिए क्योंकि पिछले कुछ समय तक देश-विदेश के कई फ़िल्म फेस्टिवल्स में यह ढेरों इनाम हासिल कर चुकी।

'हॉकस फोकस' चौकस होकर
‘हॉकस फोकस’ चौकस होकर

पैरी डोडेजा ने जिस कसावट से इस फ़िल्म की कहानी लिखी है उसे फिल्माते समय भी उन्होंने ख्याल रखा है कि पर्दे पर भी यह उसी कसावट से दिखे। ऐसा होता भी है क्योंकि एक भी क्षण के लिए आपने अपनी नजरें हटाईं तो काफ़ी कुछ रोचक चीजें पीछे छूट सकती हैं। पैरी के निर्देशन और लेखन दोनों में दम नजर आता है। कायदे से ऐसी फ़िल्मों की सारी खूबसूरती उनके कैमरों के कमाल से निकल कर आती हैं। किन्तु यह फ़िल्म कैमरे के साथ ही एडिटर की कैंची से भी कमाल बन पड़ी है।

सूची कुमार, सोना भंडारी, सतिंदर सिंह गहलोत, गुरवेश पंडित, जीतू नरूका, प्रणव डोडेजा, संदीप यादव, हर्ष मल्होत्रा, राहुल अवस्थी, रजनीश मोहन, विक्रमजीत खुल्लर, जहांगीर अली, राजन, सतीश, शैलेंद्र सिंह आदि जैसे कम चर्चित कलाकारों, छोटे बजट के साथ ही बिना ज्यादा शोर-शराबे के यह फ़िल्म कई जिस्मानी ताल्लुकात दिखाते हुए जब आगे बढ़ती है तो इसके बनने का कारण भी नजर आने लगता है। और वहीं सुजीत सिंह, सुदर्शन भूनिया का साउंड और अन्य तकनीकी मसाले भी इसके उम्दा नजर आने लगते हैं। इस फ़िल्म की एक बड़ी कमी है कि अपनी बनावट और बसावट के चलते यह रोचक भले ही बन गई हो परन्तु सिनेमाघरों में उतरने वाली आज़ादी के अवसर की भीड़ में कहीं खो न जाए। अगर आपको क्राइम के साथ कसी हुई और परेशान हाल में स्क्रीन पर दिखने वाली फ़िल्में पसंद है तो ही इसे देखिएगा।

अपनी रेटिंग.... 3 स्टार

Release On- 9 August In Theaters

 

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