फिल्म रिव्यू

रिव्यू- यहां सब ‘कुत्ते’ हैं इसकी मां की!

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इस फिल्म की दो कहानियां हैं जिस पर यह खड़ी है एक ये कि एक बार एक बूढ़े शेर ने एक बकरी और एक कुत्ते की मदद से शिकार किया और बकरी से कहा कि इसे तीन हिस्सों में बांट दो। बकरी ने वैसा ही किया तो शेर नाराज़ हो गया और बकरी को मार कर खा गया। फिर उसने कुत्ते से कहा कि अब इसे दो हिस्सों में बांट दो। कुत्ते ने सारा शिकार शेर की तरफ खिसकाया और बकरी की बची-खुची हड्डियां चबाने लगा।

रिव्यू- यहां सब 'कुत्ते' हैं इसकी मां की!
यहां सब ‘कुत्ते’ हैं इसकी मां की!

दूसरी कहानी है मेंढक और बिच्छू की मेंढक ने बिच्छू को नदी पार कराई लेकिन बिच्छू ने उसे काट लिया। क्यों…? अरे भई बिच्छू की फितरत है। बस यही इस फिल्म की भी कहानी है। आप कहेंगे कहानी ही बता दी तो अब फिल्म क्यों देखें तो भई इन दो कहानियों पर खड़ी है यह फिल्म कहानी कुछ और भी है इसमें।

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आज का इंसान इस दुनिया में पहली कहानी के कुत्ते जैसा ही है। जब भी उस पर मुसीबत आई तो अपने से ताकतवर के आगे वह झुक जाता है। या फिर वह बिच्छू जैसा हो जाता है कि जब भी उसे मौका मिलता है तो वह अपने से कमज़ोर को अपने आगे झुका लेता है।

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असल कहानी मुंबई शहर की है जहां एक गैंगस्टर के कहने पर पुलिस वाले दूसरे गैंग्स्टर को मारने का जिम्मा लेते हैं। तभी उनके मन में लालच आता है जिसके चलते वे वहां से ड्रग्स भी उठा लेते हैं। फिर क्या सस्पैंड होते हैं तो कमिश्नर की करीबी इंस्पैक्टर पम्मी मैडम उनसे एक-एक करोड़ मांग लेती है। अब क्या होगा? वह फिल्म देखकर मालूम होगा आपको।

रिव्यू- यहां सब 'कुत्ते' हैं इसकी मां की!
यहां सब ‘कुत्ते’ हैं इसकी मां की!

विशाल भारद्वाज के बेटे आसमान भारद्वाज के निर्देशन में बनी यह पहली ही फिल्म बड़ी साधारण सी है जिसमें लॉजिक नहीं है क्योंकि इसके कलाकार तो कुछ- कुछ देर में बोलते ही रहते है ना कि – लॉजिक की मां की….! तो बस आप क्यों लॉजिक लगाने लगे?

इस साधारण सी फिल्म की कहानी की पटकथा शानदार है। शानदार तो इसका म्यूजिक और सिनेमैटोग्राफी, एडिटिंग भी है और कलाकारों (अर्जुन कपूर, कोंकणा सेन, कुमुद मिश्रा, तब्बू, नसीरुद्दीन शाह, राधिका मदान, शार्दुल भारद्वाज, अनुराग कश्यप का काम भी। क्रेजी किरदारों की मनरंजन अभिनय कला आपको बीच- बीच में गुदगुदाती भी रहती है। लेकिन लॉजिक के अभाव में यह फिल्म बेहद खोखली भी नजर आती है।

रिव्यू- यहां सब 'कुत्ते' हैं इसकी मां की!
यहां सब ‘कुत्ते’ हैं इसकी मां की!

फिल्म के डायलॉग हल्के और बिन मतलब की गालियों से लबरेज है। विशाल भारद्वाज की फ़िल्मों की छाप उनके बेटे की बनाई पहली ही फिल्म में नजर आती है। फिल्म के आखिर में फैज़ अहमद फैज़ की नज़्म ‘कुत्ते’ रेखा भारद्वाज की आवाज में सुनने में प्यारा लगता है। एक टाइमपास मनोरंजन के लिए इस फिल्म को देखा जा सकता है खास करके इसके क्लाइमैक्स के चलते।

 

अपनी रेटिंग .... 3 स्टार

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