वेब सीरीज रिव्यू

वेब रिव्यू- ‘ब्लैक वारंट’ तथ्यात्मक मनोरंजन से भरा सिनेमा

Featured In IMDb Critic Reviews

सत्यांशु सिंह व अर्केश अजय की स्क्रीनराइटिंग, तान्या छाबड़िया की टाइट एडिटिंग ने पूर्व तिहाड़ जेलर सुनील गुप्ता की आपबीती और सुनेत्रा चौधरी की लिखी किताब “ब्लैक वारंट” जो की रोली बुक्स द्वारा 2019 में प्रकाशित हुई थी, को एक दम तो नहीं पर हां काफ़ी हद तक पर्दे पर उतार कर रख दिया है।

सनद रहे फिल्म मेकिंग एक ज्वाइंट एफर्ट वाला उपक्रम है यहां किसी एक डिपार्टमेंट की चूक या नासमझी पूरे प्रोडक्ट पर भारी पड़ती है पर शो-रनर विक्रमादित्य मोटवानी इस बात के लिए तारीफ़ के हकदार है कि उन्होंने पूरी की पूरी टीम से बेहतरीन काम लिया है। विक्रम को हम सेक्रेड गेम्स, उड़ान, लुटेरा, जुबली, या हालिया रिलीज CTRL आदि फिल्मोग्राफी से जानते है और उनके दर्शक विश्वास करते है कि उनके सानिध्य में बना प्रोजेक्ट उम्दा ही होगा। सीरीज में रंग संयोजन का प्रभाव बेहद बेहतरीन बन पड़ा है, जिस पर बैकग्राउंड स्कोर ने चार चांद लगा दिए है।

‘ब्लैक वारंट’ तथ्यात्मक मनोरंजन से भरा सिनेमा
‘ब्लैक वारंट’ तथ्यात्मक मनोरंजन से भरा सिनेमा

यूं की जब से हमने फिल्में देखना शुरू किया है हम सब किसी ना किसी में फिल्म में हम किरदारों या कहानी की मार्फ़त जेल के दृश्यों से रुबरु होते रहे है जहां भले ही वो 1932 की, I Am a Fugitive From a Chain Gang हो या Escape from Alcatraz या The Shawshank Redemption या भारतीय पट्टी की कर्मा या सजा-ए-कालपानी या मधुर भंडारकर कृत “जेल” या हो डेविड फिंच की mindhunter हमने विभिन्न तरीकों से जेल में रहते किरदारों को देखा है, उनके जीवन के अनुभवों को समझा और जेल के जीवन के बारे में हमारी समझ को परिपक्व किया है परन्तु सुनील गुप्ता के किरदार के साथ यात्रा करते हुए आपको जेल भी कथ्य ना लगकर खुद एक किरदार लगने लगती है जो अपनी कथा खुद सुना रही है।

इसी सबके कुल प्रभाव को उत्पन्न करने के विषय में इस सीरीज ने हद दर्जे का मकाम तो हासिल किया है मुझे इश्क़ के मकाम याद आने लगते है:- दिलकशीं (Attraction), उन्स (Attachment), मोहब्बत (Love), अकीदत (Trust), इबादत (Worship), जुनून (Madness), मौत (Death)

‘ब्लैक वारंट’ तथ्यात्मक मनोरंजन से भरा सिनेमा
‘ब्लैक वारंट’ तथ्यात्मक मनोरंजन से भरा सिनेमा

हम फिल्म वालों के लिए ये सब इश्क ही तो है। पर जिस प्रकार इश्क के सात मकाम होते है अभी ब्लैक वारंट का इश्क रास्ते में है मुकाम तक नहीं पहुंचता है। उसी प्रकार “ब्लैक वारंट” सात एपिसोड्स आपको साथ अलग अलग कथाकर्मों से रुबरु करवाते हुए कथा की अलग अलग ऊंचाई तक ले जाते है पर गरम करके ठंडा छोड़ते हुए।

जेल में गैंगवार, अनुचित व्यापार को बिना किसी लाग लपेट व छलविहीन बहादुरी के साथ दिखाया गया है, जैसे जैसे कहानी आगे अगले एपिसोड्स के साथ आगे बढ़ती है आप पात्रों के व्यवहार में वो बसावट और स्थायित्व महसूस करना शुरू कर देते है। जैसे खुद कहानी के प्रणेता सुनील गुप्ता की भाव भंगिमाएं और चेहरे की दृढ़ता में हर गुजरते समय के साथ परिवर्तन निर्देशक के रिसर्च वर्क और मानव व्यवहार की समझ को दर्शाती है।

भले ही सीरीज की शूटिंग भोपाल और मुंबई में हुई हो पर दर्शक को एक पल भी दिल्ली दूर नहीं लगती। बीच-बीच में डायरेक्टर ने अपनी कहानी को उस दौर के साथ कदमताल करते दिखाने के लिए दिल्ली की पुरानी वीडियो की स्टॉक फुटेजेस भी इस्तेमाल में ली है। एपिसोड्स की कलरिंग फ्लैटऑरेंज टील हो या autumn/winter ऑरेंज टील आपको 1980 के टेक्नीकलर की याद दिलाते हुए रियलिस्टिक लगती है। अधिकतर डायलॉग्स एक दम सधे और सटीक है जहां कोई भी चीज थोपी हुई नहीं लगती, केवल कुछ एक जगहों को छोड़कर जहां लेखक उस 80’s के दौर को त्याग कुछ ज्यादा ही मिलेनियल हो गए है।

‘ब्लैक वारंट’ तथ्यात्मक मनोरंजन से भरा सिनेमा
‘ब्लैक वारंट’ तथ्यात्मक मनोरंजन से भरा सिनेमा

हालांकि मैं 2019 में ही “Black Warrant : Confessions Of A Tihar Jailer” या सुनेत्रा की लिखी हुई एक और किताब “Behind Bars” उनके प्रथम प्रकाशन वर्ष में ही पढ़ चुका हूं तो मुझे महसूस होता है कि शो मेकर्स ने उन ब्रीफिंग्स को ठीक ठीक विजुलाइजेशन प्रदान किए है। भले ही गलतियां गिनाई जा सकती है पर भर्त्सना नहीं की जा सकती। क्योंकि अभी भी मेकर्स ने गेंद अपने पाले में ही दबाई हुई है।

सभी एक्टर्स ने अपनी अपनी कैपिसिटी में बेहतरीन काम किया है जिस से मुकेश छाबड़ा के गुट द्वारा की गई कास्टिंग एक दम परफेक्ट महसूस होती है, इतने की आप किरदार निभाते हुए एक्टर्स की असली पहचान, नाम और पुराना काम भूल जाते है और ऐसा लगता है मानो तिहाड़ खुद आपको जेलर सुनील गुप्ता, विपिन दहिया और डीसीपी तोमर, शिवराज सिंह मंगत,सैनी, SP मुखोपाध्याय, या चार्ल्स शोभराज, रंगा-बिल्ला, या मकबूल बट के किरदारों से मिलवा रही है।

हर एपिसोड की कहानी और किरदारों की ज्यादा जानकारी सीरीज का मजा खराब कर सकती है इस वजह से Netflix पर release हुई इस सीरीज को आप खुद परखें और आंकलन करें। मेरी नजर में ये सिनेमा को समर्पित एक से ज्यादा बार देखी जाने वाली रचना है जहां गलतियों की गुंजाइश बरकरार रहती है पर जिसका हर डिपार्टमेंट फिल्म स्कूल का एक एक lesson है। मेरी तरफ से सीरीज को मिलते है पांच में से साढ़े तीन स्टार। जाइए और पहली फुर्सत में ही निपटा लीजिए

नोट- यह रिव्यू सिनेमा की गहरी समझ रखने वाले गौरव चौधरी ने लिखा है। एपिसोड दर एपिसोड की पड़ताल भी जल्द लेकर आयेंगे। 

Facebook Comments Box
Show More

गौरव चौधरी

लेखक फिल्म निर्देशक हैं। संपर्क- gauravchaudhery@gmail.com

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!