ओल्ड रिव्यू : हर किसी में एक ‘लोमड़’ छुपा बैठा है
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मैं हमेशा कहा करता हूं इंडिपेंट फिल्म मेकर्स के लिए भारतीय सिनेमा जगत में बड़ी दुश्वारियां हैं. लेकिन उम्मीद है कभी तो ये कम होंगी. हेमवंत तिवारी पहली ऐसी भारतीय फिल्म लेकर आए हैं जो बेरंग है लेकिन उसकी कहानी आपको जरूर कई रंग दिखाती है. यह फिल्म लोमड़ ऐसी फिल्म है जिसमें किसी तरह के मसालों की अधिकता नहीं है. यह धीर-गंभीर सिनेमा पसंद करने वालों के लिए बना है. पूरी फिल्म पहले स्लो मोशन में शूट हुई और फिर कई जगह स्लो मोशन दिखते हैं लेकिन बाकी फिल्म आपको अपनी अन्य फिल्मों की तरह सामान्य गति से चलती, दौड़ती नजर आती है. जिसमें नजर आता है थ्रिल, एक्शन, थोड़ा रोमांस और कुंठाएं.
एक लड़का और लड़की दोनों दोस्त हैं और शादी शुदा. लड़का अपनी बीवी से छुपकर और लड़की अपने पति से छुपकर आई है. दोनों कुछ समय साथ बिताने और पार्टी के सिलसिले में सुनसान इलाके से जा रहे हैं. फर्ज कीजिए गाड़ी खराब हो गई लाख कोशिश के बाद भी नहीं सुधर रही. एक लड़का वहां आया और बाइक से गिर पड़ा लेकिन इसके बाद कुछ ही देर में वहां मर्डर होने लगते हैं. पुलिस वाला भी मौजूद है. वह लड़का पुलिस वाले को भी मार देता है.
गाड़ी उठाने के लिए किसी से बात हुई तो वो भी परेशान दिखता है. लड़की और लड़का अलग से परेशान है. वहीं से गुजरी एक प्रेगनेंट लेडी वो भी परेशान. दर असल पूरी फिल्म के कैरेक्टर ही आपको परेशान नजर आते है. इस बीच डेढ़ घंटे के करीब लंबी यह फिल्म आपको भी परेशान करती है. फिल्म जब अपने क्लाइमैक्स पर आती है तो मालूम होता है हर आदमी के भीतर एक लोमड़ मौजूद है.
इस फिल्म को लेकर निर्देशक कहते रहे कि दुनिया की यह पहली फिल्म है जो लगातार बिना कोई कट लगे ब्लैक एंड व्हाइट बनाई गई है. लेकिन उन्हें इतना झूठ नहीं फैलाना चाहिए था. हां यह भारत में अपने तरह की यह पहली फिल्म जरूर है. दुनिया की पहली बिना कोई कट वाली फिल्म एक रूसी फिल्म थी. Russian Ark की जो सबसे बड़ी फिल्म भी थी. छियानवे मिनट लंबी उस फिल्म को चौथे प्रयास में पूरा किया गया था.
खैर लोमड़ फिल्म आपके अपने भीतर छुपे उस वेश को दिखाती है जो फिल्म जैसी परिस्थिति में फंस जाए तो बाहर निकल आता है. असल इंसान की पहचान भी ऐसी ही परिस्थितियों में होती है. हालांकि यह फिल्म महिलाओं को भी एक अलग नजर से देखती है. पुलिस वाला जब उसे गंदी भाषा में बात करता है तो वह अपने भीतर की कुंठाओं को ही दिखा रहा होता है.
हरियाणवी, हिंदी, अंग्रेजी तीन भाषाओं के मिक्चर से तैयार इस फिल्म की डबिंग और कैरेक्टर द्वारा की जा रही लिपसिंग मैच नहीं करती. लेकिन सुप्रीम भोल की सिनेमैटोग्राफी जमती है. लगभग दो-तीन सौ मीटर के दायरे में आउट डोर शूट हुई यह पूरी फिल्म कई इंटर नैशनल , नैशनल फिल्म फेस्टिवल में भी सराही गई.
11 वें दादा साहेब फालके फिल्म फेस्टिवल , सेंट्रल फ्लोरिडा फिल्म फेस्टिवल, वेंकुवर इंडीपेंडेंट फिल्म फेस्टिवल, बैरबोंस इंटर नैशनल फिल्म एंड म्यूजिक फेस्टिवल, लॉस एंजेलिस फिल्म अवॉर्ड, इनफ्लक्स फिल्म अवॉर्ड में बेस्ट डेब्यू डायरेक्टर, बेस्ट एक्सपेरिमेंटल फिल्म, बेस्ट फॉरेन प्रोजेक्ट, बेस्ट एक्टर, बेस्ट थ्रिल इत्यादि कैटेगरी में पुरुस्कृत हुई यह फिल्म आज 4 अगस्त को मुंबई और दिल्ली के कुछ चुनिंदा सिनेमा घरों में रिलीज हुई है.
बेहद कम बजट के साथ बनाई गई इस फिल्म को एडिट किया है बहुत ही उम्दा तरीके से अनिल रॉय ने. जबकि अभिनय के मामले में परिमल आलोक, नवनीत शर्मा अपना बढ़िया प्रदर्शन अभिनय के माध्यम से करते नजर आते हैं. वहीं रोशन सजवान, आरुषिका डे, मोहित कुलश्रेष्ठ, शिल्पा सभलोक, तीर्था मूरबादकर ठीक ठाक सहयोग करते हैं.
फिल्म के लेखक, निर्देशक हेमवंत तिवारी खुद शुरू में कई देर तक चलताऊ अभिनय करते हैं लेकिन क्लाइमैक्स इस फिल्म को वहां तक पहुंचा देता है जहां से आप इस फिल्म को बनाने से लेकर रिलीज होने तक में पेश आई दुश्वारियों को माफ कर आगे बढ़ते हैं.
कायदे से ऐसी फिल्में भारत में एक नए तरह के सिनेमा को जन्म अवश्य देगी. भारतीय सिनेमा में भविष्य में कभी ऐसी फिल्में बनें तो मानकर चलिएगा कि हेमवंत तिवारी की इस फिल्म से वे प्रेरित हुए होंगे. हालांकि फिल्म को किसी भी ओटीटी वालों ने प्रदर्शित करने से मना कर दिया था और यही वजह रही कि साल 2018 में बनने वाली फिल्म अब लगभग पांच साल बाद रिलीज हो पा रही है.
अपनी रेटिंग – 3 स्टार