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रिव्यू- ‘बत्ती’ उम्मीदों की रौशनी लाती है

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इस देश को आज़ाद हुए अब तक 80 बरस होने को है। इस देश में राम आने को है। इस देश में धर्म ध्वजा लहराने को है। लेकिन इस देश में जो नहीं है वह है ‘ बत्ती’ जो आज भी लोगों को नसीब नहीं है। 150 करोड़ के देश के लोगों में अब आप कहेंगे भला इस समय भी कोई ऐसा होगा जो बिना ‘बत्ती’ के (लाइट, रोशनी) के होगा? जिस देश में अरबों का बजट बनता हो, जिस देश में 85 हजार करोड़ किसी मंदिर विशेष को बनाने में जनता, सत्ता धन एकत्र कर लेती हो उस देश में भला कोई ‘बत्ती’ के बिना भी होगा?

'बत्ती' उम्मीदों की रौशनी लाती है
‘बत्ती’ उम्मीदों की रौशनी लाती है

इस सवाल का जवाब है ‘हां’ राजस्थान का एक पिछड़ा इलाका जहां रहता है भैरूं। बाप दादाओं के कर्जे तले डूबे रहने के बाद भी उसका बाप उसकी शादी करना चाहता है, कर्ज भी लेता है। लेकिन भैरूं शादी से जरूरी घर में रोशनी लाना समझता है। इधर शादी भी खटाई में पड़ती है और उधर कर्ज की रकम भी बढ़ती है। अब क्या करेगा भैरूं? ला पाएगा अपने घर में उजाला? क्या जलेगी उसके भी घर में ‘बत्ती’ ? या रह जाएगा भैरूं का घर और जीवन बिना रोशनी के?

 

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पिछले करीब एक साल से देश विदेश के फिल्म फेस्टिवल्स को रोशनी दिखा रही यह फिल्म कहने को कोई नई कहानी सामने लेकर नहीं आती। वही निम्न मध्यम वर्गीय परिवार और उनकी दुश्वारियां। लेकिन अपने कहन से विजन से यह मार्मिक बन पड़ी है। इंडिपेंट डायरेक्टर्स को होने वाली बजट की दुश्वारियां और उनसे फ़िल्मों पर पड़ने वाले असर से आप वाकिफ होंगे। यही दुश्वारियां ‘बत्ती’ में भी नजर आती है। लेकिन जब आपका विजन सही हो, अच्छा हो, कुछ सार्थकता सिद्ध करता हो तो ऐसी कमियां भुला देनी चाहिए।

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इस देश के जब 13 फ़ीसदी लोग ‘बत्ती’ के लिए भुला दिए जाएं तो लाज़मी है कि ऐसी फिल्में और कहानियां भी भुला दी जाएंगी। लेकिन यह सच है कि एक-न-एक दिन वह हकीकत सामने आएगी ही और फिर जलेगी ही ‘बत्ती’। लेखक, निर्देशक और बतौर कलाकार जिगर नागदा ने फिल्म को सच के बेहद करीब का बनाया, दिखाया है। उनके लेखन और निर्देशन में भी वह सच नजर आता है। यही वजह है कि इस फिल्म की सिनेमैटोग्राफी, एडिटिंग, म्यूजिक, स्क्रीनप्ले, साउंड, कलरिंग भी उतना ही सच के करीब है।

'बत्ती' उम्मीदों की रौशनी लाती है
‘बत्ती’ उम्मीदों की रौशनी लाती है

गौरव सिसोदिया की सिनेमैटोग्राफी हो या दिनेश सोनवानिया की एडिटिंग, केशव कुंदल का म्यूजिक हो या शुभम अनेता और जिगर का लिखा स्क्रीनप्ले, डायलॉग सब सच के करीब नजर आते हैं। उतना ही सच इस फिल्म के कलाकारों के माध्यम से अभिनय का भी नजर आता है। कुनाल मेहता, राखी मनसा, महेंद्र श्रीवास, अनिल कुमार दाधीच, शुभम् शर्मा, जिगर नागदा, दीपेंद्र कुमावत, हार्दिक नागदा, शिवांगी तिवारी, अनुराग, ध्रुवी पालीवाल, शेर सिंह धाबा आदि मिलकर इस ‘बत्ती’ की रोशनी को आखरी तक जलाए रखते हैं।

बड़े बजट और बड़े स्टार कलाकार से परे की इस फिल्म में रावण हत्था, सारंगी और भपंग जैसे वाद्ययंत्रों से बनाया गया म्यूजिक फिल्म में इस तरह रचा बसा है कि आप कई जगहों पर इसके म्यूजिक के कारण ही आंखें गीली कर लेते हैं। फिल्म फेस्टिवल्स की मंजिल पर चल रही कई पुरुस्कार और सराहना पा चुकी, उम्मीदों की रौशनी लाती इस बत्ती को जब जहां देखने का मौका मिले देख डालिएगा हो सकता है यह आपकी भी उम्मीदों की बत्ती जलाकर जाए।

अपनी रेटिंग ..... 3.5 स्टार

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