रिव्यू- लाज बचाती ‘सुभागी’
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दुख सु महारो कपड़ा और शरीर रो रिश्तो है। एक कपड़ा बदलां हां दूसरा पहना हां, दुख भी तो कपड़े जैसो ही है ना एक जावे है एक आवे है। जब इंसान बिना कपड़े ना रह सके तो दुख बिना किया रहता। इंसान ने दुख मजबूत बनावे है, संघर्ष करना सिखावे है। इन्सान ने एक बार सुख दोखो दे सके है लेकिन दुख बड़े प्यार सु हाथ थामे। जब तक सांस रहे तब तक साथ चले।
प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के कथा सम्राट और महनीय लेखक की लिखी कहानी सुभागी पर राजस्थानी भाषा में इसी नाम से फिल्म बनाई है निर्माता, निर्देशक ने। कहानी और फिल्म का यह संवाद बहुत कुछ कहता है। यों प्रेमचंद की यह कहानी ज्यादा चर्चित नहीं रही। हो सकता है हिंदी प्रेमियों ने भी इसे ना पढ़ा हो। पर अब जब कई फिल्म समारोहों में कई ईनाम यह फिल्म जीत चुकी है। तो कुछ तो खास होगा ही इसमें जो इसे बनाने का फैसला लिया गया।
कहानी है एक ऐसे परिवार की जिसमें बेटा नाकारा है। बाप मां की बात ना मानने वाला। लेकिन बेटी है सुभागी एकदम गुणी, सुंदर, सुशील। बेटे के पैदा होने पर बाप ने जो बधाइयां बांटी वो अब समय के साथ उसे लगने लगा है कि बेटी के जन्म पर पैसा होते हुए भी हाथ बांध लेने पर उसने कोई अपराध किया है। अब बेटा परिवार से दूर हो गया बेटी मां बाप की सेवा में लगी है। दिन भर खटकर बचपने में विवधा होने पर भी दुखों को साथ ढो रही है। क्या होगा सुभागी का अब? कैसे बचाए वो लाज अपनी और अपने मां बाप की? यही इसमें देखना एक भावुक पल है।
राजस्थानी सिनेमा में अव्वल तो फिल्में बन नही रही और ले देकर जो स्टेज एप्प जो राजस्थानी सिनेमा को और गर्त में ले जाने की ठान चुका है ऐसे में सुभागी एक अच्छा अवसर है। हिन्दी प्रेमियों के लिए भी और राजस्थानी सिनेमा को चाहने वालों के लिए भी। जयपुर इंटर नेशनल फिल्म फेस्टिवल में पिछले बरस सराही गई यह फिल्म कई ओटीटी ( चौपाल, यू ट्यूब, एमएक्स प्लेयर) आदि पर आ चुकी है और हाल में 10 वें राजस्थान इंटर नेशनल फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाई जा चुकी है।
राजस्थानी सिनेमा में बाकी हाल के सब कचरे से बचते हुए आप इस फिल्म को देख सकते हैं। हालांकि यह कोई महान फिल्म नही बन पाई है। लेकिन इतना तो है कि लाज बचाने में सिनेमाई तरीके से यह कामयाब है। सुष्मिता राणा, शिव किकोड़, आयुषी सिसोदिया, विनोद भट्ट, अंजली पारीक, सिकंदर चौहान, ममता अग्रवाल, मिहिका चास्ता, अंशुमन किकोड आदि जैसे राजस्थानी सिनेमा के कलाकार इसे इस मुकाम पर ले जाते हैं कि एक बार देखना कोई घाटे का सौदा नहीं।
सिंगर रूबीना खान की आवाज में एकमात्र गाना इस फिल्म को और अधिक देखने की शर्त पर खरा उतरता है। करण सिंह का म्यूजिक, बैकग्राउंड स्कोर फिल्म को वह अहसास देता है जिससे आप भावुक भी होते हैं। संदीप सैनी ने एडिटर के तौर पर ठीक काम किया लेकिन थोड़ा और सफाई से वे इसे बेहतर बना सकते थे।
चौपाल एप पर उपलब्ध इस फिल्म के निर्माता हर्षित माथुर और निर्देशक अनिल भूप ने भी अपनी साख और लाज बचाए रखी है। जल्द ही इस फिल्म का सिक्वल सुभागी 2 के रूप में शूट होने जा रहा है। लेकिन प्रेमचंद की इस कहानी में ऐसा क्या खास वे इसके दूसरे सिक्वल में दिखाएंगे यह भी देखना दिलचस्प होगा।
फिलहाल के लिए इसे देखिए और सुकून लीजिए की कुछ तो स्तरीय पूरी तरह से ना सही लेकिन बाकी राजस्थानी सिनेमा के कचरे से बेहतर कहानी तो मिल रही है। हां थोड़ा और खर्च फिल्म को बजट के रूप में मिलता तो यह याद रखी जाने लायक फिल्म हो सकती थी। लेकिन फिलहाल याद रखने लायक यह भी एक बात है कि पंजाब के एक बड़े ओटीटी प्लेटफार्म चौपाल पर एकमात्र राजस्थानी फिल्म यह उपलब्ध है।
फिल्म को चौपाल एप्प पर इस लिंक से देखा जा सकता है।