फिल्म रिव्यू

रिव्यू: बेरंगी, बेदर्दी, सपनीली ‘आशा’

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हमारे देश में वर्तमान समय में करीब 50 करोड़ से अधिक श्रमिक हैं। और वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक में हम ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक 143 देशों की सूची में 126 वें नंबर पर हैं। सरकारें करोड़ों लोगों को मुफ़्त की योजनाएं दे रही है। खाने-पीने के समान के इतर भी कई सुविधाएं निःशुल्क उपलब्ध हैं। लेकिन विचार कीजिए इस फिल्म को देखकर कि क्या असल में फिर भी हालात उन गरीबों के बदल रहे हैं?

 बेरंगी, बेदर्दी, सपनीली 'आशा'
बेरंगी, बेदर्दी, सपनीली ‘आशा’

दरअसल हम इतने निष्ठुर हो चले हैं कि हमें किसी के दुःख से कोई मतलब नहीं रह जाता असल जिंदगी में, तब एक सिनेमा हमें सिखाता है, दिखाता है, बताता है कि देखिए जागिए और थोड़े तो इंसान बनिए।

एक गरीब घर का लड़का जिसके सपने हैं कि एक दिन वो अपनी मेहनत से कमाई कर अपने लिए एक जोड़ी सैंडिल खरीदेगा। पर उधर दूसरे लोग बड़ी-बड़ी गाड़ियों में उसके सामने से चले जा रहे हैं। वह देखता है कि उसके साथ जिन्होंने तस्वीरें ली थीं उनके पास जूते आ गए हैं पर वो अपने लिए एक जोड़ी सैंडिल तक खरीद पाने कि जद्दोजहद में जुटा है।

 बेरंगी, बेदर्दी, सपनीली 'आशा'
बेरंगी, बेदर्दी, सपनीली ‘आशा’

मात्र 13 मिनट की यह शॉर्ट फिल्म हाल में आयोजित हुए जयपुर इंटर नेशनल फिल्म फेस्टिवल में जब दिखाई गई तो इसने खूब तारीफें बटोरी। इसके अलावा भी यह फिल्म दुर्गापुर इंटर नेशनल फिल्म फेस्टिवल, चम्बल इंटर नेशनल फिल्म फेस्टिवल, अहमदाबाद इंटर नेशनल फिल्म फेस्टिवल के लिए नामित हो चुकी है। बेस्ट क्रिटिक से नवाजी जा चुकी यह फिल्म इतनी बेरंगी है कि पूरी फिल्म का रंग ब्लैक एंड वाइट भी इसलिए ही रखा है।

17 वां जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल आया और हो गया

यह फिल्म इतनी बेदर्दी है कि इसे देखते हुए आप भीतर तक पसीज उठते हैं। अमीर, गरीब के भेद को जिस कदर पर्दे पर उकेरा गया है वह सपनीली जरूर बन गई है। किंतु इसे देखते हुए आपकी आंखों में आंसू होते हुए भी उन आंखों को यह रुखा कर जाती है। यह उन सपनों को भी रुखा बनाती है जिसके लिए “वे लोग” (निचले तबके के) आज भी जूझ रहे हैं।

 बेरंगी, बेदर्दी, सपनीली 'आशा'
बेरंगी, बेदर्दी, सपनीली ‘आशा’

अपनी कसी हुई स्क्रिप्ट, चुस्त एडिटिंग, दुरुस्त बैकग्राउंड स्कोर और म्यूज़िक से यह आपको हिलाती है, जगाती है, झिंझोड़ती है। निर्देशक समीर तलवडेकर की यह पहली ही फिल्म उस सराहना की हकदार बनती है जिसे उनके साथ मिलकर लिखा है लेखक विश्वजीत पवार ने और अपने बेहतरीन डीओपी से सजाया है आयुष राज ने। ऐसी पर्दे पर आने वाली बेदर्दी, बेरंगी, सपनीली आशा जब भी कहीं आपके सामने आए तो इसे देखिए। ऐसी फिल्मों को। सराहेंगे तभी तो और अच्छा सिनेमा उभर कर आएगा पर्दे पर।

अपनी रेटिंग…. 4.5 स्टार

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