रिव्यू- कड़क नहीं ‘कड़क सिंह’ की खिचड़ी
Featured In IMDb Critic Reviews
ओटीटी प्लेटफार्म जी 5 पर आज पंकज त्रिपाठी, संजना सांघी वाली और विद्या बालन वाली कहानी फिल्म की याद ताजा करने की कोशिश करने वाली फिल्म ‘कड़क सिंह’ रिलीज हो गई है। लेकिन कड़क सिंह की खिचड़ी ही बनकर यह फिल्म रह गई आखिर क्यों आइये देखिए आखिर क्यों कड़क नहीं ‘कड़क सिंह’ की खिचड़ी।
दुनिया तू शातिर है, विश्वास घाती है, दौलत के दलदल में कश्ती चलाती है।
लालच अमीरों की, वहशी वजीरों की पानी में बहती है लाशें जमीरों की।
ये जो उजाला है, अंदर से काला है पापी अंधेरों को सूरज ने पाला है।
अमृत के प्यालों में तू विष मिलाती है दुनिया तू शातिर है, विश्वास घाती है।
इन पंक्तियों से शुरू होने वाली फिल्म उसी कोलकाता शहर की कहानी को दिखाती है जिस कोलकाता शहर को हिन्दी फिल्म उद्योग वालों बहुत बार अपनी कहानियों का केंद्र बनाया है। जी 5 पर आज आई ‘कड़क सिंह’ में भी कोलकाता शहर है। यह वही शहर है और वही लेखक भी जिसने इससे पहले विद्या बालन वाली ‘कहानी’ को लिखा था।
कहानी है एक ऑफिसर की जिसने आत्महत्या की है। आत्महत्या की है या जानकर उसे यह रुप दिया गया? अब वही अफसर अस्पताल में भर्ती है जिसे अपनी जिंदगी के कुछ पन्ने याद है और कुछ वह भूल गया। कई सारे लोग उससे मिलने आते हैं और अपनी – अपनी कहानियां सुनाते हैं, जिन्हें जोड़कर वह अपनी एक नई कहानी तैयार करता है। क्या है इस कहानी में और कितनी कड़क है कड़क सिंह की कहानी यही सब जानने के लिए आपको जी 5 पर फिल्म देखनी होगी।
कहानी अपने कलेवर और फ्लेवर से अच्छी तो लगती है लेकिन बार-बार आगे-पीछे आती जाती यह कहानी कड़क सिंह की खिचड़ी बनकर रह जाती है। जिसमें एक आदमी कुछ लोगों के साथ एक रुपए का हजार करने के इरादे से स्कैम किया है। बाप अपनी ही बेटी को भूल गया लेकिन उसे इस तफ्तीश के दौरान की बातें अस्पताल में याद रह गई।
एक दो सीन थोड़ा रहस्य और जुगुप्सा जगाकर चले जाते हैं। थ्रिल, क्राइम, रोमांस, स्नेह और नशे को मिलाकर जिस तरह कहानी लिखी गई और जिस तरह उसे पर्दे के लिहाज से फैलाया गया वह कई बार इतना बोझिल लगता है कि आप भी कहानी के एक किरदार की तरह कह उठते हैं सीधे प्वाइंट पर आइए ना!
दो घंटे की फिल्म जब डेढ़, पौने दो घंटे बाद प्वाइंट पर आए तो समझ लेना चाहिए कि लिखने और बनाने वालों के पास पर्याप्त ढंग की कहानी ही नहीं थी। ऐसा नहीं है कि यह फिल्म एकदम बुरी है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इसे देखकर आप मनोरंजन भी हासिल कर पाएं।
यह भी पढ़ें :- इस सृष्टि पर हमें दिवाली लानी है!
कई जगहों पर आप कहानी को खुद ही पकड़ लेते हैं तो कुछ जगहों पर माथापच्ची भी करनी पड़ती है। फिल्म कहती है कि – सब अपना-अपना काम अगर ढंग से करें तो दुनिया सबके हिसाब से चलती है। दुनिया जो थोड़ी बहुत सही चल रही है वो सिर्फ इसलिए की कुछ लोग आज भी अपना धर्म निभाना जानते हैं। बस यही सिनेमा का धर्म ये लोग भी अपने -अपने ढंग से निभाने के चक्कर में कड़क सिंह की खिचड़ी बना देते हैं। एक ऐसी खिचड़ी जो करारी नहीं है। जिसमें रहस्य, रोमांच, रोमांस और विचलित करने वाले सीन ज्यादा नहीं नजर आते।
पंकज त्रिपाठी हमेशा की तरह अपना बेस्ट काम करते नजर आते हैं। संजना सांघी प्यारी लगने के बावजूद खास प्रभावित नहीं करती। कास्टिंग डायरेक्टर जोगी मलंग इस फिल्म में कास्टिंग करते हुए अभिनय भी करते हैं। अभिनय में वे भी ठीक काम करते दिखाई पड़ते हैं। जया अहसान, पार्वती तिरुवोथु, परेश आहूजा, वरुण बुद्धदेव, दिलीप शंकर, योगेश भारद्वाज, राजन मोदी आदि मिलकर कहानी को अपने-अपने ढंग से आगे बढ़ाने में पूरा सहयोग करते हैं।
यह भी पढ़ें :- पुरानी दिल्ली का ठेठ हिंदुस्तानी नाश्ता नहीं खाया तो क्या खाया
दो-एक सीन को छोड़ पूरी फिल्म के अंदर मच रहे शोर को दिखाकर भी निर्देशक अनिरुद्ध रॉय चौधरी सिरहन पैदा नहीं कर पाते। ‘पिंक’ और ‘लॉस्ट’ जैसी बढ़िया फिल्में दे चुके निर्देशक कोलकाता शहर को भी सही ढंग से दिखा पाते तो भी यह खिचड़ी कुछ कड़क लगती। लेकिन जब आपके पास कहने को सिर्फ बातें हों तो कहानियां अक्सर उलझ ही जाया करती हैं। बस पूरी फिल्म में सबसे उम्दा चीज हैं तो पंकज त्रिपाठी का अभिनय और फिल्म के शुरू में आने वाली कविता और इन दोनों के अपने मायने हैं।
One Comment