रिव्यू- कॉमेडी का तड़का लगाती ‘राजा री लव स्टोरी’
राजस्थानी फिल्म कॉमेडी का तड़का लगाती ‘राजा री लव स्टोरी’ सिनेमाघरों में आज से दस्तक दे चुकी है फिल्म के प्रीमियर के बाद पढ़िए यह ताजा रिपोर्ट गंगानगर वाला पर….
एक बाप, एक बेटा, एक मामा, एक लड़की, एक धन्नो और एक सड़क छाप गब्बर। बाप अपने दहेज़ में आये साले और अपने बेटे की उत्पाती हरकतों से दुखी है। एक बेहद पुरानी मोपेड जिसे बाप धन्नो कहता है, अपनी बीवी के मरने के बाद उसे दुनिया में किसी से प्यार है तो वो सिर्फ धन्नो से। गब्बर की सड़क छाप छठी औलाद की सड़क छाप हरकतें और बेटे (राजा) की लव स्टोरी के बीच हास्य के तड़के से तैयार हुई है राजस्थानी फिल्म ‘राजा री लव स्टोरी’
करीब आठ-नौ सालों से ठंडे बस्ते में पड़ी और रिलीज को तरस रही इस फिल्म का आज प्रीमियर किया गया। आठ-नौ साल बाद जाकर गनीमत है कि यह फिल्म रिलीज हो पाई है। कायदे से यह फिल्म खराब नहीं तकनीकी तौर पर छोड़ दिया जाए तो। अनिल भूप राजस्थानी सिनेमा में पहले भी ऐसी बढ़िया कहानियाँ दे चुके हैं। बस उनकी बैंड बजाई है तो निर्देशकों और उसकी टीम ने। अनिल भूप बतौर लेखक अपनी लेखनी में वह दम रखते हैं कि उनकी लिखी कहानियों को कायदे से फैलाया, समेटा जाए तो यह आदमी अपनी कहानी के दम पर राजस्थान के सिनेमाघरों में सूनी पड़ी खिड़कियों में बहार ला सकता है।
वहीं बतौर निर्देशन और एक्टिंग की तो पूछिए ही मत आप। राजस्थानी सिनेमा से वैसे भी यहाँ के लोगों को भी उम्मीदें अब खत्म हो चुकी हैं। आज से कुछ जगहों पर रिलीज हुई इस फिल्म को इसकी कहानी और कॉमेडी के बेहिसाब तड़के के लिए अवश्य देखा जाना चाहिए। यह गनीमत है कि कुछ लोग अभी भी अच्छा कॉमेडी लिख रहे हैं। साल भर में आने वाली दो-एक राजस्थानी फिल्मों में यह फिल्म अपने इसी मसाले की वजह से दाद पाती है।
राकेश कुमार यूँ भी राजस्थान में कॉमेडी के लिए अच्छे खासे पहचाने जाते हैं और वही उन्होंने इस फिल्म में अपने चिर-परिचित अंदाज में जिया है। चार गाने हैं जिनमें से दो अच्छे हैं तो दो बेहद चलताऊ किस्म के। बैकग्राउंड स्कोर, डबिंग, मेकअप, एक्टिंग, सिनेमैटोग्राफी, एडिटिंग जैसी तकनीकी खामियों में इतने छेद हैं कि छलनी भी शर्माए एक बारगी।
एक आदमी तभी सफल होता है जब अपने पैरों पर चलता है लेकिन बच्चे बैसाखी से चलना चाहते हैं। यह बताने वाली फिल्म कायदे से बच्चों की बातें नहीं करती बल्कि यह बात करती है सिनेमा के उस बच्चे की जिसे देखने के लिए आप सिनेमाघरों में जाते हैं। बैसाखियों के सहारे जी रहे राजस्थानी सिनेमा में कॉमेडी की बैसाखी का सहारा लेकर आप इस फिल्म को देखकर अपना मनोरंजन भरपूर कर सकते हैं।
अनिल डूडी निर्देशक के तौर पर बेहद कच्चे हैं तो वहीं अनिल भूप लेखक के तौर पर पक्के हुए खिलाड़ी। तो दूसरी ओर अनाडी कलाकार लेकिन निशा को राजा पर विश्वास है पर उसे खुद पर ही नहीं, वे मोपेड को भी बकरी कहते हैं देखा जाए तो ये दोनों ही दरअसल यहाँ के निर्माता हैं। निर्देशकों को विश्वास है निर्माताओं पर लेकिन वे उन्हें भी उस बकरी की तरह ही समझते हैं जिसका जब चाहा दूध निकाल लिया।
एक अच्छी और मनोरंजन से भरपूर ‘राजा री लव स्टोरी’ (Raja ri love stori) आंखों के सहारे पर्दे पर उतरती तो है लेकिन कानों के सहारे दर्शकों को दिखाई नहीं पड़ती। तकनीकी खामियों के साथ ही जब क्रेडिट्स तक में ‘श’ को ‘ष’ और ‘कारक’ को ‘कार’ लिखा जाएगा तो सिनेमा के भी धातु रूप बिगड़ेंगे ही। कर्ता ने करण से कर्म करने को कहा किन्तु सम्प्रदान के लिए अपादान का नाम लेते हुए मना कर दिया। अधिकरण में, पर, अरे! और राजस्थानी सिनेमा चिल्लाने लगा।
दीवाना, अरमान गाने सुनने में जितने अच्छे लगते हैं उतना ही कलाकारों द्वारा राजस्थानी के बीच में बिना वजह बोली जा रही हिंदी अखरती है। फिल्म कहती है ‘सजा जरूर मिलेगी तीर से भी तलवार से भी।’ किन्तु राजस्थानी सिनेमा के तीर और तलवार हड़प्पा की खुदाई से भी अब नहीं मिलने वाले। ऐसी फ़िल्में बनाने वाले फिल्म में अपने ही किरदारों से जितने लोगों को दस करोड़ देने की कई बार बातें करते हुए नजर आते हैं वे कायदे से निर्माताओं के रुपए को उड़ाने की साजिश भर नजर आते हैं। फिल्म कहती है जिंदगी भी पंखे जैसी है जो घूमती है पर मजे कोई ओर ले रहा है तो निर्देशकों सुधर जाओ वरना किसी दिन तुम्हारे एम.एम.एस लीक होंगे और मजे कोई और लेगा। जाते-जाते इस सवाल का जवाब देते जाइए बीवी और लुगाई में अंतर काईं होवै है….?