इंटरव्यू

संभावनाओं का एक बीज बंजर को भी उपजाऊ बना सकता है- श्रवण सागर

यह सच है कि संभावनाओं का एक बीज बंजर को भी उपजाऊ बना सकता है। यही बात पिछले दिनों राजस्थानी सिनेमा के कलाकार ‘श्रवण सागर’ से हुई तब भी यही निचोड़ निकलकर आया। आज गंगानगर वाला में पढ़िए श्रवण सागर से हुई अंतरंग बातचीत के कुछ अंश- 

म्हारो बीरो है घनश्याम, द हीरो अभिमन्यु, पटेलन, दंगल, राजू राठौड़, पगड़ी, शंखनाद, आटा-साटा, बाहुबली जैसी राजस्थान की भाषा में बनी फिल्मों में नजर आने वाले ‘श्रवण सागर कल्याण’ जिन्हें राजस्थानी सिनेमा के दर्शक श्रवण सागर के नाम से जानते हैं, किसान परिवार में जयपुर के ग्रामीण इलाके की पैदाइश हैं। बचपन से ही पढ़ाई पर ज्यादा फोकस नही किया जिसके चलते घरेलू कामों में अधिकांश समय बीतने लगा।

एक बार चर्चित निर्माता, निर्देशक के. सी. बकोडिया अपनी फिल्म “लाल बादशाह” की शूटिंग जयपुर में कर रहे थे। तब वहीं श्रवण सागर भी मौजूद थे लिहाजा शूटिंग देखते हुए ही खुद ने भी ठान लिया की अब अभिनय करेंगे। बस यहीं से यात्रा शुरू हुई श्रवण की अभिनय को लेकर। वे कहते हैं कि उन्होंने कोई अभिनय का विधिवत प्रशिक्षण नहीं लिया है।

संभावनाओं का एक बीज बंजर को भी उपजाऊ बना सकता है- श्रवण सागर
संभावनाओं का एक बीज बंजर को भी उपजाऊ बना सकता है- श्रवण सागर

श्रवण का रंगमंच से भी कभी जुड़ाव नहीं हुआ ना ही कभी किसी पेशेवर एक्टिंग स्कूल में अभिनय के गुर सीखे। लेकिन बावजूद इसके लगन ऐसी थी कि पहली बार “म्हारो बीरो है घनश्याम” फिल्म में संतोष मिश्रा के निर्देशन में अभिनय का पहला कदम रखा। अब जल्द ही सागर की राजस्थानी फिल्म “भरखमा” सिनेमाघरों में आ रही है। जिसे लेकर खासी चर्चा है राजस्थान में। इसके साथ ही जल्द ही यहां के दर्शक उन्हें “कस्तूरी” फिल्म में भी देख पाएंगे।

 

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राजस्थानी सिनेमा पर बात करते हुए श्रवण सागर बेझिझक कहते हैं कि बतौर कलाकार उन्हें अभी तक कोई खास प्रभावित नहीं कर पाया अपने निर्देशन से।  लेकिन उनकी आगामी फिल्म भरखमा से उन्हें काफ़ी अपेक्षाएं हैं। भरखमा की कहानी प्रेम, कर्तव्य और सामाजिक ताने-बाने के इर्द-गिर्द घूमती है। जिसमें कई जगह सांप्रदायिकता का सहारा लेते हुए विभिन्न लोगों के साथ फिल्म यह विचार कराती है कि- प्यार एक गुनाह है या एक ऐसी भावना जो दिलों पर राज करती है और या फिर क्या वह सपनों को साकार करा पाएगी उनके।

श्रवण की इस फिल्म की कहानी राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत जिला अधीक्षक रहे डॉ. जितेंद्र कुमार सोनी लिखित कहानी “भरखमा” पर ही आधारित है। सोनी ने भी अपनी कहानी में नीलोफर और सागर के अमर प्रेम को दर्शाया है। जो इतिहास में बाकी प्रेम कहानियों लैला-मजनू, शिरी-फरहाद और मूमल-महेन्द्र की तरह ही कुछ-कुछ नजर आती है। इसके साथ ही फिल्म में एक दबंग पुलिस ऑफिसर की कर्तव्यनिष्ठा और प्रोफेसर के प्रेम के सच्चे स्वरूप को भी दिखाया जाएगा।

संभावनाओं का एक बीज बंजर को भी उपजाऊ बना सकता है- श्रवण सागर
संभावनाओं का एक बीज बंजर को भी उपजाऊ बना सकता है- श्रवण सागर

श्रवण कहते हैं कि – भरखमा दर्शकों को सिनेमाघरो में आकर अपने सवालों के जवाब ढूंढने के लिए आमंत्रित करती है।  जिसमें उन्हें सहनशील नीलोफर और क्षमाशील सागर की कहानी नजर आएगी।

श्रवण राजस्थान में इतने बेबाकी से जवाब देने के लिए जाने जाते हैं कि- उनकी बेबाकी के शब्द भी बेहद सीमित और नपे तुले शब्दों में ही सिमट जाते हैं। वे कहते हैं कि अगर मैं अभिनय ना कर रहा होता तो आप लोगों को मैं एक आम किसान या फिर किसी पार्टी के नेता के रूप में नज़र आता।

राजस्थानी सिनेमा जो लगातार फिल्में दे रहा है उसमें सरकारी तंत्र का कितना सहयोग आप लोग को मिल पाता है इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं – एक मात्र सब्सिडी का सहारा है यहां के निर्माताओ, निर्देशकों को अच्छा सिनेमा बनाने के नाम पर लेकिन उसमें भी आप किसी ऊंचे ओहदे वाले से अपना काम करवाने की ताकत बशर्ते रखते हों। अन्यथा केवल संघर्ष के अलावा कुछ नहीं शेष यहां।

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उन्हें निजी तौर पर वे सभी लुभाते हैं जो राजस्थानी सिनेमा बनाते है। इसके साथ ही वे खुद को भी साबित कर सके ऐसे रोल की तलाश में लगे हुए हैं। जिसे देख लोग लंबे समय उन्हें याद करें राजस्थानी सिनेमा में। इसलिए ही वे चाहते हैं कि राजस्थान के स्थानीय कलाकारों को लगातार फ़िल्मों में दोहराना होगा जिससे उनका फैन बेस तैयार हो पाए और राजस्थानी सिनेमा देखने के लिए लोग लालायित हो सके।

स्टेज एप, चौपाल एप जिस तरह से हरियाणवी, राजस्थानी सिनेमा लेकर आ रहे हैं आपको क्या लगता है की सच में इन्होंने कोई क्रांतिकारी काम किया है सिनेमा के लिहाज से? सवाल के जवाब में वे कहते हैं- अभी क्रांति होनी बाकी है और यह सभी की कोशिशों से ही संभव होगी। वे व्यक्तिगत तौर पर मानते हैं कि- अभी तक कोई भी राजस्थान में वह प्रोजेक्ट नहीं बना पाया है जो पूरे राजस्थान के लिए हो। लेकिन इसी कोशिश में सभी जूझते नजर आते हैं। यही वजह है कि वे आशान्वित भी हैं यहाँ के सिनेमा को लेकर। श्रवण का कहना है कि- संभावनाओं का एक बीज बंजर को भी उपजाऊ बना सकता है। श्रवण सागर की भरखमा अगले महीने राजस्थान के सिनेमा घरों में रिलीज होने जा रही है

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