रिव्यू- ‘कूकी’ के साथ न्याय नहीं हुआ?
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कुछ समय पहले कांस में दिखाई गई असमिया और हिंदी भाषा की फिल्म ‘कूकी’ (kooki) अब सिनेमाघरों में भी दस्तक देने जा रही है। एक नाबालिग गैंगरेप पीड़िता की कहानी को दर्शाते हुए इसके निर्देशक ने न्याय किया या नहीं? ‘कूकी’ के साथ न्याय नहीं हुआ? जानने के लिए पढ़िए रिव्यू रिपोर्ट गंगानगर वाला की
इस दुनिया में पहली बार बलात्कार की घटना कब घटी आपको याद है? क्या आपको किसी किताब ने यह आज तक बताया? क्या किसी फिल्म ने यह दिखाने की जुर्रत समझी की आपको पता चले पहली बार इस देश में कब किसी स्त्री की अस्मिता को रौंदा गया। दरअसल यह भी एक शोध का विषय होना चाहिए। सिनेमा, साहित्य, समाज के लिहाज से भी इस ख़बर को खंगालने की जरूरत है। ताकि हमें पता चल सके की मनुष्य जाति में प्रभुत्व रखने वाली इस पुरुष प्रजाति की ऐसी क्रूरतम सोच ने आखिर कब जन्म लिया होगा?
हालांकि कागज़ों में दर्ज आंकड़ों की माने तो पहली बार साल 1972 में गढ़चिरौली के थाना देसाईगंज में मथुरा बलात्कार मामला ऐसा पहला मामला है जहाँ से भारत में गैंगरेप के केस दर्ज होने शुरू हुए। इन तथ्यात्मक बातों से इतर एक असमिया और हिंदी भाषा में बनी फिल्म ‘कूकी’ (kooki) एक नाबालिग लड़की के साथ हुए गैंगरेप की घटना को दिखाती है।
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फिल्म के निर्देशक प्रणब डेका ने ही इस फिल्म को लिखा भी है। फिल्म की कहानी से जितना आप जुड़ते हैं उतना ही आपकी आँखें नम होती हैं लेकिन इसकी पटकथा लिखते समय और उसे पर्दे पर फिल्माते समय निर्देशक पहले हाफ़ तक काफी धीमे चलते नजर आते हैं। तो वहीं दूसरे हाफ के साथ ही यह फिल्म कई जगहों पर आपके भीतर भी एक गुस्सा भर जाती है।
एक सोलह साल की लड़की जो प्रेम करना चाहती है, जो खुल कर जीना चाहती है, जो अपने हर दिन को अलमस्ती से गुजारती है एक दिन वह अपने एक दोस्त का इंतजार करते-करते जब जगंल के रास्ते लौटती है तो फिर वहाँ से एक शरीर के ढाँचे मात्र के रूप में लौटती है। उसके भीतर का वह प्रेम, जीवन को खुलकर जीने की चाह सब उन दरिंदों ने कहीं फुर्र कर दिया है। अब क्या करेगा इस लड़की का परिवार? क्या आम जीवन की तरह उसके भी अंतर्मन तक मीडिया पहुँच जाएगा? क्या उन बलात्कारियों को सजा मिल पाएगी? और क्या सचमुच में कूकी के साथ न्याय होगा?
रितिशा खाउंद, राजेश तैलंग, रीना रानी, दीपान्निता शर्मा, देवोलीना भट्टाचार्जी, ऋतू शिवपुरी इत्यादि कलाकार जमते हैं लेकिन विशेष तौर से राजेश तैलंग, रितिशा खाउंद प्रभाव जमाते हैं। एक गैंगरेप पीड़ित और दूसरा उसके परिवार के लोग ये दोनों ही इस फिल्म में ठीक उसी तरह से खुद से लड़ते दिखाई पड़ते हैं जैसे ठीक असल जीवन में वे लोग जूझते होंगे।
पल्लब तालुकदार, सौरव महंता, तपन ज्योति दत्ता, का म्यूजिक अविनाश चौहान, डॉ. सागर, इब्सन लाल बरुह के लिखे गीतों से मंजकर निखरता है। तो वहीं बिप्लब सहरिया, सुकुमार गोस्वामी की सिनेमैटोग्राफी को एडिटर झूलन कृष्णा महंता और बैकग्राउंड देने वाले तपन ज्योति दत्ता संभालते हुए नजर आते हैं। इस फिल्म में यूँ तो कई कमियाँ जाहिर भी होती हैं जिसका कारण भी आप दर्शकों को सीमित बजट के रूप में समझ पड़ता है।
एक नाबालिग लड़की के साथ हुए दुष्कर्म को यह फिल्म जिस तरह उस नाबालिग लड़की के एक वीडियो के सहारे हमारे सामने लाता है वह उन तमाम दुष्कर्म से पीड़ित लड़कियों की कहानी बन जाता है और यहीं इस फिल्म से समझ भी आता है कि आखिर क्यों ‘कूकी’ के साथ न्याय नहीं हुआ।
अपनी रेटिंग …. 3 स्टार
Release date : 28 June 2024 in Cinema