रिव्यू- डेजी और लिली के फूल सरीखी ‘अटेम्प्ट वन’
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एक ग्रामीण इलाका, दो आवारा-नकारा घूमते दोस्त, एक अपहरण, दो प्रेम कहानियाँ, तीन गाने, लोक गीत, लोक लुभावन लोकेशंस और क्या चाहिए एक फ़िल्म में नहीं? आप कहेंगे वो तो ठीक है पर कहानी भी तो बताओ कुछ भिया गंगानगर वाला- तो लीजिए हाजिर हैं हाल में प्रतिष्ठित कांस अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म फेस्टिवल्स में प्रदर्शित हुई फ़िल्म डेजी और लिली के फूल सरीखी ‘अटेम्प्ट वन’ का एक्सक्लूसिव रिव्यू
कुछ कहानी तो ऊपर ही आपको हमने बता दी अब थोड़ा और प्रकाश डालें? दो दोस्त हैं आवारा, पैसे लेकर किया है अपहरण किसी का, लेकिन क्यों ये मत पूछियेगा उन्हें तो पैसा चाहिए। किसने करवाया अपहरण और क्यों करवाया इसकी जानकारी तो हमें फ़िल्म देखने के बाद भी नहीं मिली। इधर लिली और डेजी को मोहब्बत है अपने प्रेमियों से। एक को वह इल्यूजन में नजर आती है तो दूसरे की हकीकत में। बीच-बीच में कुछ गाने भी आते हैं और फ़िल्म खत्म हो जाती है।
भास्कर विश्वनाथन ने फ़िल्म के लिए अनुकूल लोकेशंस ली हैं। संचय गोस्वामी, चेतन शर्मा सरीखे अच्छे कलाकार भी, नीलोत्पल मृणाल जैसे उम्दा लेखकों से गवाया भी है। गाने भी निर्देशक ने खुद से लिखे और अच्छे लिखे। एडिटर भी बढ़िया खेल गया। कैमरागिरी तो कमाल ही है। पर फिर भी इस फ़िल्म को देखते हुए दिक्कत महसूस होती है कि इसकी पूरी कहानी क्यों नहीं है?
क्या भास्कर ने यह सोच लिया था इसे लिखते और बनाते समय की दर्शक खुद से समझदार होकर फ़िल्म की कहानी को पूरा समझ जायेंगे? संचय गोस्वामी जहाँ पूरी फ़िल्म में अपने बेहतरीन अभिनय से रंग जमाने में कामयाब हुए वहीं चेतन शर्मा और महेश शर्मा जैसे अनुभवी कलाकारों ने मिलकर फ़िल्म को बाँध पाने कामयाबी हासिल की है। डेजी (पुष्पा पंथ) और लिली (कोयल दास) तो ठीक अपने नाम की तरह ही फूलों जैसी दिखीं और लगीं। डेजी पर लिली के फूल जैसे दिखने सुंदर होते हैं लेकिन ख़ुशबू उनकी आपको इतना आकर्षित नहीं करती जितना की उनकी सुन्दरता। हालांकि इन फूलों में सुन्दरता के साथ अभिनय की ख़ुशबू भी नजर आती है।
रहबरा, इस्टार हो जाएंगे जैसे गाने लिखे जितने खूबसूरत गये उससे भी कहीं ज्यादा खूबसूरत इन्हें सुनने में महसूस होता है। 80-90 दशक के फ़िल्मी गानों की बैकग्राउंड जैसी धुने गानों और फ़िल्म में कहीं-कहीं इस्तेमाल हुई हैं और सटीक जगह निर्देशक ने इनका इस्तेमाल किया है। ‘बड़ी रे जतन’ से जैसे लोक गीत इस फ़िल्म में डेजी और लिली के फूलों की भांति महकते हैं। निशांत कमल व्यास, राना कमल, पूर्वी सुहास की जोड़ी नीलोत्पल के साथ मिलकर अच्छे गीत गुनगुनाने में कामयाब रही है।
वीनू जॉर्ज, अनुराग तिवारी के कंपोज किये गये म्यूजिक, खुद निर्देशक के लिखे बोल, हिमांशु द्विवेदी की एडिटिंग और अजय देवगन की फ़िल्म ‘विजय पथ’ का इस्तेमाल इस फ़िल्म में बखूबी हुआ है। कायदे से यह फ़िल्म अच्छी है बस थोड़ा सा इसकी कहानी को पटकथा में बदलते समय रंदा मार दिया जाता तो चंद उठने वाले सवाल और चंद लम्हों की कमियाँ फ़िल्म में जो नजर आती हैं वे और ढक-छुप जाती। फिलहाल तो यह किसी-न-किसी अच्छे फ़िल्म फेस्टिवल में अवार्ड अपने नाम कर ही लेगी। और पहली बार फीचर फ़िल्म का निर्देशन कर अपना फ़िल्मी डेब्यू कर रहे भास्कर विश्वनाथन को भी बहुत कुछ इसकी फ़िल्मी समारोहों की राहें सीखा कर जायेंगीं।
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नोट- फ़िल्म फेस्टिवल्स की राह में चल रही इस फ़िल्म को जब-जहाँ-जिस फ़िल्म समारोह में देखने का मौका मिले देख लीजिएगा नहीं तो किसी ओटीटी अथवा इसके सिनेमाघरों में आने का इंतजार कीजिएगा। लोक को जीते हुए यह फ़िल्म डेजी और लिली के बहानों से जिस समाज का चित्रण प्रस्तुत करती है वह तो कम-से-कम काबिले तारीफ़ है ही।
अपनी रेटिंग ….. 3 स्टार
अटेम्प्ट वन का ट्रेलर इस लिंक पर देखा जा सकता है।