पुरानी दिल्ली से देश ने खाए ‘एग पकौडे़’
खाता रहे मेरा दिल… गुनगुनाते-गुनगुनाते खाते-पीते रहिए दिल्ली में। दिल्ली देश की ही नहीं, स्ट्रीट फूड की भी राजधानी है। खाने की वैरायटी का बेशुमार स्ट्रीट फूड दिल्ली की गलियों बाजारों के हर नुक्कड़ पर परोसा जाता है। पुरानी दिल्ली तो सैकड़ों सालों से दिल्ली के स्ट्रीट फूड हब के तौर पर भी जानी जाती है। वैसे भी अभी सर्दियों का मौसम है तो चलिए निकल चले दिल्ली की गली-कूचों मे स्वाद की खोज में। आज फूड कॉलमिस्ट अमिताभ स. हमें अपने लेख से परोस रहे हैं – पुरानी दिल्ली से देश ने खाए ‘एग पकौडे़’ की कहानी….
अमिताभ स.
अंग्रेजों की ब्रेड और ठेठ हिन्दुस्तानी पकौडे़ का फ्यूजन यानी ब्रेड पकौड़ा 1911 के शुरूआती सालों से दिल्ली को ऐसा भाया कि आज हर नुक्कड़ पर तलते मिलते हैं। अंदाज़ा है कि ब्रेड पकौडे़ पुरानी दिल्ली की गलियों के हलवाइयों ने ही शुरू किए और फिर देश- दुनिया का पसन्दीदा स्नैक्स बन गए। हालांकि इसका ‘जन्म’ दिल्ली के किस हलवाई ने किया, इसकी पुख्ता जानकारी नहीं है।
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खौलती कड़ाही से निकलते गर्मागर्म एग यानी अंडे के पकौडे़ की पैदाइश भी दिल्ली की बताई जाती है। मटन, चिकन और फिश खाने के शौकीन पुरानी दिल्ली के मटिया महल, बल्लीमारन और बाड़ा हिन्दूराव जैसे पुराने इलाकों में नहीं, बल्कि इनके नजदीक ही पुल बंगश पर। दिल्ली और देश को अंडों के पकौडे़ बनाने- खिलाने वाली शायद पहली दुकान आजाद मार्केट के नजदीक पुल बंगश पर है। नाम है- ‘पप्पू मछली वाला’। उल्लेखनीय है कि सन् 1950 के आसपास दरियागंज स्थित ‘मोती महल’ रेस्टोरेंट को पहले-पहल चिकन पकौड़ा खिलाने का श्रेय जाता है।
देखादेखी 1950 से ही ‘पप्पू मछली वाला’ के मालिक सरदार राम दास ने दिल्ली वालों को फिश फ्राई के साथ-साथ एग पकौड़े का पहली दफा टेस्ट करवाया। फिर उनके बेटे सरदार अर्जुन सिंह के बाद, अब पोता सरदार चरनजीत सिंह उर्फ पप्पू शान कायम रखे है। उसके भाई सरदार इंदरजीत सिंह लाडा ने अपने बेटे सरदार तरनजीत सिंह के संग मिलजुल कर वेस्ट दिल्ली की जेल रोड पर 1998 से ‘पुल बंगश वाले’ नाम की दुकान से एग पकौड़े बना- खिला कर धूम मचाई है। पुल बंगश नाम रखा क्योंकि इसके तार पुल बंगश की पुश्तैनी दुकान से जुड़े हैं।
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फिर 1960 आते- आते करोल बाग के गुरुद्वारा रोड- आर्य समाज रोड चौक पर ‘गणेश मछली वाला’ भी अंडे के जबरदस्त पकौडे़ खिलाने लगा। बोर्ड पर नाम लिखा है- ‘गणेश रेस्टोरेंट’। शुरुआती दौर में, यहीं रेहड़ी से एग पकौड़ों का जलवा शुरू किया हरी चंद ने। उबले अंडों में मसाला भर कर, बेसन के घोल में डुबो-डुबो कर डीप फ्राई कर एग पकौड़े बनाने लगे। प्याज के लच्छे, पुदीना चटनी और नीबू के साथ गर्म एग पकौडे़ खाने का बड़ा मज़ा है। आजकल उनके बेटे प्रेम कुमार और दोनों पोते दीपक और जयंत कुमार लज़ीज़ एग पकौडे़ खिलाने में जुटे हैं।
संस्थापक हरी चंद के हाथों का हुनर ही था कि वह तेल की खौलती कड़ाही में अपना हाथ डाल कर तलते अंडे निकाल लेते थे। ऐसा करते हुए उनका हाथ नहीं जलता था। लोगबाग पुरानी दिल्ली से आ-आ कर खौलती कड़ाही में हाथ डाल कर एग पकौडे़ निकालते हरी चंद का जलवा देख-देख दंग होते। और खा-खा कर लौटते। उनका बेटा प्रेम कुमार भी इस कलाकारी का माहिर है।
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लेखक फूड कॉलमिस्ट हैं और नवभारत टाइम्स ने उनकी किताब ‘चटपटी दिल्ली’ छापी है....
फोटो साभार – लेखक अमिताभ स.
1. एग पकौड़े 2. पुल बंगश वाले को जाता है एग पकौड़े खिलाने का श्रेय
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