सिजर्ल्स का दिल्ली- 6 से नाता वाया कनॉट प्लेस
पूरी दुनिया में हम भारतीय विशेष रूप से अपने खान-पान और स्वाद के लिए जाने जाते हैं। इस देश के हर राज्य की अपनी एक अलग पहचान खान-पान के लिए बनी हुई है। राजस्थान जहाँ दाल-बाटी-चूरमा के लिए जाना जाता है तो वहीं बिहार लिट्टी-चोखा के चलते विश्व प्रसिद्ध है। ऐसे ही दिल्ली, पंजाब, उत्तराखंड, दक्षिण भारत इत्यादि भी अपनी-अपनी विशेष पहचान खाने के मामले में रखते हैं। हमारा यह स्वाद का कॉलम विशेष रूप से रखा गया है क्योंकि गंगानगर वाला के संस्थापक लेखक, फिल्म समीक्षक तेजस पूनियां का भी मानना है कि हर इंसान के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर ही जाता है। हम भारतीयों ने खाने के मामले में कई विशेषताएं दुनिया को दी हैं और उन्हें खाना बनाना ही नहीं उसमें स्वाद लाना भी सिखाया है। इस कॉलम में आपको देश के हर कोने की रेसिपी के अलावा वहाँ की स्वाद के बारे में अन्य कई जानकारियाँ उपलब्ध करवाई जायेंगीं। दिल्ली के अमिताभ स. स्वतंत्र पत्रकार और स्तम्भकार के इस पहले कॉलम से हम स्वाद का आरम्भ करने जा रहे हैं।
अमिताभ स. बीते पंद्रह सालों से ‘संडे नवभारत टाइम्स’ में वीकली कॉलम ‘चख लें’ से दिल्ली के बेस्ट स्ट्रीट फूड को लोगों तक पहुंचाते रहे हैं। साथ ही दिल्ली से प्रकाशित टाइम्स ग्रुप के ही ‘सान्ध्य टाइम्स’ में भी उनके फूड कॉलम ‘स्वाद लाजवाब’ को छपते हुए 20 साल हो चुके हैं। नवभारत टाइम्स ने ही ‘चटपटी दिल्ली’ नाम से अमिताभ स . की किताब भी छापी है। जिसे इस लिंक पर क्लिक कर खरीदा जा सकता है। ट्रेवल, दिल्ली हेरिटेज जैसे अन्य विषयों पर भी वे निरतंर विभिन्न अखबारों के लिए लिखते रहे हैं। ‘दिल्ली यूनिवर्सिटी के चर्चित कॉलेज ‘श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स’, से अमिताभ ने बी कॉम (ऑनर्स) किया है। इसके साथ ही वे कॉलेज मैगजीन ‘यमुना’ का तीन वर्षों तक सफल सम्पादन कर चुके हैं। अमिताभ लेखक और स्वाद के बेहतरीन जानकार होने के साथ ही साल 1994 से नॉर्थ दिल्ली में अपना अमिताभ गेस्ट हाउस भी चलाते हैं।
अमिताभ स. –
जानना दिलचस्प है कि अपने देश में सिजर्ल्स की शुरुआत कोलकाता या मुंबई से पहले दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस से सटे जनपथ से हुई थी। बात 1960 के आसपास की है। उसी साल जनपथ पर ’लगूना’ नाम का नया- नवेला रेस्टोरेंट खुला ही था कि फूड एंड बेवेरेज मैनेजर ओम प्रकाश मेहरा ने रेस्टोरेंट के मेन्यू में सिजर्ल्स फूड आइटम जोड़ कर हंगामा ही मचा दिया। इससे पहले ज्यादातर दिल्ली वालों ने सिजर्ल्स का नाम ही नहीं सुना था, तो खाने का सवाल ही नहीं उठता ?
सिजर्ल्स कॉन्टिनेंटल डिश है। आजकल चाइनीज और इंडियन अंदाज में परोसे जाने वाले सिजर्ल्स खूब पसन्द किए जाते हैं। सिजर्ल्स को बेहद गर्म- गर्म पेश किया जाता है, बिल्कुल तपने की आवाज़ के साथ, धुआं निकलते हुए। साल 1992 से ‘गोला सिजर्ल्स’ और फिर 1994 से ‘मोएट्स सिजलर्स’ नाम के रेस्टोरेंट्स ने दिल्ली वालों को सिजर्ल्स खिला- खिला कर खासा नाम कमाया है। आज तो रेस्टोरेंट्स से एक से एक 35- 40 से ज्यादा वैरायटी के सिजर्ल्स सर्व किए जाते हैं। परांठे और बार-बे-क्यू सॉस के ठेठ इंडियन सिजर्ल्स भी परोसे जाने लगे हैं।
दिल्ली, फिर मुम्बई और बाकी महानगरों को सिजर्ल्स का स्वाद चखाने वाले ओम प्रकाश मेहरा ने 1955 में नई दिल्ली की डॉ अब्दुल कलाम रोड ( पुराना नाम औरंगजेब रोड) स्थित क्लैरेजिज होटल ज्वॉइन किया था। वहीं से उनका तबादला ‘लगूना’ में ओपनिंग के वक्त ही हो गया था। ‘लगूना’ कॉन्टिनेंटल , चाइनीज और पेंट्री व्यंजन परोसता क्लैरेजिज़ परिवार का ही हाई- फाई रेस्टोरेंट था। उन दिनों, ओम प्रकाश मेहरा की होटल इंडस्ट्री में बड़ी कद्र थी। उन्हें इज्जत से ‘बाऊ जी’ बुलाया जाता था। 1990 के दशक में उन्होंने हौज खास विलेज में ‘बाऊ जी का ढाबा’ नाम से अपना रेस्टोरेंट भी चालू किया था।
हालांकि बाद के सालों में, वह अपने फिल्ममेकर बेटे के नाम के साथ जुड़ कर और भी मशहूर हो गए। कैसे ? बता दें कि वह ‘दिल्ली-6’, ‘रंग दे बसंती’ और ‘भाग मिल्खा भाग’ जैसी सुपर-डुपर हिट फिल्मों के मेकर राकेश ओम प्रकाश मेहरा के पिता हैं।1960 के आसपास जब दिल्लीवालों को पहले- पहल सिजर्ल्स खिलाया, तब पंचतारा होटल अशोक तो था, लेकिन वहां भी सिजर्ल्स सर्व नहीं किया जाते थे। दिल्ली का दूसरा पंच तारा होटल ओबराय इंटरकॉन्टिनेशल बाद में खुला। अम्बेसडर होटल था और उसके तत्कालीन मैनेजर रॉबर्ट ने ‘लगूना’ से ही सिजर्ल्स की रेसिपी लेकर अपने होटल में पेश किया।
असल में, ‘लगूना’ के मालिक भाइयों में से एक महादेव प्रसाद खन्ना का बेटा रमेश खन्ना ‘लगूना’ खोलने से पहले विदेश से होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर लौटा था। उसने ही अपने एफ एंड बी मैनेजर ओम प्रकाश मेहरा उर्फ बाऊ जी के सहयोग से सिजर्ल्स पेश किया। बाद में, रमेश खन्ना ने बाऊ जी को भी कनाडा होटल इंडस्ट्री का कोर्स करने खासतौर से भेजा था। रमेश खन्ना ‘लगूना’ से ही सिजर्ल्स बनाने- परोसने का हुनर अपने मुम्बई के होटल हालिडे इन में ले कर गए।
दिल्ली और फिर देश को कॉन्टिनेंटल डिश सिजर्ल्स टेस्ट करवाने वाला ‘लगूना’ रेस्टोरेंट 1969 में बंद हो गया। और एक- दो साल बाद वहां त्रिभुवनदास भीमजी जावेरी का भव्य जूलरी शोरूम खुल गया, जो आज भी है।
(लेखक 30 वर्षों से फूड कॉलमिस्ट हैं और नवभारत टाइम्स द्वारा प्रकाशित चर्चित पुस्तक ‘चटपटी दिल्ली’ लिख चुके हैं।)
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