रिव्यू- शिक्षा, धर्म और जाति के ‘रंग’
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फिल्म फेस्टिवल्स की राह चल रही शॉर्ट फिल्म ‘रंग’ वर्तमान समय के हालातों को सटीकता से बयाँ कर पाने में कामयाब हो पाती है यही वजह है कि आज हम भी आपको इस फिल्म से रूबरू करवा रहे हैं- शिक्षा, धर्म और जाति के ‘रंग’ लेखक, निर्देशक ने किस तरह बिखेरे हैं चलिए देखते हैं-
दो समुदाय के बीच हुए विवाद के कारण कर्फ्यू लगाया गया। इधर देश में आजादी का पर्व आया तो कर्फ्यू हटा लिया गया। इसी बीच एक बच्चा है जिसकी जिद है ऐसे बिगड़े हुए माहौल में भी स्कूल जाने की। वह स्कूल जाकर झंडा भी फहराना चाहता है। अब आप कहेंगे इस कहानी में खास क्या है? जवाब है बहुत कुछ खास है। शिक्षा से जागृत होते बच्चे का जहन जिसे परवाह नहीं धर्म और जातियों के बीच फैली नफरत से। खास है तो दो विशेष समुदाय ‘हम’ और ‘वे’ जिनसे डरते हैं कुछ ऐसे लोग जिन्हें हर हाल में तटस्थ रहना है। खास है तो जातियां जो सदियों से इस देश से खत्म नहीं हो रही।
खास है तो फिल्म को देखते हुए दर्शक के भीतर उपजने वाला भय और फिल्म के खत्म होने पर शिकन पर उतरने वाला सुकून। करीब 15 मिनट की इस छोटी सी कहानी में वह सब कुछ है जो एक छोटी फिल्म में होना चाहिए।
अपने लेखन से ‘रंग’ को लिखने वाले ‘जितेंद्र नाथ जीतू’ ने फिल्म को हर भाव से भरा है। उनकी लेखनी से प्रेम, सौहार्द, निश्चलता उभरी है। और अपने निर्देशन से ‘सुनील पाल’ ने इन भावों को जो रंग दिया है वह देखते हुए प्यारा ही नहीं लगता बल्कि आपको एक भीतरी सुख भी प्रदान करता है।
मानवेंद्र त्रिपाठी, अनुरेखा भगत, कामरान शाह का अभिनय फिल्म के स्तर को ऊंचा उठाता है और ये सभी कलाकार अभिनय के मंझे हुए खिलाड़ी नजर आते हैं। फिल्म का छायांकन, अभिषेक सेठ की एडिटिंग, आशीष चक्रवर्ती का म्यूजिक और कॉस्टयूम इत्यादि सभी विभाग मिलकर आपको फिल्म बनाने वालों को दाद देने पर मजबूर करते हैं।
ऐसी फिल्में जितनी देखी, दिखाई जाएं और जितनी तारीफें इनकी की जाए कम हैं। लेकिन साथ ही ऐसी फिल्में देखने के बाद आपको भी फिल्म के जैसा बनना भी लाजमी होगा। क्योंकि जब आप ऐसी फिल्मों को न केवल सराहेंगे अपितु उसके रंग में रंगे जाएंगे तभी असली भारत का निर्माण संभव होगा। कुछ चुनिंदा फिल्म फेस्टिवल्स में सराही गई इस फिल्म को जहाँ देखने का मौका लगे देख डालियेगा।