फिल्म रिव्यू

स्टेज पर पिछले दिनों ‘मां’ आई है

 

इसे देश- दुनिया में मां एक ऐसा शब्द है जिस पर सैकड़ों लेख, कविताएं, कहानियां, रिपोर्ट्स लिखी गईं और लिखी जाती रहेंगी। मां इस एक शब्द में सारी दुनिया समाहित जो हो जाती है। स्टेज एप को आप लोग इस बात के लिए ढेरों बधाई दे सकते हैं कि उन्होंने इस विषय पर एक ऐसी मारक फिल्म बनाई है जो आपको खूब हंसाती भी है तो आपकी आंखों में नमी भी भरपूर पैदा करती है।

इससे पहले स्टेज के ही कॉलम राजस्थानी स्टेज पर कुनाल मेहता की अंगुठो आई थी। जिस पर लिखते समय मैंने ही कहा था स्टेज को ऐसे कंटेंट लेकर आते रहना होगा। यदि ऐसे कंटेंट वह लेकर आता रहा तो असल मायने में ये राजस्थान और हरियाणा सिनेमा का उद्धार कर पाएंगे।

खैर मां की कहानी इतनी सी है एक एक औरत बरसों से अपनी कोख सूनी रहने का गम बना रही है। समाज उसे बांझ होने के ताने कस रहा है। ऐसे में एक बाबा आता है और उसकी गोद हरी हो जाती है। लेकिन उस बाबा के आने पहले और उसके आने के बाद साथ ही उस मां की गोद हरी हो जाने के बाद फिल्म में कई मोड़ आते हैं जो आपको हंसाते हैं, रुलाते हैं। गाना भी आता है जो आपको किसी प्यारी लोरी की भांति महसूस होता है।

कई मोड़ से भरी और मोक्ष, अध्यात्म, माया, काम इत्यादि की बातें यह फिल्म एक घंटे तक सुनाती है। यह एक घंटा आपका सार्थक हो उठता है ऐसी फिल्में देखकर। फिल्म के लेखक प्रवेश राजपुत ने कई फिल्में लिखी हैं और हर बार वे अपनी कहानियों से कुछ नया तो कहते ही हैं साथ ही अच्छा और सार्थक भी कहते हैं। हरियाणा को ऐसे कहानीकारों की ही सख्त जरूरत है। साथ ही जरूरत है तो मां जैसी काबिल फिल्म बनाने वाले निर्देशक हरीश गड़ी, दिव्यांशु तनेजा, लोकेश खट्टर आदि जैसे कलाकारों की। फिल्म की पूरी टीम का काम अच्छा है। एक अच्छी फिल्म देखने के लिए आप स्टेज का साथ दे सकते हैं। इन निर्माताओं, निर्देशकों को चाहिए की ऐसी फिल्मों को फिल्म फेस्टिवल्स में भी लेकर जाए, वहां भी ये लोग अपने लिए सराहना और पुरुस्कार अवश्य पाएंगे।

 

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