रिव्यू- ‘गौरैया लाइव’ आखिर कब तक
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यह फिल्म भी इन समस्याओं का समाधान तो नहीं बताती लेकिन इन आये दिन होने वाले हादसों से सीख लेकर जनता को जागरूक करने के इरादे से बात करती जरुर नजर आती है। यह फिल्म केवल इसी समस्या पर बात करती है ऐसा भी नहीं है। यह दहेज़, गरीबी, अशिक्षा आदि जैसे मुद्दे भी छूती है। किन्तु सवाल फिर भी छोड़ जाती है कि ‘गौरैया लाइव’ आखिर कब तक।
इस देश में कहानियों की कमी नहीं है। सच्ची घटनाओं और उन पर लिखी गई कहानियों की जितनी भरमार है उतनी ही भरमार इन सच्ची घटनाओं पर बनने वाली फिल्मों की भी हैं। लेकिन क्या इन सच्ची घटनाओं पर फ़िल्में बना लेने से, ख़बरें लिख देने, कहानियों को पैदा कर देने से समस्याओं का हल हो जाएगा? तो जवाब है ना… नक्को… कभी नहीं। तो फिर इनका हल क्या हो?
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अजी पहले कहानी तो सुन लीजिए फिर विचार कीजिएगा। एक छोटी सी लड़की जिसका नाम माँ ने गौरैया रखा क्योंकि वो भी गौरैया की तरह दिन भर फुदकती, चैं चैं रहती है उस गौरैया की ही तरह जो हमारे-आपके आस-पास फुदकती रहती है पेड़ों पर। जिस जगह गौरैया का बाप दिहाड़ी-मजूरी करता है वहीं पर रहती है गौरैया अपने परिवार के संग। एक दिन अपने बाप को ढूंढ़ते हुए वह बोरवेल में जा गिरी। अब क्या बच पाएगी गौरैया? कैसे बचाया जाएगा उसे? या उन सैकड़ों बच्चों की तरह मर जायेगी उसी अँधेरे बोरवेल में?
मालिक कहता है ये गरीब लोग बिल्ली-कुत्ता पालकर इधर-उधर फिरने के लिए छोड़ देते हैं। सरकारों को यूँ भी इन हाशिये पर धकेल दिए गये लोगों की परवाह नहीं। कभी किसी की ख़बरें बनने लायक भी ये कहाँ हुए हैं? जब तक दवाब ना पड़े। खैर इस देश में इतने बच्चे आये दिन इन दिहाड़ी-मजदूरों के बोरवेल में गिरते-पड़ते रहते हैं कभी किसी को क्यों परवाह होने लगी। फिर ले देकर अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के इरादे से इन्हें आर्थिक मदद दी-दिलाई जाती हैं। लेकिन इस समस्या का ठोस समाधान आज तक नहीं निकाला गया।
यह फिल्म भी इन समस्याओं का समाधान तो नहीं बताती लेकिन इन आये दिन होने वाले हादसों से सीख लेकर जनता को जागरूक करने के इरादे से बात करती जरुर नजर आती है। यह फिल्म केवल इसी समस्या पर बात करती है ऐसा भी नहीं है। यह दहेज़, गरीबी, अशिक्षा आदि जैसे मुद्दे भी छूती है। किन्तु सवाल फिर भी छोड़ जाती है कि ‘गौरैया लाइव’ आखिर कब तक।
अदा सिंह, ओमकार दास मानिकपुरी, सीमा सैनी, नरेंद्र खत्री, शगुफ्ता अली, रिद्धि गुप्ता, विनय झा, आरव रंगरे, पंकज झा, बालेन्द्र सिंह, गणेश सिंघम, बलराम ओझा, अलोक चटर्जी, अजय पाल आदि तमाम लोग फिल्म में इस तरह अभिनय करते जंचते हैं जैसे यह कहानी आपके सामने ही घटित हो रही हो। लेखक, निर्देशक गेब्रियल वत्स ने सीमा सैनी के साथ मिलकर कहानी तो ठीक बुनी लेकिन इसे पतकथा की शक्ल में ढालते हुए वे इस कहानी में वह पैनापन और मार्मिकता नहीं ला पाए जो ऐसी कहानियों को दमदार बना देती है। फिल्म के गीत, लोकेशन, डीओपी, कैमरा, एडिटिंग, म्यूजिक, बैकग्राउंड स्कोर आदि तमाम तकनीकी पक्ष मिले-जुले रूप से ‘गौरैया लाइव’ के माध्यम से बोरिंग की समस्याओं को उभार पाने में कामयाब रहे हैं।
अपनी रेटिंग …. 3.5 स्टार