फिल्म रिव्यू
ओल्ड रिव्यू – हाफ़ दोस्त से ज्यादा लेकिन ‘हाफ़ गर्लफ्रेंड’ से कम
कुछ चीजें ऐसे टूटती है कि उनका दोबारा जुड़ना पॉसिबल नहीं होता सिर्फ दरारें रह जाती हैं। इन्हीं दरारों का नाम है जीवन। शादी एक रेस है जिसकी फिनिशिंग लाइन तक, कैसे भी पहुँचना हैं। जैसे कुछ डायलॉग को छोड़ दिया जाए तो फ़िल्म में कुछ खास ज्यादा है नहीं लेकिन उन लोगों के लिए फ़िल्म अच्छी हो सकती है जिन्होंने यह उपन्यास नहीं पढ़ा है।
मोहित सूरी निर्देशित फ़िल्म हाफ़ गर्लफ्रेंड दो ध्रुवों की कहानी है। दो ऐसे समानांतर ध्रुव जो लगता है कि कभी नहीं मिल पाएंगे परन्तु चेतन भगत के उपन्यास हाफ़ गर्लफ्रेंड पर आधारित फ़िल्म मनोरंजन और मसाले के मिश्रण से दर्शकों पर औसत प्रभाव ही डाल पाती है। हाँ एक विशेष बात फ़िल्म को लेकर यह कही जा सकती है कि अर्जुन कपूर और श्रद्धा कपूर स्टारर ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ ने एक अनोखा रिकॉर्ड बना लिया है। यह फिल्म भारत की पहली ऐसी फिल्म बन गई है, जिसकी शूटिंग यूनाइटेड नेशन के हेडक्वार्टर में हुई है। फ़िल्म की कहानी चूँकि प्राइमरी रुलर एजुकेशन का मैसेज भी देती है। इसी कारण यूएन अधिकारियों ने फिल्म को यूएन हेडक्वार्टर में शूट करने की इजाजत दी।
फिल्म की कहानी बिहार के बक्सर जिले के सिमराव गांव के रहने वाले माधव झा (अर्जुन कपूर) की है, जो गांव से दिल्ली शहर में पढ़ाई करने के लिए जाता है। वहां उसकी मुलाकात होती है दिल्ली की अमीर घराने की लड़की रिया सोमानी (श्रद्धा कपूर) से। माधव को इंग्लिश नहीं आती और रिया धड़ल्ले से दमदार इंग्लिश बोलती है। माधव का एडमिशन स्पोर्ट्स कोटे के तहत हो जाता है और कॉलेज में उसकी मुलाकात रिया सोमानी (श्रद्धा कपूर) से होती है। श्रद्धा को फर्राटेदार इंगलिश बोलते देख माधव उससे प्रभावित हो जाता है। दोनों ही बास्केट बॉल खेलते हैं, दोनों की दोस्ती होती है लेकिन यहीं पर माधव को रिया से प्यार हो जाता है, लेकिन रिया कहती है वो सिर्फ उसकी गर्लफ्रेंड बन सकती है लेकिन वो भी हाफ़ गर्लफ्रेंड। इसके बाद कुछ कारणों से दोनों का ब्रेकअप हो जाता है और रिया लंदन चली जाती है। इस वजह से माधव अपने गांव वापस आ जाता है और रिया की शादी हो जाती है। दोनों की दूसरी मुलाकात पटना में होती है, लेकिन एक बार फिर रिया माधव को छोड़कर न्यूयॉर्क चली जाती है पर इस बार माधव, रिया को ढूंढ़ने न्यूयॉर्क पहुंच जाता है। फ़िल्म में माधव का एक दोस्त भी है शैलेश (विक्रांत मस्सी) जो हमेशा उसका साथ देता है। कहानी में कई ट्विस्ट और टर्न्स आते हैं और कहानी लंदन तक भी पहुंचती है जहाँ इसे अंजाम मिलता है।
फिल्म में अर्जुन कपूर ने बिहारी लड़के का किरदार बखूबी निभाया है। किन्तु कुछ कुछ जगह पर वे अपने किरदार से भटकते हुए भी नज़र आते हैं। कई जगह वे बोलचाल से बिल्कुल भी बिहारी नहीं लगते दूसरी ओर श्रद्धा कपूर ने भी अभिनय के मामले में औसत प्रदर्शन ही किया है। एक्टिंग से ज्यादा श्रद्धा के कपड़ों पर मेहनत की गई लगती है। विक्रांत मस्सी का काम भी सहज ही है और बाकी साथी कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है। एक बड़ी बात फिल्म की लोकेशंस है, जो कुलमिलाकर बढ़िया कही जा सकती है। दर्शकों को दिल्ली के साथ-साथ न्यूयॉर्क भी फिल्म में देखने को मिलेगा। विजुअल के हिसाब से फिल्म अच्छी है और साथ ही बैकग्राउंड स्कोर भी औसत स्तर का है। इसके अलावा इन दोनों कलाकारों की एक्टिंग आपको पसंद है तो आप फिल्म एक बार जरूर देख सकते हैं।
दूसरी ओर हाफ गर्लफ्रेंड उपन्यास को चेतन भगत की सबसे खराब उपन्यासों में गिना जाता है। यही कारण है कि फिल्म की भी कहानी साधारण से ज्यादा कुछ नहीं बन पाई। ठीक फ़िल्म के एक डायलॉग की तरह जब माधव का दोस्त (विक्रांत मस्सी) शैलेश कहता है- हाफ़ गर्लफ्रेंड मतलब दोस्त से कुछ ज़्यादा और गर्लफ्रेंड से कुछ कम। लेकिन रिया का किरदार कुछ इस तरह लिखा गया है कि सारा मामला कन्फ्यूज सा नजर आता है। माधव को रिया किस करती है, उसके साथ अकेले कमरे में भी जाती है तो माधव यही समझता है कि रिया भी उसे चाहती है लेकिन रिया अपने आपको हाफ गर्लफ्रेंड बताती है। माधव को यह बात समझ नहीं आती। रिया का जब मन चाहे गर्लफ्रेंड वाला व्यवहार और जब मन किया तो हाफ गर्लफ्रेंड वाला व्यवहार दर्शकों को उलझाए रखता है।
इसके अलावा फ़िल्म की कहानी में लड़कियों के लिए गांव में स्कूल, शौचालय, रिया के माता-पिता की अनबन, बिल गेट्स द्वारा आर्थिक मदद, रिया का सिंगिंग का सपना, रिया की बीमारी और ऐसी ही कई और बातों का समावेश किया गया है, लेकिन ये सब बातें फ़िल्म को उसके मूल उद्देश्य से भटकाती ही हैं उसकी कमियों को भी नहीं ढ़क पातीं। फिल्म के अमूमन सभी डायलॉग औसत स्तर के हैं। रोमांस भी फ़िल्म में अच्छे से फिल्माया नहीं गया है और ना ही इमोशनल सीन। यही कारण है कि फिल्म से आप खुद को कनेक्ट कर पाने में कई जगह असहज महसूस करते हैं। इन सबके अलावा एक चीज और अजीब लगती है कि रिया जब भी उदास होती है। इंडिया गेट के अंदर घुसकर ऊपर पहुंच जाती है, एक बार जाना ठीक लगता है लेकिन इतनी सिक्योरिटी होने के बावजूद कई बार रिया का इंडिया गेट पर चढ़ना बेहद बनावटी लगता है। ख़ास करके जब वह अपनी शादी का कार्ड माधव को इंडिया गेट के ऊपर जाकर देती है। जबकि उनके बीच अब पहले जैसा कोई रिलेशन नहीं रह गया है। लेकिन हाँ अगर आप चेतन भगत की किताबें पसंद करते हैं और श्रद्धा कपूर तथा अर्जुन कपूर के फैन हैं तो आप यह फिल्म देख सकते हैं। पर इंटरवल के बाद बहुत खींची गई फ़िल्म लगती है हाफ़ गर्लफ्रेंड। लगता है अब खत्म हुई तब खत्म हुई लेकिन खत्म नहीं होती।
चेतन भगत के उपन्यास पर इससे पहले भी कई फिल्में बन चुकी हैं मसलन ‘3 इडियट्स’ और ‘2 स्टेट्स जो सुपरहिट भी हुई हैं। ‘आशिकी 2’ और ‘एक विलेन’ जैसी हिट फिल्में निर्देशित करने वाले मोहित सूरी ने चेतन भगत के उपन्यास ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ पर उसी टाइटल के साथ फिल्म बनाई है। लेकिन यह फिल्म औसत ही रही है। गानों के मामले में राहुल मिश्रा का गाया ‘तू ही है’ जो आपको मदहोश करता है। ख़ास करके आज़कल के प्रेमियों के लिए यह गाना खास स्पेशल होगा और इसके अलावा दूसरा गाना आज के जमाने के सुपरहिट आवाज़ के मालिक अरिजीत सिंह का ‘फ़िर भी तुमको चाहूँगा’ लाज़वाब है और यही गाना फ़िल्म के ख़त्म होने के बाद तक आपको याद रह पाता है।
इन सबके बाद अगर उपन्यास और फ़िल्म के शीर्षक को गौर से देखें तो आप पाएंगे कि हाफ़ जैसा कुछ भी नहीं होता और रिलेशनशिप के मामलों में तो कतई नहीं। फिल्म देखने जाने से पहले इस सवाल पर गौर करेंगे तो शायद फ़िल्म ही देखने न जाए आप। दूसरी ओर सबसे बड़ी सोचने की बात लड़कियों के लिए है कि क्या खुद लड़कियां हाफ़ गर्लफ्रैंड कहलाना पसंद करेंगीं? यदि कोई लड़की किसी की गर्लफ्रेंड है, तो वह गर्लफ्रेंड है, इसमें हॉफ गर्लफ्रेंड जैसा कोई औचित्य ही नहीं है। असल में यह उपन्यास तथा उसकी कहानी सिर्फ पुरुषवादी सोच का नतीजा है। ऐसे में हम यही कह सकते हैं कि चेतन भगत के नॉवेल पर आधारित फिल्म हाफ गर्लफ्रेंड पर सिर्फ पुरुष की सोच व उसके पक्ष को दर्शाया गया है।
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