फिल्म रिव्यू

रिव्यू- राजस्थानी सिनेमा का बैंड बजाता ‘डीजे मारवाड़’

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तनुज व्यास राजस्थानी भाषा के ओटीटी प्लेटफार्म स्टेजएप पर बतौर कंटेंट हैड रह चुके हैं और अब वहीं से उनकी फ़िल्म आई है पिछले दिनों। डीजे मारवाड़ ‘DJ Marwar’ वे इससे पहले नमक, झूठे तारे (the lying stars), थिंक पावर जैसी फ़िल्में बनाने के साथ ही ‘सुहाना सफ़र विद अन्नू कपूर’ के कई  शोज़ भी लिख चुके हैं। नमक, झूठे तारे जैसी औसत से कहीं ऊपर की फ़िल्म बना चुके तनुज इस बार डीजे मारवाड़ लेकर आये हैं तो चलिए शुरू करते हैं पड़ताल –

राजस्थानी सिनेमा का बैंड बजाता 'डीजे मारवाड़'
राजस्थानी सिनेमा का बैंड बजाता ‘डीजे मारवाड़’

कहानी है एक ऐसे लड़के की जो अपने बाप के नौकरी से सस्पेंड हो जाने से थोड़ा खफ़ा भी है और अपना डीजे भी खोलना चाहता है। ईमानदार सरकारी नौकरी वाले का बेटा इतने परले दर्जे का काम कर रहा है इस बात से बाप भी खफ़ा है। बाप-बेटे की इस तनातनी से वह घर से निकल जाता है और एक दिन उसका बाप ही उसे घर लौट आने को कहता है। आखिर क्यों बुला रहा है उसका बाप? क्या बाप का बेटे के प्रति प्यार जाग उठा? या बेटे ने कुछ अनोखा कारनामा कर दिया? करीब 1 घंटे 40 मिनट लम्बी यह कहानी बाप-बेटे की तनातनी, बाप के सस्पेंड होने और बेटे की प्रेम कहानी के इर्द-गिर्द घुमती है।

राजस्थानी सिनेमा का बैंड बजाता 'डीजे मारवाड़'
राजस्थानी सिनेमा का बैंड बजाता ‘डीजे मारवाड़’

राजस्थानी सिनेमा अव्वल तो साँसे भी घुट-घुटकर ले रहा है। साल भर में इक्का-दुक्का सिनेमाघरों में लगने वाली और चार-छह फ़िल्में साल में ओटीटी पर आने से भी राजस्थानी सिनेमा का भला होता नजर नहीं आता। आखिर कमी कहाँ है? यह प्रश्न अब निर्माताओं, निर्देशकों से पूछने बंद कर देने चाहिए बल्कि उन्हें चाहिए कि वे आन्दोलन करें और चुनावी रणनीति की तरह घर-घर जाकर इस बात की एक दो साल पड़ताल करें कि आखिर राजस्थानी सिनेमा को कैसे दर्शकों की कमी के संकट से उबारा जाए?

हरीश पुरोहित, जया पाण्डेय, भानू पुरोहित, दिलीप वैष्णव, अफजल हुसैन, गजेन्द्र श्रोत्रिय, समीर खन्ना, हितेंद्र गोयल, दिनेश प्रधान आदि मिलकर फ़िल्म की कहानी को कहने भर के लिए कहते दिखाई पड़ते हैं। दरअसल जिस सिनेमा में भाव न हो, जिस सिनेमा को देखते हुए आपके दिल में हौल न उठें, जिस सिनेमा के गीतों को देखते-सुनते हुए आपके पाँव न थिरकें वह सिनेमा ही नहीं कहा जा सकता। कायदे से वह एक कहानी होती है भावहीन। राजस्थानी सिनेमा भी इस डीजे मारवाड़ की तरह भावहीन ही है जिसमें न तो कायदे का डीजे है और न ही उससे उपजने वाला भाव। उस पर गीत-संगीत का बेमज़ा और किरकिरा स्वाद अलग से बुरका हुआ दिखाई पड़ता है।

राजस्थानी सिनेमा का बैंड बजाता 'डीजे मारवाड़'
राजस्थानी सिनेमा का बैंड बजाता ‘डीजे मारवाड़’

डीजे मारवाड़ उस कानफोडू संगीत जैसी है जिसे देख-सुन आप बैंड की धुन पर थिरकने को मजबूर नहीं हो सकते। राजस्थानी स्टेज को, तनुज व्यास को चाहिए की राजस्थानी सिनेमा का उद्धार वे अगर असल में करना चाहते हैं तो एक उपकार करें कायदे से स्क्रिप्ट का फैलाव करते हुए, कायदे के एक्शन सीन फिल्माते हुए, कायदे से भाव-विभोर कर देने वाले सीन परदे पर उकेरते हुए एक पेंटिंग के जैसा सिनेमा बनाएं। फिलहाल के लिए तो राजस्थानी सिनेमा का बैंड ही उन्होंने इस फिल्म से बजाया है।

अपनी रेटिंग.... 2 स्टार

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