पुरानी दिल्ली का ठेठ हिंदुस्तानी नाश्ता नहीं खाया तो क्या खाया
अपने खान-पान और स्वाद के लिए पहचान रखने वाले हमारे देश की राजधानी से अमिताभ स. हर सप्ताह एक स्वाद की कहानी आपको सुनाने-बताने आते हैं। इस देश के हर राज्य की अपनी एक अलग पहचान खान-पान के लिए बनी हुई है। दिल्ली, पंजाब, उत्तराखंड, दक्षिण भारत, राजस्थान, बिहार आदि राज्य अपनी-अपनी विशेष पहचान खाने के मामले में विश्व प्रसिद्ध हैसियत रखते हैं। हमारा यह स्वाद का कॉलम विशेष रूप से रखा गया है। आज के कॉलम में दिल्ली के रहने वाले स्वतंत्र पत्रकार और स्तम्भकार तथा स्वाद लेखन के लिए पहचान रखने वाले अमिताभ स. आज “पुरानी दिल्ली का ठेठ हिन्दुस्तानी नाश्ता नहीं खाया तो क्या खाया” लेकर आये हैं।
अमिताभ स.
पुरानी दिल्ली का दशकों पुराना नाश्ता है नागौरी हलवा। सदियों पुराना भी कह सकते हैं। क्योंकि पुरानी दिल्ली के गली- कूचों के हलवाइयों ने ही इसे दिल्ली और देशवासियों को पहले- पहल खिलाया था। आज भी शायद यह दिल्ली के सिवाय किसी अन्य शहर में खाने को नहीं मिलता। नागौरी हलवा असल में कॉम्बो है, जिसमें सूजी के गोल-गप्पों जैसी ज़रा बड़े साइज़ की नागौरी होती है, साथ में आलू- छोले की सब्जी और देसी घी का सूजी हलवा भी। स्वाद बढ़ाने के लिए चटनियां- अचार तो खैर हैं ही। सभी को मिला-जुला कर खाते हैं, जिससे फीका, नमकीन और मीठा तीनों जायके मुंह में उभरते हैं। बड़ा मज़ेदार लगता है।
पुरानी दिल्ली की गिनी- चुनी हलवाई की दुकानें आज भी रोज सुबह नागौरी हलवा परोसती हैं। सन् 1910 के आसपास चावड़ी बाजार में आनंदी मल हलवाई ने ’श्याम स्वीट्स’ से नागौरी हलवा का जलवा शुरू किया। सीता राम बाजार में ’राम स्वरूप हलवाई’ भी बीते 90 साल से नागौरी हलवा चखा रहा है। इसकी खासियत है कि यहां आज भी नागौरी हलवा ढाक के पत्तों पर परोसा जाता है। उधर ’राम प्रसाद मक्खन लाल’ तो खारी बावली में 1940 से आज तक देसी घी का नागौरी हलवा खिला रहा है।चांदनी चौक के बीचोंबीच कूचा घासी राम स्थित ’शिव मिष्ठान भंडार’ को साल 1950- 51 से देसी घी का नागौरी हलवा बनाने और खिलाने का श्रेय तब के मालिक मोहर सिंह को जाता है। अब उनके बेटे ओम प्रकाश यादव के बाद, आज पोता योगेश यादव पुश्तैनी रेसिपी के दम पर छाए हैं।
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नागौरी हलवा ठेठ पुरानी दिल्ली वालों का नाश्ता रहा है। और आज भी पुरानी दिल्ली के गली-कूचों के हलवाई ही इसे परोसते हैं। असल में, बेड़मी-आलू तो दिल्ली वाले मुगलों के जमाने से खा रहे हैं। इसी दौरान, गर्मा-गर्म बेड़मी और आलू की सब्जी के साथ देसी घी का हलवा चखा, तो खाने वालों को और ज्यादा मज़ा आया। यहीं कहीं बेड़मी से मिलती-जुलती नागौरी तल-तल कर, आलू की सब्जी और हलवा के कॉम्बो को पेश किया, तो दिल्ली को अपना नायाब नाश्ता मिल गया।
नागौरी हलवा की चाहत ही है कि हाल के सालों में दिल्ली के अन्य बाज़ारों में भी मिलने लगा है। साउथ दिल्ली में चखना चाहें, तो ग्रीन पार्क मेन मार्केट के बीचों-बीच ’एवर ग्रीन स्वीट हाउस’ में किसी इतवार जा सकते हैं। इसी स्टाइल का नागौरी हलवा उत्तरी दिल्ली के कमला नगर मार्केट में ’श्री बांके बिहारी बृजवासी’ के नाम की हलवाई की दुकान पर भी ट्राई कर सकते हैं।
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(लेखक फूड कॉलमिस्ट हैं और नवभारत टाइम्स ने उनकी किताब ‘चटपटी दिल्ली’ छापी है।)
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