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दिल्ली की रामलीला से खोमचे का सरताज बना ‘चीला’

खाता रहे मेरा दिल… गुनगुनाते-गुनगुनाते खाते-पीते रहिए दिल्ली में। दिल्ली देश की ही नहीं, स्ट्रीट फूड की भी तो केपिटल है। जितनी वैरायटी का बेशुमार स्ट्रीट फूड दिल्ली की गलियों बाजारों के हर नुक्कड़ पर परोसा जाता है, उतना शायद देश में और कहीं नहीं। और फिर, दिल्ली के स्ट्रीट फूड की दुनिया के रंग देखिए – माइक्रोअवन के ज़माने में आज भी यहां-वहां कोयले की अंगीठी और भट्ठी पर मिठाइयां-कचौड़ियां बनती और बिकती हैं। पुरानी दिल्ली तो सैकड़ों सालों से दिल्ली के स्ट्रीट फूड हब के तौर पर जानी जाती है। हांलाकि वक्त के साथ-साथ शहर के कई इलाकों में एक से एक खाने-पीने के ठीहे-ठिकाने बनते गए। तो चलिए निकल चले दिल्ली की गली-कूचों मे स्वाद की खोज में। अपनी किताब चटपटी दिल्ली में लिखने वाले अमिताभ स. के इस लेख से एक बार फिर हम दिल्ली की गलियों में स्वाद का गोता लगाने के लिए तैयार हैं….

अमिताभ स.

दिल्ली की रामलीला से खोमचे का सरताज बना चीला
चटपटी दिल्ली किताब

तवे पर टकाटक बनता गर्म-गर्म मूंग दाल चीला खाया है क्या ?  आमतौर पर, चाट- खोमचे वाले बनाते- परोसते हैं। किसी – किसी खोमचे वाले के देसी घी में तले मूंग दाल चीले तो कमाल के टेस्टी लगते हैं। चीले में मटर- पनीर की मसालेदार फीलिंग करते हैं, जिससे स्वाद में चार चांद लग जाता है। संग पेश हरी और लाल चटनियों के साथ लगा- लगा कर खाएंगे, तो और मज़ा आता है।

खाने में मुलायम और  हल्के मसाले के होते हैं, इसलिए बगैर दांत वाले बुजुर्ग और बच्चे भी मजे़- मजे़ खा सकते हैं।​दिल्ली ही नहीं, देश- दुनिया  को टेस्टी- टेस्टी मूंग दाल चीला खिलाने का श्रेय किसे जाता है? दिल्ली के दिल चांदनी चौक से सटे फतेहपुरी स्थित क्लॉथ मार्केट के अंदर गणेश बाज़ार और महावीर बाज़ार की ऐन नुक्कड़ पर छोटी-सी आम-सी दुकान है- ‘लाल राम श्री कृष्ण गुप्ता’। रविवार के सिवाय बाकी रोज सुबह 11 से रात 8 बजे तक गली में देसी घी की खुशबू यूं तैरती रहती है कि हर कोई खुद-ब-खुद दुकान तक खिंचा चला जाता है। और बगैर चीले खाए रह नहीं सकता।
कोयले की भट्टी पर, मोटे तले के गोल तवे पर सिकते मूंग दाल चीले की महक बिना खाए वाकई जाने नहीं देती। चीला तो इनकी लिजेन्ड्री आइटम है।​हालांकि लाला राम गुप्ता ने 1980 में दुकान से चीला का जलवा बिखेरा, लेकिन उन्होंने इसकी शुरूआत दुकान खोलने से बीसेक साल पहले श्री धार्मिक रामलीला कमेटी के रामलीला मेले के जनक बाज़ार में स्टॉल लगा कर की थी। तब इस रामलीला और जनक बाज़ार का आयोजन चांदनी चौक स्थित फव्वारा चौक के नजदीक मैदान में होता था।
दिल्ली की रामलीला से खोमचे का सरताज बना चीला
दिल्ली की रामलीला से खोमचे का सरताज बना चीला फोटो साभार अमिताभ स.
बताते हैं कि उन्नीस सौ साठ, सत्तर और अस्सी के दशक तक जनक बाज़ार में पुरानी दिल्ली के सीताराम बाजार से मान सिंह, कालीचरण वगैरह हरफनमौला हलवाई अपने-अपने स्टॉल लगाते थे। और उनमें नई से नई और स्वादिष्ट से स्वादिष्ट आइटम बनाने, परोसने और खिलाने की प्रतियोगिता-सी होती थी।
दिल्ली की रामलीला से खोमचे का सरताज बना चीला
दिल्ली की रामलीला से खोमचे का सरताज बना चीला फोटो साभार अमिताभ स.

साल 1960 की रामलीला के ऐसे ही माहौल में, लाला राम गुप्ता ने पहली दफा तवे पर टकाटक चीला क्या बनाया और खिलाया कि दिल्ली तो दीवानी हो गई।​इससे पहले दिल्ली या देश के किसी शहर ने मूंग दाल का चीला न देखा था, न ही खाया था। लाला राम गुप्ता के जहन में, बंटवारे के वक्त अविभाजित पाकिस्तान से दिल्ली आए रिफ्यूजी पंजाबी परिवारों के घरों मे नाश्ते के वक्त बनता बेसन का पूरा या पूड़ा रहा होगा। उन्होंने बेसन को मूंग दाल में बदल दिया और जायका बढ़ाने के लिए मटर-पनीर की फीलिंग भी की।

​फिर तो लोग हर साल लाला राम गुप्ता के हाथों परोसा गर्म- मुलायम चीला खाने के लिए रामलीला मेले का इंतजार करने लगे। अब यह रामलीला लाल क़िले के बाग में शिफ्ट हो गई है।और इसी रामलीला के जनक बाजार में उनका ‘एल एस केटरर’ नाम से स्टॉल लगता है। आज भी चीला खाने भीड़ उमड़ती है। और फिर 1980 में लोगों की एक-एक साल लम्बे इंतजार की घड़ियां खत्म हुईं और क्लॉथ मार्केट की दुकान से रोज चीला खिलाने की शुरूआत लाला राम गुप्ता ने की। आज उनके बेटे श्री कृष्ण गुप्ता और दोनों पोते पुनीत गुप्ता व हिमांशु गुप्ता अपनी लिजेन्ड्री आइटम की धूम बरकरार रखे हैं।
चूंकि अब तो चीला दिल्ली और देश के कई शहरों के ठीहे-ठिकानों पर मिलता है, फिर भी, सेलेब्रिटीज़ लाला राम गुप्ता की दुकान का चीला खाना ही पसन्द करते हैं। कुछ साल पहले रिलायंस ग्रुप के बॉस मुकेश अम्बानी के 50वें जन्म दिन की पार्टी में जाम नगर में इन्हीं का चीला पहुंचा था। इन पार्टियों में, परमेश्वर गोदरेज तो चीला देखते ही झूम उठती और कहने लगती, ‘चिल्ला- चिल्ला कर खाओ जी चीला।’
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अमिताभ स.

अमिताभ स. स्वतंत्र पत्रकार और स्तम्भकार हैं। बीते पंद्रह सालों से ‘संडे नवभारत टाइम्स’ में वीकली कॉलम ‘चख लें’ से दिल्ली के बेस्ट स्टीट फूड को लोगों तक पहुंचा रहे हैं। साथ-साथ दिल्ली से प्रकाशित टाइम्स ग्रुप के ही ‘सान्ध्य टाइम्स’ में भी फूड कॉलम ‘स्वाद लाजवाब’ छपते 20 साल हो चुके हैं। नवभारत टाइम्स ने ही ‘चटपटी दिल्ली’ नाम की किताब भी छापी है। ट्रेवल, दिल्ली हेरिटेज जैसे अन्य विषयों पर भी लिखते हैं। ‘बी कॉम (ऑनर्स) ‘श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स’, दिल्ली यूनिवर्सिटी से किया। कॉलेज मैगजीन ‘यमुना’ का तीन वर्षों तक सम्पादन किया है। 1994 से नॉर्थ दिल्ली में गेस्ट हाउस का बिजनेस करते हैं।

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