बुक रिव्यू- ‘अखिलामृतम्’ शब्दों का अखिल अमृत
अखिलेन्द्र मिश्र सिनेमा के चिर-परिचित कलाकार हैं। करीब तीन दशकों से सिनेमा में अपने दमदार अभिनय और जुदा-जुदा किरदारों से दर्शकों को आकर्षित करते रहे हैं। बिहार राज्य के सिवान में जन्में और बचपन से रंगमंच से जुड़ने वाले अखिलेन्द्र मिश्र ने करीब 200 फ़िल्मों, वेब सीरीज, धारावाहिकों में अभिनय कर सिनेमा को समृद्ध किया है। वीरगति, दो आँखें बारह हाथ, सरफ़रोश, लगान, द लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह आदि जैसी कई फ़िल्मों को अखिलेन्द्र मिश्र ने अपने अभिनय से सजाया है।
इधर वे काफ़ी समय से लेखन कार्य में भी संलग्न नजर आये हैं। उनका पहला ही काव्य संग्रह ‘अखिलामृतम्’ अमेजन पर बेस्ट सेलर रहा है और हाल ही में आई उनकी एक और पुस्तक ‘अभिनय, अभिनेता और अध्यात्म’ भी इन दिनों काफ़ी चर्चा में है। फिलहाल बात उनके पहले काव्य संग्रह की, अखिलेन्द्र मिश्र का यह पहला काव्य संग्रह ‘अनंग प्रकाशन’ से साल 2020 में आया। कोरोना काल के समय आध्यात्मिक वृति के साथ शब्दों की यात्रा करते हुए अखिलेन्द्र मिश्र हमें शब्दों की उस अखिल यात्रा पर लेकर चलते हैं जिनके बारे में कहीं-न-कहीं हम सभी जानते तो हैं किन्तु वह हमारे मस्तिष्क में कहीं चेतना शून्य होकर दब से गये हैं।
करीब 25 कविताओं का यह काव्य संग्रह ‘शब्द’ कविता से आरम्भ होता है और शब्दों की यात्रा करते हुए यह देशज पर यानी भोजपुरी भाषा पर आकर ठहरता है। इस काव्य संग्रह की अंतिम कविता ‘हमार माई भोजपुरी’ है। इस काव्य संग्रह को लेकर स्वयं लेखक, अभिनेता, कवि अखिलेन्द्र लिखते हैं- इस काव्य संग्रह की एक-एक कविता ब्रह्ममूहूर्त में लिखी गई है। यूँ भी बतौर इंसान अखिलेन्द्र काफ़ी आध्यात्मिक प्रवृति के हैं। चूँकि सम्पूर्ण सृष्टि का आधार ही अध्यात्म है लिहाजा रंगमंच और सिनेमा का छात्र इन सबसे कैसे अछूता रह सकता था भला!
यह भी एक वजह हो सकती है डॉ. कुमार विमलेन्दु सिंह के इस काव्य संग्रह की भूमिका में लिखने की, वे लिखते हैं- भारतीय दर्शन शास्त्र दर्शन को ऐसे परिभाषित करता है, “दृश्यते इति दर्शनम” “दृश्यते अनेन इति दर्शनम” अर्थात् जो दिख रहा है वो सब दर्शन है और जिससे देखा जा रहा है वह भी दर्शन है। ऐसी उक्ति और दर्शन की ऐसी महान परंपरा ने एक पूरा प्रसार निर्मित किया है, जहां चेतना के सहयोग से अर्थ को सदा उपस्थित पाया जा सकता है। अखिलेन्द्र मिश्र से मेरी मुलाक़ात पहली बार तो मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में एक सेमीनार के दौरान हुई जहाँ उन्होंने मेरी दो किताबों का विमोचन किया था। किन्तु सिनेमा के माध्यम से मैं उन्हें बचपन से उनकी फ़िल्में देखकर जानने लगा था।
खैर अखिलेन्द्र मिश्र अपनी पहली कविता में शब्दों के मायने कुछ यूँ समझाते हैं- शब्द से बनी भाषा/ भाषा से शब्द नहीं/ भाषा संचार है/ शब्द संसार है/ शब्द श्रव्य है/ शब्द दृश्य है/ शब्द ही सृजन/ शब्द ही विध्वंस है/ शब्द ही शिव है / बिना शब्द के सब शव है। ‘शब्द कविता के माध्यम से इस सृष्टि के निर्माण और उसके गर्भ में पल रहे विध्वंस को एक कवि/कलाकार ही इस तरह व्याख्यायित कर सकता है। कायदे से यह पूरी कविता पढ़ते समय पाठक एक ओज और तेज के गुणधर्म से होकर गुजरता है। फिर आपने यदि उस कवि को देखा हो, सुना हो तो आप पाठक स्वयं उस कवि/कलाकार की आव़ाज को भी कविता के पाठ के समय उतरता हुआ देखते हैं। इससे अधिक भला किसी कविता की और सार्थकता क्या होगी?
समाज, परम्परा और स्त्री चेतना का गुम्फ़न है ‘सीता पुनि बोली’
नाटक, प्रवासी, जड़, विद्या, चेतावनी, कर्म, धर्म, चेतना, प्रेम, नवयुग शीर्षक की कविताएँ आपको अपने पाठ के माध्यम से इस चराचर जगत से बाहर ले जाकर उस अलौकिक जगत में यात्रा करवा लाती है कि इसे पढ़ते हुए आपका ऐसी किताबों को समय देना जायज प्रतीत होता है। ठीक इसी प्रकार नारी, वह देख रहा है, ब्रह्म, कविता, शिव. मनुष्य, ध्यान, दान, नालंदा, भारत, राममय रावण, बाढ़, गीत और हमार माई भोजपुरी कविताओं के माध्यम से कोई कवि जो रंगमंच का भी छात्र एवं अध्य्येता हो वही ऐसे भाव आपमें उपजा सकता है कि उसकी कविताओं को पढ़ते हुए आप इस पूरी कायनात के इर्द-गिर्द घूम आते हैं। और कविता के शब्दों के माध्यम से एक ऐसी ऊर्जा का निर्माण पाठक अपने भीतर एवं चहुँ ओर होते हुए देखता है जिससे आपको इसे पढ़ने का सुख अकथ एवं अकूत नजर आता है।
अखिलेन्द्र मिश्र की ये कविताएँ आपको गुरु की विद्या भी प्रदान करती हैं तो गुरुकुल की विद्या भी। यही वजह है कि प्राचीन विद्या और सनातन विद्या के बीच से गुजरते हुए सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विद्या की यात्रा तय करते हुए उनकी लिखी कविताएँ पारम्परिक विद्या के सहारे पल्लवित होती हुई ज्ञान की विद्या तक आपको लेकर जाती हैं। फिर यही कविताएँ मनुष्य के चेतावनी भी देती हैं और कहती हैं- अभी भी समय है/ समझ जा/ संभल जा/ सुधर जा/ कर विचार हो तैयार।
धर्म का पालन करने की सीख हमें अपने शास्त्रों से मिलती है। और उन्हीं शास्त्रों से अखिलेन्द्र मिश्र एक उदाहरण लेते हुए अपनी कविता धर्म में कहते हैं-
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधः दशकं धर्म लक्षणम् ।।
धैर्य/ क्षमा/ लोभ न करना/ चोरी न करना/ पवित्रता/ इंद्रियों का निग्रह करना/ सुबुद्धि/ विद्या/ सत्य/ क्रोध न करना
यह हैं धर्मं के दस लक्षण
करें यदि धर्म का पालन
व्यक्तित्व का प्रतिबिंब बन स्वतः प्रस्फुटित हो जाते ये लक्षण
यदि ये हैं धर्म के लक्षण तो क्या है धर्म ?
धारणाद धर्म इति आहुः ।
जिसे किया जाता धारण
उसे कहते हैं धर्म
धर्म की इसके इतर एक और परिभाषा हमारे शास्त्रों में मिलती है- धर्मस्य इति धारणे। यानी जिसे धारण किया जा सके वही धर्म है। उन धारण किये जाने योग्य धर्म की चर्चा भी कवि अखिलेन्द्र मिश्र अपनी कविता में करना नहीं भूलते। ‘नवयुग’ के आने की परिकल्पना और ‘नारी’ को लेकर चिंताएं भी इस काव्य संग्रह में सहज ही लेखक मन से उभर आई हैं।
अनंग प्रकाशन से साल 2020 में आये इस कविता संग्रह से सहृदय पाठक अवश्य ही लाभान्वित होता है और उसे उसके मानवीय गुणों से पूरित करते हुए लेखक, कवि, अभिनेता अखिलेन्द्र मिश्र शब्दों की उस अखिल यात्रा पर ले जाकर छोड़ते हैं जहाँ से उसकी मानसिक उन्नति उसे शिखर तक ले जाने में अवश्यम्भावी प्रतीत होने लगती है।
अखिलेन्द्र मिश्र के इस काव्य संग्रह को अमेजन पर इस लिंक से ख़रीदा जा सकता है।