एक लड़की ने ‘राजवीर गुर्जर’ को बना दिया एक्टर! आखिर कौन थी वो और कौन है राजवीर गुर्जर बस्सी जानिये गंगानगर वाला के इस बार की बातचीत में….
राजवीर गुर्जर बस्सी बांसख़ो बस्सी में साल 1993 में पैदा हुए और फिर राजधानी जयपुर में अपनी स्कूली शिक्षा ग्रहण की। लेकिन उन्हें राजधानी में अपने आपको शहरी बच्चों के साथ ढलने में काफ़ी समस्याएं भी हुईं, जिसके चलते वे काफ़ी शर्मिले भी हो गये। बचपन की स्कूली शिक्षा को पूरा करने वे सीकर प्रस्थान किया और वहाँ एक अलग ही संस्कृति से उन्हें रूबरू होने का मौका मिला। सीकर में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने ने कॉलेज की पढ़ाई जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी से बी.सीए. और एम.सी.ए. में पूरी की और कंप्यूटर इंजीनियर बनने चल दिए। किन्तु उनका यह सपना बीच में ही अधूरा रह गया वजह थी एक्टिंग। राजवीर अभिनय के साथ-साथ राजस्थान में इंस्टाग्राम पर भी काफ़ी चर्चित व्यक्तित्व रखते हैं।
कंप्यूटर इंजीनियर का सपना लिए राजवीर बी.सी.ए, एम.सी.ए. करते हुए एक बार अपनी एक लड़की दोस्त के ज़बरदस्ती करने पर मॉडलिंग शो का हिस्सा बन गये। कॉलेज के दौरान ही कई शो करने के बाद जब राजवीर की उस महिला मित्र ने जब कहा कि- तुम्हारा चेहरा कैमरे के लिए बना है। जो कैमरे पर आते ही लोगों को बहुत प्रभावित करता है। बस फिर क्या था राजवीर चल पड़े उसी राह पर। जिस पर चलते-चलते पहले पहल उन्होंने एक पंजाबी एल्बम किया, जो उस वक्त डी.डी पंजाबी पर आया। राजवीर बताते हैं कि- जब उनकी माँ ने उनका यह टैलेंट देखा तो उन्होंने काफ़ी तारीफें की। और यहीं से उनके फ़िल्मी करियर की शुरुआत हो गई। राजवीर ने इस दौरान खुद के निर्देशन में भी कई गाने बनाए और एक दिन उनकी जिंदगी में यह भी आया कि राजस्थान के ही कलाकार श्रवण सागर के साथ उनकी पहली फिल्म आटा-साटा आई जो स्टेज एप्प पर रिलीज हुई।
संभावनाओं का एक बीज बंजर को भी उपजाऊ बना सकता है- श्रवण सागर
राजवीर गुर्जर ने कभी रंगमंच तो नहीं किया लेकिन रंगमंच देखते हुए अभिनय की बारीकियां भी सीखीं। जिन्हें बाद में वे अकेले में शीशे के सामने खड़े होकर एक्टिंग करके खुद को मांजने की कोशिशें की। राजवीर बातचीत के दौरान कहते हैं कि उन्होंने- राजस्थानी सिनेमा में एक समय तक सिर्फ़ श्रवण सागर कल्याण को अख़बार की न्यूज़ में देखा था। अभिनय करते, सीखते हुए जब राजवीर गुर्जर के एक दोस्त रवि पटेल ने कहा कि- राजस्थान में एक बड़ी फ़िल्म की कास्टिंग हो रही है और तुम भी उसके लिए ऑडिशन दो तो राजवीर को यह भी नहीं मालूम था कि इसे कौन बनाने वाला है और फिर जब ऑडिशन के दौरान उन्हें जब श्रवण सागर और फ़िल्म निर्माता मनमोहन कसाना मिले तो उन्होंने राजवीर को फ़िल्म में मुख्य किरदार हेतु चुन लिया। हालांकि बकौल राजवीर गुर्जर वे एक छोटे से किरदार के लिए ऑडिशन देने गये थे लेकिन उन्हें मुख्य किरदार मिल गया। अपनी पहली ही फ़िल्म में मुख्य किरदार पाकर राजवीर काफ़ी खुश थे। क्योंकि यहाँ से उनकी अभिनय यात्रा आरम्भ होने वाली थी।
राजस्थानी सिनेमा वेंटिलेटर पर है ‘निर्मल चिरानियाँ’
अपनी आगामी फ़िल्म भरखमा के बारे में बताते हुए राजवीर कहते हैं कि- मैंने अब तक सामाजिक मुद्दों की फिल्मों में ही काम किया था। मगर अब आने वाली फ़िल्म ‘भरख़मा’ एक्शन से भरपूर फ़िल्म है। भैरव सिंह और भानुमति की इस कहानी से दर्शकों को बतौर राजवीर गुर्जर एक ही फ़िल्म में अलग-अलग ज़ोनर देखने को मिलेंगे। जिसमें हॉरर, ड्रामा, कॉमेडी आदि सभी तत्व मौजूद हैं। राजवीर कहते हैं कि- जब आप किसी के भी साथ कोई काम करते हैं तो आंतरिक आनन्द के साथ-साथ काफ़ी कुछ सीखने को भी मिलता है। कुछ ऐसा ही अनुभव उन्हें श्रवण सागर की ‘भरखमा’ फ़िल्म की शूटिंग के दौरान भी हुआ। वे कहते हैं कि फ़िल्म के शूट से लेकर इसके अब रिलीज होने की पूरी तैयारियों के बीच श्रवण पूरे दिल से उसे आम जनता तक लाने का प्रयास करते नजर आये। राजवीर गुर्जर के साथ इस फ़िल्म में दर्शकों को राजस्थानी कलाकार ‘आयुषी सिहं सिसोदिया’ भी नजर आने वाली हैं।
भरख़मा की कहानी पर बात करते हुए राजवीर गुर्जर कहते हैं कि- ‘भरखमा’ का मतलब है सहनशील होना। यह फ़िल्म एक ऐसी प्रेम कहानी को सामने लाएगी जो इससे पहले किताब की शक्ल में भी सम्मानित हो चुकी है। वे कहते हैं कि अब तक की तमाम राजस्थानी फ़िल्मों से कहीं ज्यादा इसमें दर्शकों को एक्शन भी देखने को मिलेगा। श्रवण सागर निर्मित और राजवीर गुर्जर अभिनीत यह फ़िल्म जल्द ही सिनेमाघरों में 6 सितम्बर को देखने को मिल सकती है। एक्टर नहीं होते तो क्या होते? इस सवाल के जवाब में राजवीर कहते हैं कि- जब भी मैंने ऐसा सोचा तो पाया कि अगर मैं एक्टर नहीं होता तो अवश्य ही राजनेता होता। और इस क्षेत्र में रहते हुए मैं आज जितना सामाज सेवी हूँ उससे कहीं ज्यादा खुलकर समाज सेवा कर रहा होता।
राजस्थानी सिनेमा पर बात करते हुए राजवीर गुर्जर कहते हैं कि- राजस्थान के कलाकारों का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि हम राजस्थान में हैं जरूर लेकिन यहाँ की सरकारें ही सिनेमा के नाम पर ही गुंगी-बहरी हो जाती है। कलाकारों के साथ वे सौतेला व्यवहार करती नजर आती हैं, जिसके चलते कोई आर्थिक सहयोग भी नहीं मिलता। कुछ मिलता भी है तो वह है ज़लालत। वे कहते हैं कि- एक कड़वा सच भी है यहाँ के कलाकारों के लिए कि उन्हें कायदे से कोई जानता तक नहीं। और न ही सरकारें कोई कार्यक्रम या अभियान चलाकर उन्हें पहचान देना चाहती हैं। राजस्थान में सिनेमा के नाम तक का कोई विभाग राजवीर गुर्जर को नहीं नजर आता। यहाँ के कलाकारों का मजाक़ बनाना, सरकारी तंत्रों द्वारा लोकेशन उपलब्ध ना करवा पाना भी यहाँ कि सरकारों की उदासीनता को दर्शाता है। राजवीर कहते हैं कि सिनेमा के नाम पर हमारी सरकारें व सरकारी तंत्र निल बट्टे सन्नाटा है।
व्यक्तिगत तौर से वे लेखक, निर्देशक एस.एस राजामौली, हॉलीवुड के अभिनेता रोबर्ट डाउनी जूनियर को पसंद करते हैं तो वहीं गीतकार के मामले में उन्हें उदित नारायण ज्यादा पसंद आते हैं। राजस्थानी सिनेमा बना रहे निर्देशकों से वे बदलाव लाने की अपील पर कहते हैं कि- आवश्यकता है कि थोड़ा कमर्शियल फ़िल्मों की ओर रूख किया जाए। उन्हें लगता है कि ऐसा करने से एक-न-एक दिन राजस्थानी सिनेमा हिन्दी सिनेमा में भी राज करने लगेगा।
राजस्थानी सिनेमा में स्टेज ओटीटी की भूमिका को लेकर राजवीर गुर्जर बस्सी कहते हैं कि- उनकी सोच ग़लत नहीं कही जा सकती किन्तु स्टेज एप अगर पर्याप्त बजट राजस्थानी फिल्मों के लिए उपलब्ध नहीं करवाएगा तो अच्छे किसी राजस्थानी प्रोजेक्ट की उम्मीद भी वे लोग कैसे कर सकते हैं? यह सच है कि- शुरू से ही स्टेज ने कोई चेहरा बनाने का प्रयास नहीं किया। बल्कि वहाँ एक लॉबी बन चुकी है जो बस अपने परिचितों के प्रोजेक्ट पास करने में ही लगी रहती है। इसके बनिस्पत वे लोग यदि कुछ क्रिएटिव निर्देशकों को मौके दें तो कुछ सुधार भी नजर आ सकते हैं। राजवीर को लगता है कि- स्टेज और चौपाल जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म ख़्वाब देखते हैं कि राजस्थान के लोगों के साथ जुड़कर काम करने से वे कुछ बड़ा कर पाएंगे किन्तु अफ़सोस की वे अभी तक इसमें विफ़ल ही नजर आये। वे कहते हैं कि न तो उन्होंने यहाँ कोई कार्यालय बनाये और ना जमीनी स्तर पर काम किया इसके उल्ट उन्होंने इसे अपना व्यवसाय बना रखा है। एक बड़ी कमी राजवीर को यह भी नजर आती है कि- राजस्थान के कलाकारों को कभी हरियाणा के साथ नहीं जोड़ा गया, सीमित रह गई ये कंपनियां जो क्रांति लाने की बात करती थीं। बावजूद उन्हें एक उम्मीद नजर आती है कि राजस्थानी सिनेमा में क्रांति केवल राजस्थानी सिनेमा को सिनेमाघरों में प्रदर्शित करने से ही मिल सकती है।
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