ज्योतिषी

शारदीय नवरात्र और भारतीय संस्कृति

 

भारतीय संस्कृति दुनिया की सबसे प्राचीन संस्कृति है। भारतीय संस्कृति यूनान, रोम, मिस्र की संस्कृतियों के मिट जाने के बाद भी वैसी ही बनी रही तभी तो कहा गया- यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गये जहाँ से/कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। भारतीय संस्कृति दुनिया में बची बनी रही तो उसका प्रमुख कारण रहा यहाँ की सभ्यता का सबसे अधिक प्राचीन होना। जिसमें विविधताएँ भी हैं और भरपूर समृद्ध, सांस्कृतिक विरासत शामिल है। इसके साथ ही भारतीय संस्कृति अपने-आप को बदलते समय के साथ ढालती भी आई।

भारतीय संस्कृति आखिर क्या है!

संस्कृति किसी भी देश, जाति और समुदाय की पहचान होती है। किसी देश की संस्कृति से उस देश, जाति या समुदाय के उन संस्कारों का पता आसानी से लगाया जा सकता है, जिनके आधार पर वह समुदाय जीवन मूल्यों का निर्धारण करता है। साधारण अर्थ में कहें तो – संस्कार, सुधार, परिवार, शुद्धि, सजावट इत्यादि। हालांकि कुछ लोग  सभ्यता और संस्कृति दोनों का समान अर्थ मानते हैं लेकिन असल में संस्कृति और सभ्यता अलग-अलग होती हैं। सभ्यता में मनुष्य के राजनीतिक, प्रशासनिक, आर्थिक, प्रौद्योगिकीय और दृश्य कला रूप शामिल होते हैं जो जीवन को सुखमय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जबकि संस्कृति में कला, विज्ञान,संगीत, नृत्य और मानव जीवन शामिल होता है।

भारत का इतिहास और संस्कृति प्रवाहशील रही है यही वजह है कि इसे मानव सभ्यता का आरम्भ भी कहा जाता है। ऐसे कई प्रमाण भी मिले हैं जो इस बात की सत्यता की पुष्टि भी करते हैं। गोया कि सिन्धु घाटी सभ्यता, धातुओं का प्राचीनतम उपयोग, समय-समय पर आने वाले युग–नियोलिथिक युग, मेहरगढ़ कला, वैदिक युग, लौह युग, बुद्ध का आगमन, विभिन्न वंशों का आगमन और उनका प्रस्थान अथवा पतन, कई सारे युद्ध इत्यादि। कई सारे धर्म, समाज, खान-पान की कलाएं इत्यादि भी इसी भारतीय संस्कृति का हिस्सा रही हैं। फिर जब साहित्य आया तो उसने धीरे-धीरे इतिहास बनकर इस भारतीय संस्कृति को पुष्टता प्रदान की।

अब बात शारदीय नवरात्र की!

हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तक शारदीय नवरात्र पर्व भारत में आरम्भ होता है। इसके साथ ही शुरू होती है माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की अराधना। आध्यात्मिक जागृति के यह दिन भारतीय संस्कृति में सबसे अहम् दिनों में से एक है और कहा जाता है  कि देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने का यह सबसे सुनहरा अवसर होता है। इस बरस शारदीय नवरात्र 15 अक्टूबर 2023 से शुरू हो रही है।

इसका आरम्भ शारदीय नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना से होता है और आखिरी दिन विजया ‘विजयादशमी’ यानी  दशहरा के रूप में खत्म होता है। राम की शक्ति पूजा कविता में भी सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने बतौर कवि मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा लंकापति रावण पर विजय प्राप्त करने से पूर्व शक्ति का आह्वान करने के वाकये को कविताई शक्ल में पिरोया था। यह तो हम सभी जानते हैं कि रावण को मारकर ही राम ने माता सीता को उसके यहाँ से छुड़ाया किन्तु बावजूद इसके यह बहुत कम लोग जानते हैं कि उससे पहले राम ने सेतु बनाने से भी पूर्व नव रात्र तक माँ दुर्गा की आराधना की थी।

एक कथा यह भी है जो सबसे अधिक प्रचलित और चर्चित है वह ये कि – देवी दुर्गा ने महिषासुर को मारकर विजय पाई थी जिसमें माता भगवती देवी दुर्गा स्वरूप में महिषासुर नामक असुर के साथ नौ दिन तक युद्ध करती रहीं और  उसके बाद नवमी की रात्रि को उसका वध किया। लिहाजा उस समय से देवी माता को ‘महिषासुरमर्दिनी’ के नाम से जाना गया। परिणामत: तभी से माँ दुर्गा की शक्ति को समर्पित नवरात्रि का व्रत करते हुए इनके 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है।

नवरात्र का भारत में विशेष महत्व है जिसमें नव का शाब्दिक अर्थ है नौ और नया। शारदीय नवरात्र से प्रकृति सर्दी की चाहर में सिकुड़ने लगती है, ऋतु में परिवर्तन होने लगता है। यही वजह है कि नवरात्र की अवधि में उपासक संतुलित और सात्विक भोजन कर अपना ध्यान चिंतन और मनन में लगाते हैं और स्वंय को भीतर से शक्तिशाली बनाते हैं। जिससे ऋतु परिवर्तन का बुरा असर सेहत पर नहीं पड़ता।

दुर्गा पूजा पूरे भारत में अलग-अलग तरह से मनाई जाती है लेकिन सभी जगह एक ख़ास बात है कि इसमें 9 दिन तक व्रत, पूजा, मंत्र, जाप, संयम, नियम, यज्ञ, तंत्र, त्राटक, योग इत्यादि कर नौ अलौकिक सिद्धियां प्राप्त करने की कोशिश भी करते हैं। नवरात्र के दौरान भक्त माँ दुर्गा के नौ रूप पूजते हैं, जिसमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री शामिल हैं।

वर्तमान समय में नवरात्र क्या सच्चे हैं!

लेकिन इधर वर्तमान हालातों को देखते हुए इस बार होने वाले नवरात्र कर्म में एक बात जोरों से उठने लगी है कि कुछ दिन पूर्व ही इस देश के एक कोने में एक नाबालिग लड़की के साथ अन्याय और अत्याचार हुआ। नवरात्र के कुछ दिन पहले की ही यह घटना है यह हमें नहीं भूलना चाहिए। और ऐसे में हम अब कर्मकांड, पूजा-पाठ, विधि-विधान करके नौ रात तक माँ देवी दुर्गा की अराधना करेंगे और अंतिम दिन उन्हीं नाबालिग लड़कियों को बैठाकर उन्हें भोजन करायेंगे। अब यह वक्त है सचमुच में सोचने का की हम माँ दुर्गा के उन नौ रूपों का सच में ध्यान और पूजा-अर्चन कर रहे हैं या दिखावा ही मात्र बढ़ता जा रहा है। नवरात्र के प्रथम दिवस पर माँ शैलपुत्री हम सभी को यह सोचने,विचारने की शक्ति प्रदान करें।

सभी का मंगल हो और सभी की सात्विक मनोकामनाएं पूर्ण हों

.

Facebook Comments Box
Show More

Related Articles

6 Comments

    1. शुक्रिया पढ़ते रहें। अच्छा लगे तो दूसरों से साझा करें। नया पोर्टल है आपके साथ और सहयोग की हमें आवश्यकता है सख्त।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!