वेब सीरीज रिव्यू

वेब रिव्यू- वतन परस्ती करती ‘हीरामंडी’ की तवायफ़ें

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मर्दों से बिस्तर की रस्में पूरी नहीं होती तो कसमें क्या ख़ाक पूरी होंगीं। ‘हीरामंडी’ लाहौर के शाही मोहल्ले की एक बड़ी तवायफ़ हजूर मल्लिकाजान यह कहती है तो इस वेब सीरीज ‘हीरामंडी- द डायमंड बाजार’ की इस तवायफ का यह संवाद पूरे मर्दवादी समाज के सच को उधेड़ कर रख देता है। लेकिन कैसे यह सीरीज वतन परस्ती करती है देखिए वतन परस्ती करती ‘हीरामंडी’ की तवायफ़ें का रिव्यू…

वतन परस्ती करती ‘हीरामंडी’ की तवायफ़ें
वतन परस्ती करती ‘हीरामंडी’ की तवायफ़ें

आजादी से कुछ पहले का वक्त लाहौर में हजूर का सिक्का चलता है। और चलती है बंटवारे से पहले ‘हीरामंडी’ के इस कोठे पर से राजनीति, प्यार और धोखे की इबारतें। इतिहास यह भी बताता है कि मुगलियाकाल के दौरान अफगानिस्तान, उजबेकिस्तान की औरतों को ‘हीरामंडी’ लाकर रखा जाता था। ये तवायफें संगीत, कला, नृत्य और संस्कृति से जुड़ी हुई थीं, ये वो दौर था जब तवायफें सिर्फ राजा-महाराजाओं का मनोरंजन करती थीं। लेकिन धीरे-धीरे वक्त बदला, मुगलिया दौर खत्म हुआ तो ‘हीरामंडी’ पर विदेशियों का आक्रमण हो गया। ब्रिटिश काल में ‘हीरामंडी’ की चमक फीकी पड़ने लगी। यही नहीं, अंग्रेजों ने ‘हीरामंडी’ की तवायफों को वेश्या (प्रॉस्टिट्यूट) नाम भी दिया। उसके बाद ‘हीरामंडी’ की चमक ऐसी फीकी पड़ी कि आज तक उस इलाके की रौनक वापस नहीं लौटी।

वतन परस्ती करती ‘हीरामंडी’ की तवायफ़ें
वतन परस्ती करती ‘हीरामंडी’ की तवायफ़ें

इस ‘हीरामंडी’ का नाम सिख महाराजा रणजीत सिंह के मंत्री हीरा सिंह डोगरा के नाम पर रखा गया। फिल्मों में पहली बार करण जौहर की फिल्म ‘कलंक’ में ‘हीरामंडी’ का जिक्र किया गया था। और अब संजय लीला भंसाली ने इस पर पूरे 7 घंटे लम्बी वेब सीरीज बना डाली है। सोनाक्षी सिन्हा, मनीषा कोइराला, ऋचा चड्ढा, अदिति राव हैदरी, शरमिन सहगल, टीटू वर्मा, संजीदा शेख, शेखर सुमन, अध्ययन सुमन, ताहा शाह, फरदीन खान आदि के अभिनय से सजी इस शानदार वेब सीरीज को लिखा है मोईन बेग ने। बेग ने आज से करीब 14 साल पहले इस पर फिल्म बनाने का आइडिया भंसाली को दिया था। तो आज जानिये गंगानगर वाला में कि यह आइडिया कितना अच्छा है और कितना खराब….

‘सजा हम जिस्म को नहीं रूह को देते हैं। सिर्फ घुंघरू पहनने से औरत तवायफ नहीं बनती, दिन और रात के सारे हुनर सीखने पड़ते है।’ मोहब्बत और बगावत के बीच कोई लकीर नहीं होती, इश्क और इंकलाब के बीच कोई फर्क नहीं होता।’ हीरामंडी: द डायमंड बाज़ार के ऐसे डायलॉग्स हैं जिनसे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि संजय लीला भंसाली की ड्रीम प्रोजेक्ट हीरामंडी कैसी होगी। शानदार स्टारकास्ट, कलाकारों की फौज, खूबसूरत-भव्य सेट, भारी-भरकम तामझाम लेकिन दमदार डायलॉग से भरी हीरामंडी आज से नेटफ्लिक्स पर देखी जा सकती है।

वतन परस्ती करती ‘हीरामंडी’ की तवायफ़ें
वतन परस्ती करती ‘हीरामंडी’ की तवायफ़ें

 

 

 

 

 

 

 

 

किरदारों से परिचय!

हीरामंडी बाजार की सबसे बड़ी तवायफ रिहाना बेगम से इस सीरीज की शुरुआत होती है। एक ऐसा किरदार जिसे देख बाज़ार की सारी तवायफें खौफ़ खाती हैं। बाद में यही सबसे बड़ा ओहदा मल्लिकाजान यानी मनीषा कोइराला के रूप में देखने को मिलता है। कहानी में एक बड़ा बदलाव क्यों और कैसे आता है? यही सब बता दिया तो आप सीरीज क्यों देखेंगे भला! माँ, बहन, बेटी के किरदार में ये तवायफें एक दूसरे पर भारी पड़ती हैं। सबके किरदारों में एक ख़ास किस्म की खासियत है, जो कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करती है। तिस पर नवाबों का तड़का लगा है नवाब जुल्फिकर के किरदार में शेखर सुमन, नवाब वली मोहम्मद के किरदार में फरदीन खान नजर आते हैं। हीरामंडी में जंग छिड़ी है दो तवायफों के बीच। एक ही परिवार की ये दो तवायफें अपने परिवार और बाज़ार की बाकी तवायफों के साथ अपना कोठा चलाती हैं। एक तरफ मल्लिकाजान है जिसके दिल में बेटियों के लिए कोई हमदर्दी नहीं। झलकती है तो एक बेदर्द माँ जो बेटियों को कोठे की शान बनाना चाहती है और बहनों को घर की नौकरानी। एक मल्लिकाजान की भतीजी है फरीदन जिसका मल्लिका से 36 का आंकड़ा है। एक है मल्लिकाजान की बेटी आलमजेब जिसे शायरी का शौक है। लिहाजा वह तवायफ़ भी नहीं बनना चाहती लेकिन मल्लिकाजान है कि शायरी से उसे नफरत है। मल्लिकाजान की एक दूसरी बेटी भी है बिब्बोजान जो आजादी की लड़ाई लड़ने वालों की मदद करने में लगी है। कुलमिलाकर पूरी सीरीज में वफा, बेवफाई, नफरत, राजनीति, शतरंज के खेल की कहानियों के सहारे आजादी की लड़ाई दिखाना ही इसका मकसद है।

वतन परस्ती करती ‘हीरामंडी’ की तवायफ़ें
वतन परस्ती करती ‘हीरामंडी’ की तवायफ़ें

क्या है ख़ास वेब सीरीज में?

यूँ तो पूरी हीरामंडी ही खास है। वजह है सिर्फ एक संजय लीला भंसाली और उनका डायरेक्शन, उनका विजन, उनके डायलॉग और उनके द्वारा किरदारों से करवाई गई दमदार परफॉरमेंस। संजय लीला भंसाली की खासियत उनकी कहानी और उसकी भव्यता के साथ-साथ उनकी कहानियों में महिलाओं का किरदार हमेशा उभरकर नजर आता रहा है। हरेक सीन पर भंसाली की बारीक निगाहें नजर आती हैं। हरेक किरदार की अलग कहानी, हरेक किरदार के उसी की कहानी की तरह एक्सप्रेशन भी। जिसके चलते दर्शक को यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि इतनी सारी एक्ट्रेसेज में से उन्हें किसका किरदार ज्यादा पसंद आया। ग्रैंड सेट, उर्दू का सटीक इस्तेमाल, सिनेमैटोग्राफी, बैकग्राउंड म्यूजिक, पंजाबी बोलते शाही नौकर, आलीशान घराने सीरीज का आखिर सीन और पूरी सीरीज का म्यूजिक रोंगटे खड़े करता है।

वतन परस्ती करती ‘हीरामंडी’ की तवायफ़ें
वतन परस्ती करती ‘हीरामंडी’ की तवायफ़ें

कलाकारों का काम कैसा है?

यूँ तो हरेक किरदार इस सीरीज का अहम है लेकिन सोनाक्षी सिन्हा इस सीरीज की सबसे बड़ी कड़ी है, जिनके किरदार में सस्पेंस है, थ्रिल है, इमोशन है, मजा है और है उनकी अब तक की सबसे बेस्ट परफोर्मेंस। दूसरी अहम कड़ी है मल्लिकाजान मनीषा कोइराला का किरदार जो हर एपिसोड के साथ बदलता है। हर एपिसोड के साथ उनसे हुई नफरत आगे प्यार में बदलती जाती है। ऋचा चड्ढा अपने छोटे से रोल में छा गई। हालांकि शरमिन सहगल का किरदार कुछ जगह पर बोझिल लगता है। लेकिन इस सीरीज में अपनी अदाकारी से हैरान करती हैं संजीदा शेख। वे बिल्कुल वहीदा के किरदार में नजर आती हैं जो दुश्मनी के साथ अपनी वफादारी भी पालती हैं। वहीं अदिति राव हैदरी तवायफ की अपनी जिंदगी से जूझते हुए आज़ादी की जंग लड़ती हुई बहुत ही खूबसूरत और संजीदा नजर आईं। फरदीन खान, शेखर सुमन, अध्ययन सुमन, ताहा शाह बदुशा आदि ने नवाबों के किरदारों में बाकमाल काम किया। लेकिन इन सबमें उस्ताद का किरदार दर्शकों को कई बरस याद रहने वाला है। इंद्रेश मलिक ने उस्ताद के किरदार को निभाया नहीं बल्कि अपने अभिनय की आत्मा से जिया है। शायद ही इससे पहले किसी ट्रांसजेंडर की  कहानी और उसके किरदार को ऐसा हिंदी सिनेमा में दिखाया गया हो। असर तो दर्शकों पर हालांकि अंग्रेज अफसर बने जैसन शाह ने भी छोड़ा है।

वतन परस्ती करती ‘हीरामंडी’ की तवायफ़ें
वतन परस्ती करती ‘हीरामंडी’ की तवायफ़ें

न बेदम न बेजान आखिर कहानी फिसली?

7 घंटे से भी लंबी इस सीरीज को देखने के लिए पूरे दिन की दरकार है। एक ऐसी लंबी कहानी जिसे आप बीच में छोड़ दें तो शायद किरदारों के रिश्तों को भूल जाएँ। लिहाजा हीरामंडी एक लंबी कहानी तो है जिसे देखने और कहानी से बंधे रहने के लिए धैर्य के साथ-साथ आपके अधिक समय-संयम की माँग यह करती है। भारी-भरकम डायलॉग्स   कई सीन के हिसाब से गैर जरुरी लगते हैं। और हरेक सीन को रिच एंड रॉयल बनाने की कोशिश कई जगह फिजूलखर्ची भी लगती है। दो तवायफों की जंग के बीच अचानक इंकलाब जिंदाबाद और आज़ादी के नारे शुरू हो जाना भी फिट नहीं लगता। कई कहानियां एक साथ चलती नजर आती हैं। दुश्मनों के दिलों में अचानक पनपा प्यार दर्शक हजम नहीं कर पाता। हरेक एपिसोड को 40-45 मिनट का भी रखा जा सकता था।

वतन परस्ती करती ‘हीरामंडी’ की तवायफ़ें
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देखें या नहीं! फाइनल बताएं?

जरुर देखिए… अगर आप संजय लीला भंसाली के फैन हैं तो इन कमियों को आप नजरअंदाज कर जायेंगे। यह भी सच है कि भंसाली की हर फिल्मों की तरह यह उनकी पहली डेब्यू वेब सीरीज भी बरसों याद की जाएगी। डायरेक्टर, एक्टर्स, लेखकों और तमाम तकनीकी टीम की मेहनत साफ़ नजर आती है। इसकी भव्यता आपको एक बार फिर से भंसाली के सिनेमा का दीवाना बना देगी और इस सीरीज को बनने से लेकर इसे आम दर्शक तक पहुंचने में इतना वक्त क्यों लगा ये आपको इसे देखने के बाद ही समझ आएगा। साथ ही समझ तो उन्हें भी आएगी जो आये दिन कुछ भी वाहियात कचरा सिनेमा जैसी अजीम चीज के नाम पर पेश कर देते हैं। समझ आएगी तवायफों की इस मुल्क की आज़ादी के लिए की गई कोशिशें जिन्हें इसी नामुराद मर्द समाज ने भुला देने की भरपूर कोशिशें की। समझ आयेगा कि क्यों इन तवायफों को इतिहास की तारीखों में नामजद नहीं किया गया। समझ आएगी कि सिनेमैटोग्राफी, कैमरागिरी, म्यूजिक, सेट्स, बैकग्राउंड स्कोर आखिर किस चिड़िया का नाम है। अब जो आदमी भला आप और हम दर्शकों को हम दिल दे चुके सनम,  ब्लैक, देवदास, गुजारिश, बाजीराव मस्तानी, पद्मावत जैसी आला फ़िल्में परोस कर हमारा मनोरंजन कर चुका हो वो भला अपने इस ओटीटी डेब्यू से निराश कर सकता था? खुद देखिए और सोचिए।

अपनी रेटिंग- 4 स्टार

 

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