फिल्म रिव्यू

शॉर्ट फिल्म रिव्यू- इस ‘पिंडदान’ में है सच्चाई

 

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एक लड़का और उसकी बहन जो रहते हैं मामा के घर। मामा लाल नृत्य कला का राजा है। यानी लाल नृत्य कला में पारंगत। मामा विश्वास गायकवाड अपने भांजे को भी इस कला में पारंगत करना चाहता है। फिर कहानी घूमती है पुलिस स्टेशन की ओर। वह लड़का पुलिस वाला बन चुका है। उसकी बहन का पति और परिवार कोरोना में चल बसे। इधर बहन अस्पताल में बच्चे को जन्म देने वाली है। उधर मामा अपनी आखरी सांसे गिन रहा है। पुलिस स्टेशन में वह लड़का अलग से किसी केस में उलझा है।

कहानी के आखिर में लड़का बरसों पहले लाल नृत्य कला को छोड़ देने का मन बना चुका था। लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि वह नाचता भी है और अपने केस को भी देखता है। करीब 25 मिनट की इस लाल नृत्य कला में घरेलू हिंसा, बाल यौन शोषण समेत कई कहानियां एक साथ नजर आती है। जिसे आपको फिल्म देखकर ही पता करना होगा।

लेखक, निर्देशक दिव्यांश पंडित ने अपने सहयोगी लेखक आमिर बंगाली के साथ मिलकर कहानी को न केवल अच्छे से समेटा है बल्कि एक कसी हुई स्क्रिप्ट भी पेश की है। उनके निर्देशन में सच्चाई झलकती है। साथ ही पुलिस वाला बने आदिल जयपुरी, विश्वास गायकवाड बने यतिन कार्येकर, विभूति बनी दिव्यांगना जैन, मामी बनी असीमा भट्ट और विद्या बनी कल्याणी साखलुंकर की अभिनय कला में भी एक सच्चाई नजर आती है।

शंकर सिंह के साउंड डिजाइन, अंकित शाह के बैक ग्राउंड, समर्थ सक्सेना के म्यूजिक, समीर के लिरिक्स और शान की आवाज के अलावा सिनेमैटोग्राफर सरफराज अली हसन खान, एडीटिंग करने वाले शुभांकर जाधव, वी एफ एक्स करने वाले हर्ष मिश्रा के काम में भी पूरी तरह सच्चाई नजर आती है।

शॉर्ट फिल्में मारक होती हैं और उसी श्रेणी में यह फिल्म भी अपना मारक काम करती नजर आती है। संवादों के मामले में एक जगह सुनाई पड़ता है – सुना है लोकसत्ता के पहले दो पन्नों पर चका चौंध रहती थी। जब तुम्हारे मामा नाचते थे हमारे फंक्शन में। लाव कला चा नृत्य चा राजा। और जिंदगी में तीन का है। काम, कसरत और किसलना।

संवाद सुनने में तो ठीक लगते हैं और जिस अंदाज में इन्हें बोला गया वह भी अच्छा लगता है परंतु इस फिल्म में इनके अलावा ज्यादा कोई प्रभावी संवाद भी नजर नहीं आते। कायदे से यह फिल्म अपने बैकग्राउंड स्कोर और अभिनय तथा कहानी लेखन के चलते अच्छी और सच्ची लगती है।

कारण इसमें दिखाई गई बातें और दृश्य प्रभावी और एक हद तक हमारे समाज की सच्चाई को भी दिखाते नजर आते हैं। और आखिर में ‘पिंडदान’ करने को लेकर जो दृश्य नजर आते हैं वे भी फिल्म की कहानी से कहीं न कहीं गहरे रुप में नजर आते हैं। फिल्म में जिस तरह का क्लाइमेक्स है उसे ना रखा जाता और करीब पांच मिनट पहले ही इसका अंत कर दिया जाता तो यह और कई सारे सवाल जेहन में छोड़ सकती थी। फिलहाल तो यह अपने सभी सवालों के माकूल जवान भी देती नजर आती है।

अपनी रेटिंग  3 स्टार

इस फिल्म को इस लिंक पर क्लिक कर देखा जा सकता है।

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