फिल्म रिव्यू

रिव्यू- ख़्वाबों की तामीर बुनती ‘देसी मुक्का’

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राजस्थान में अव्वल तो कायदे का सिनेमा बन नहीं रहा, जिसके बारे में लिखा जा सके। लेकिन फिर भी कभी कुछ ऐसा देखने को मिल ही जाता है कि राजस्थान का होने के नाते यहाँ के सिनेमा को सराहने अथवा उसकी आलोचना करने से खुद को रोक नहीं सकता। खैर मनोज फोगाट राजस्थानी सिनेमा में औसत दर्जे की ठीक-ठाक फ़िल्में बनाते रहे हैं। उनकी अधिकाँश फ़िल्में यू ट्यूब पर उपलब्ध हैं अथवा गाहे-बगाहे सिनेमाघरों में भी नजर आ ही जाती हैं। मनोज ने अपने निर्देशन और कहानी कहने के ढंग से यहाँ के ग्रामीण परिवेश में अवश्य जगह बना ली है।

ख़्वाबों की तामीर बुनती 'देसी मुक्का'
ख़्वाबों की तामीर बुनती ‘देसी मुक्का’

देसी मुक्का (Desi Mukka) की कहानी भी ग्रामीण परिवेश में ही रची-पगी है। करण राजस्थान के किसी ग्रामीण क्षेत्र का सुंदर सा दिखने वाला लड़का जिस पर गाँव की लगभग हर लड़की फ़िदा है। लेकिन उसका दिल आ गया है मुंबई से आई एक ऐसी लड़की पर जो संस्कारी है और जिसे गाँव पसंद है। इधर करण का दादा बचपन में ही उसका रिश्ता कहीं और तय करके दुनिया से अलविदा हो गया है। अब करण का बाप चाहता है कि करण का ब्याह उसके दोस्त की उसी लड़की से हो। लेकिन क्या करेगा करण? क्या बाप के खिलाफ़ जाएगा या फिर उसकी मंगेतर कुछ और ही शर्त रख देगी। इसे जानने के लिए आपको सोनोटेक के यू ट्यूब पर फ़िल्म देखनी होगी।

ख़्वाबों की तामीर बुनती 'देसी मुक्का'
ख़्वाबों की तामीर बुनती ‘देसी मुक्का’

देसी मुक्का फ़िल्म देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।

आलोक भारद्वाज करण के किरदार में जंचते हैं और मुंबई के इस लड़के ने ठेठ ग्रामीण होने की भी फ़िल्म में पूरी कोशिश की है। जिसे देख आपको पूरी फ़िल्म में आलोक का अभिनय सबसे उम्दा नजर आता है।

यह भी पढ़ें- मेरा जन्म अभिनय के लिए ही हुआ है- आलोक भारद्वाज

श्रेया खन्ना, राजवीर अरोड़ा, मुस्कान शर्मा, राज किशोते, सिकंदर चौहान, शिखा पारिक, मनोहर शेलन्कर, शंकर पुरोहित, कमल चौधरी आदि भी अपने औसत अभिनय से फ़िल्म की पहुँच को कम से कम ग्रामीण इलाके के दर्शकों के लायक खड़ा करने में कामयाब हुए हैं। यूँ भी राजस्थान के सिनेमा को देख ही कौन रहा है? ये तो भला हो यू ट्यूब का और यू ट्यूब चैनल्स का की ग्रामीण इलाकों तक भी यहाँ की फ़िल्में पहुँच पा रही हैं।

ख़्वाबों की तामीर बुनती 'देसी मुक्का'
ख़्वाबों की तामीर बुनती ‘देसी मुक्का’

फ़िल्म की कहानी से लेकर एक्टिंग, निर्देशन, एडिटिंग, गाने, साउंड, म्यूजिक आदि जब सब कुछ देसी अंदाज में हो और औसत ढंग का हो तो इसे फ्री समय में टाइम पास के लिए देख लेना उचित होगा। हाँ एक लम्हें के लिए इस देसी मुक्के को देखते हुए दंगल का सुलतान (सलमान खान) की फ़िल्म याद आ जाए तो बात अलग है। लेकिन इसे उस दर्जे की समझने की भूल मत कर बैठिएगा। क्योंकि देसी मुक्का है ये सुलतान का दंगल नहीं और ये राजस्थान है कोई बॉलीवुड नहीं।

अपनी रेटिंग- 3 स्टार

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