फ़िल्मी कहानी सरीखी मेरी ‘महाकुंभ’ यात्रा 2025

फ़िल्मी कहानी सरीखी मेरी ‘महाकुंभ’ यात्रा 2025 में आखिर फ़िल्मी क्या है पढ़िए और जानिये…
पहली बात मुझे हमेशा सोलो ट्रिप ही अधिक आकर्षित करती है। वजह ना कोई झंझट ना किसी का झमेला। फिर इधर हमारे सूट-बूट वाले सत्ताधारी नेता मोदी जी ने भी तो कहा था अरे अपना क्या है। हम तो फ़कीर आदमी हैं झोला उठाकर कहीं भी चल देंगे जी! बस पूरे मोदी जी में और मुझमें एक यही बात मेल खाती है। मैं भी हमेशा इसी हालत में यदा कदा घर से निकलकर बाहर कुछ दिन टहल आता हूँ। लेकिन क्या हो किसी फिल्म को अंत तक देखने से पहले ही आपको क्लाइमैक्स पता चल जाए? फिल्म की कहानी का मजा किरकिरा हो उठेगा न! लेकिन इस कहानी का अंत यह है कि कुलमिलाकर फिल्म के अंत जैसा सुखद अंत हुआ। बावजूद इसके कहानी के रोचक पहलू आपको अवश्य जानने चाहिए ताकि जिन अव्यवस्थाओं का हम शिकार हुए उनसे आप दो-चार न हों।

मेरी इस यात्रा जिसे आप अध्यात्मिक महाकुंभ की यात्रा कह सकते हैं, में भी काफी कुछ फ़िल्मी कहानी सा ही घटित हुआ। पहले दिन से इस यात्रा का दिन तय था कि हम बस से 11 फरवरी को जयपुर से निकल जायेंगे और 17 तक लौट आयेंगे अपने-अपने गंतव्य। लेकिन कुंभ में कुछ और ही छिपा था। यात्रा टलते-टलते 14 फरवरी ठीक वेलेंटाइन के दिन शुरू हुई जयपुर के चर्चित मोती डूंगरी गणेश मंदिर में गणेश जी को शीश नवाने से। यह सब करते-करते 12 बजे तक हम जयपुर से निकले रास्ते भर गाते-बजाते, नाचते-खाते-पीते टैम्पो ट्रेवलर से अगले दिन पहुँचे धर्म नगरी प्रयागराज। करीब 12 से 14 घंटे की यहाँ तक की यात्रा मजेदार थी।
अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा- हिमालय दर्शन के बहाने से
जैसे ही प्रयागराज की धरती पर कदम रखे न जाने कौन सी शक्ति हावी हुई कि लोकल टैम्पो, रिक्शा बुक करते उनमें चढ़ते-उतारते अंत में बस से करीब 4-5 किलोमीटर का सफर तय किया। फिर से रिक्शे बदले और इतना ही सफर तय किया। अब आई असली मुसीबत करीब 3-4 किलोमीटर तक पैदल चलते-चलते हमारे ग्रुप के लगभग हर बुजुर्गों की सेहत खराब होने लगी। जैसे-तैसे एक मन्दिर (नागेश्वर शिव मंदिर) तक पहुँचे और यहाँ से टीम तित्तर-बितर हो गई। इस कुंभ यात्रा का आयोजन करने वाली एक 55 वर्षीय महिला थीं। जिनकी कोई सुनने को तैयार नहीं। बस लगभग सबको जल्दी थी कि फटाफट संगम में जाकर अपने-अपने किये कर्मों का हिसाब-किताब चंद डूबकियां लगाकर पूरा कर आयें।

बाइक पर सवार हुए उन लोगों के साथ दुविधा की स्थिति में मैं भी सवार हो लिया। दारागंज पुलिस स्टेशन सभी को पहुंचना था क्योंकि यहाँ से संगम बेहद करीब था। भीषण जाम और असंख्य श्रद्धालु होने के चलते बाइक सवार अलग-अलग दिशाओं में चल पड़े आगे जाकर हम करीब 20 लोगों की टीम से 10 लोग बिछड़ चुके थे। इसके बावजूद नहाते-धोते सब साथियों का पता लगाते कई बार पुलिस वालों से सम्पर्क साधा तो कई बार लम्बी भाग-दौड़ भी हुई। मजाल है कि एक तो जल्दी से पुलिस वाले मदद करे और मजाल है कि इंटरनेट या फ़ोन पर ठीक से बात संभव हो। आखिर में देर रात महाकुंभ प्रयागराज से निकलकर राम मंदिर और काशी विश्वनाथ जाने की यात्रा को स्थगित करना पड़ा और अपने-अपने गंतव्य लौट आये, संगम का जल पवित्र जल लेकर।
कुछ खुद की टीम द्वारा फ़ैल चुकी अव्यवस्था और कुछ महाकुंभ में प्रशासन की अव्यवस्था ने सभी के गुस्से में मानों आग में घी डालने का काम किया। जयपुर से चलते समय यह तय था कि यात्रा आगे राम मंदिर, काशी विश्वनाथ की भी होगी लेकिन खिन्न मन से एक-दूसरे को कोसते हुए अंत में पुन: हँसते-खेलते हम जयपुर पहुँचे। इस बीच सभी यात्रियों में से कईयों ने अपने ग्रुप बना लिए ताकि भविष्य में वे यात्रा करें तो इस तरह की अव्यवस्थाएं न झेंले। अब कुछ मानव जनित और कुछ ईश्वर रचित अव्यवस्थाएं जब एक यादगार यात्रा में बदल जाए तो उसकी कहानी फ़िल्मी नहीं होगी तो और कुछ होगी भला!
यहां से एक कदम आगे रखते ही पाकिस्तान पहुँच जाएंगे!
अब आप पूछेंगे कि आपने अपनी फ़िल्मी कहानी तो बता दी हमने तो अभी तक यात्रा नहीं कि है या करने की योजना ही अभी तक बना रहे हैं तो उसके लिए जवाब है हो सके तो बेहद सीमित लोगों के साथ यात्रा करें। अन्यथा आप इस यात्रा को टाल भी सकते हैं। हाँ हमारी टीम जैसे कुछ लोगों की तरह आपकी भी अति आस्थाएं और सत्ता पक्ष के प्रति असीम अनुराग है और आप भी इस बात पर गर्व करके इठलाना चाहते हैं कि देखिए सत्ताधारी सरकार ने हिन्दूओं के हित में कितना कुछ कर दिया है। या फिर आप ऐसे झूठे बयान देने से भी नहीं हिचकते कि जैसे यह पहली बार कुंभ लगा है तो आप जाइए और प्रशासन के साथ-साथ सत्ताधारी सरकार द्वारा फैलाई गई अव्यवस्थाओं को झेलते हुए अपने कर्मों का ब्यौरा संगम में डूबकी लगाकर सौंप आइये।
महाकुंभ में करोड़ों प्रचार में फूंक देने वाली सरकारों ने काश कि बुजुर्गों के, बच्चों के लिहाज से कुछ निशुल्क सुविधाएं उपलब्ध करवा दी होती या कुछ वोलेंटियर नियुक्त किए होते तो यह महाकुंभ बेहद शानदार आयोजन हो सकता था। हाल एक बात के लिए हम भी शुक्रिया करेंगे ईश्वर का और आप भी कीजिए कि अब किसी तरह का शाही स्नान नहीं बचा है। सभी अखाड़े और साधु-नागा आदि वापस अपनी कंदराओं में लौट गए हैं। उनके दीदार तो आपको नहीं होंगे उम्मीद है कोई अप्रिय घटना भी अब नहीं घटेगी, मौत का तांडव अब नहीं रचेगा काल।

आप अपनी यात्रा अपने साधनों से कर रहे हैं तब आप संगम के बेहद नजदीक पार्किंग में गाड़ी पार्क कर सकते हैं अन्यथा बेला कछार की पार्किंग से आपको 200 से 300 रूपये तक में ऑटो मिल जायेंगे जो आपको संगम के बेहद नजदीक उतार सकते हैं। यदि आपकी जेब इतना इजाजत नहीं देती है या आप भी हमारी तरह 20-50 लोगों को साथ लेकर चल रहे हैं तो बसों में 20 रूपये देकर 4 किलोमीटर की यात्रा कर सकते हैं उसके आगे भी करीब 30 से 50 रूपये देकर रिक्शे लेकर आगे तक जा सकते हैं। आनन्द भवन तक जब आप पहुँच जाएँ तो वहाँ से करीब 8 से 10 किलोमीटर पैदल भी यात्रा का आनन्द लेते हुए जा सकते हैं। बाकी कुंभ में हताहत हुए लोगों और आगजनी की घटनाओं पर आप शोक जताने के सिवा कुछ नहीं कर सकते। या फिर आप इस बात पर घर बैठे भी इतरा सकते हैं कि करीब 50 करोड़ से ज्यादा लोगों ने इस महाकुंभ में स्नान कर लिया है।
नोट – मैं आस्थावान हूँ, भावुक हूँ अपने ईश्वर को लेकर किन्तु मैं अँधा नहीं हूँ जो कहीं भी बैल की तरह हांक दिया जाए और अव्यवस्थाओं पर सवाल न उठाए।