वेब सीरीज रिव्यू

वेब रिव्यू- ‘छापा’ के मसले का हल ‘कच्छाधारी’ के असले से!

बुराई को देखने व सुनने से ही बुराई की शुरुआत होती है। 90 का दशक हरियाणा और उसके सीमावर्ती इलाकों में शुरू हो चुका है कच्छाधारी गैंग का आतंक। कच्छाधारी/कच्छा-बनियान गैंग के आतंक से आम लोग दहशत में है। रात के घुप्प अंधेरे में आपके घरों में दबे पांव दस्तक देने वाली इस गैंग में करीब 8 से 10 लोग शामिल है। हाथों में डंडे, कुल्हाड़ी, चाकू, बंदूक लिए ये लोग चेहरे को ढककर शरीर पर अजीब किस्म की गंध का तेल लगाकर आये हैं। उनका एक ही मकसद है आपके घरों का कीमती सामान चुराना और जरूरत पड़ने पर आपकी जान ले लेना।

'छापा' के मसले का हल 'कच्छाधारी' के असले से!
‘छापा’ के मसले का हल ‘कच्छाधारी’ के असले से!

90 के दशक में शहरों में रहने वालों को याद होगा कच्छाधारी गिरोह और उन्हें याद होगी उनकी वो दहशत। जिसमें रात होते ही लोग अपने घरों के दरवाजे-खिड़कियां बंद कर लेते थे ताकि इस गैंग के लोग हमला न कर दे। वही गैंग अब एक बार फिर एक्टिव हो चुका है लेकिन चौपाल हरियाणवी पर। एक असंगठित गैंग के लोग अलग-अलग राज्यों में एक ही अंदाज में चोरी, डकैतियों को अंजाम देते चले गए। खबरें बताती हैं कि 90 के दशक में कच्छा-बनियान गैंग का सबसे ज्यादा आतंक दिल्ली-एनसीआर, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान में था। पिछले दिनों कच्छा-बनियान गिरोह को आधार बना नेटफ्लिक्स पर “दिल्ली क्राइम सीजन 2” में भी इस गिरोह की झलक नज़र आ चुकी है।

अब इधर चौपाल हरियाणवी (Chaupal Haryanvi) के ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ हुई वेब सीरीज़ “कच्छाधारी” (Kachadhari) के ये कहने भर को सीन हैं। मगर इसके साथ ही यह हमारे-आपके इलाकों की वो हकीकत भी है, जिसमें हमारे-आपके इलाकों के ही पुलिसकर्मी भी कभी शामिल रहे हैं। यह वेब सीरीज़ आपके-हमारे इलाकों की हकीकत को दर्शाने तो आई ही है। साथ ही यह उस चिराग भसीन की संभावनाओं को भी खुलकर दिखाने आई है जिन्हें मैं अक्सर उनके बनाए सिनेमा में ख़ोजने की बात करता रहा हूं।

चिराग भसीन हरियाणवी सिनेमा का वह युवा निर्देशक जिसकी बनाई ‘घूंघट’, ‘छापा’ जैसी शानदार हो सकने वाली कहानियों की हत्या इसी निर्देशक के इलाके के भाषाई क्रांतिवीरों (Stage) स्टेज ओटीटी ने जब की तब भी मुझे चिराग के बनाए सिनेमा में असीम संभावनाएं नज़र आती रहीं। यदि सफ़ल होने का संकल्प मजबूत है तो सफ़लता मुझे कभी नहीं छोड़ेगी। और जब तक जीना तब तक सीखना क्योंकि अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। बाल सुधार गृह में लगे पुलिस के पोस्टरों पर लिखे ये शब्द खाली यूं ही नज़र नहीं आते। बल्कि चिराग भसीन को तराशकर लाने वाले चौपाल हरियाणवी के मजबूत संकल्पों और दूसरे हरियाणवी ओटीटी की गलतियों से सीखते हुए अपने अनुभव को विस्तार देने वाले चिराग की सूझबूझ को भी दर्शाते हैं।

'छापा' के मसले का हल 'कच्छाधारी' के असले से!
‘छापा’ के मसले का हल ‘कच्छाधारी’ के असले से!

“स्कैम” में अपनी प्रतिभा और संभावनाओं को विस्तार देते हुए “कच्छाधारी” तक आते-आते चिराग भसीन “द चिराग भसीन” होते नज़र आए। हरियाणवी सिनेमा में असली क्रांतियां यूं की जाती हैं। स्टेज एप्प वालों को आंख और कान दोनों खोलकर देख और सुन लेना ज़रूरी है इस बात को, कि वे कब तक इस मुग़ालते में जीते रहेंगे कि वे बोलियों की क्रांति कर रहे हैं!

 

चौपाल हरियाणवी पर जिस तरह का सिनेमा इन दिनों बह रहा है उससे यही ज़ाहिर होता है कि अब जल्द ही चौपाल ओटीटी सिनेमा के मामले में पूरे हरियाणा में बोलियों की असली क्रांति करेगा। चौपाल हरियाणवी पर कच्छाधारी की कहानी शुरू होती है तीन कैदियों से- कैदी नंबर 671 मनीष कुमार, कैदी नंबर 722 गौरव शर्मा, कैदी नंबर 841 जोसफ, बचपन में किसी-न-किसी को मारकर बाल सुधार गृह में अपनी सजाएं काट रहे हैं। और जब वे बाहर आए तो किसी के मां-बाप लंदन चले गए तो किसी के हिस्से की ज़मीन-ज़ायदाद को कोई और हड़प कर गया।

अब क्या करेंगे ये मनीष, गौरव और जोसफ? क्या यही है कच्छाधारी गैंग? या कोई और भी शामिल है इनके साथ? क्या इन तीनों में कोई सुधार आया और अब कोई तीसरा ही इनके नाम से आतंक मचा रहा है? सबका पता मिलेगा चौपाल हरियाणवी पर।

नरेंद्र यादव, हिम्मत दयोहरा, संजीव शर्मा, सोनू सीलन, सुदीप सांगवान, जेडी बल्लू, गीतू परी अपने-अपने हिस्से में आये किरदारों को इस कदर निभाते दिखे कि हर कोई इस सिनेमाई मसाले का धनिया बन पड़ा है। तो वहीं अमर कटारिया, इंद्र सिंह लांबा, अशोक, अनिल जांगड़ा, प्रगति सिंह, दिशांत गुल्लिया, प्रिंस किराड़, संगीता जांगड़ा, सोनू जांगड़ा, मानवी भारद्वाज, अजय अहलावत, लोकेश विवेक, सतवीर बैरागी, विशाल भौरिया, अतुल लंगाया आदि जैसे टीम के तमाम कलाकार मिलकर इस सीरीज़ को अपने अभिनय के दम पर ऊँचा उठाये दिखते हैं। तो वहीं अंतर्राष्ट्रीय कलाकार सतीश जोर्ज कश्यप अपने अभिनय से इस सीरीज में रंग बिखेरते नज़र आए।

'छापा' के मसले का हल 'कच्छाधारी' के असले से!
‘छापा’ के मसले का हल ‘कच्छाधारी’ के असले से!

सतवीर बैरागी की लिखी इस कहानी में भरपूर दम नज़र आता है तो वहीं निर्देशक चिराग भसीन ने इस सीरीज़ के निर्देशन से अपने आलोचकों को भी करारा जवाब दिया है। इस सीरीज़ को देखते हुए उनसे और बेहतर सिनेमा बनाने की संभावनाओं और उम्मीदों को भी बल मिला है। बतौर निर्देशक उन्हें मिली सिनेमाई आज़ादी को जिस तरह उन्होंने खुलकर जीते हुए इसे पर्दे पर पिरोया है वह क़ाबिले-ग़ौर है। इस सीरीज़ का दूसरा सबसे मजबूत पहलू है इसका छायांकन। शुभ संधू अपने छायांकन से इसे लगातार एक सीटिंग में देखने को मजबूर करते हैं। एडिटर संजय भसीन की कैंची में धार नज़र आती है तो वहीं कलरिंग करने वाले सालिक वकास, बैकग्राउंड म्यूजिक देने वाले अभिषेक पंडित और वीनू गौर, सोमवीर कथूरवाल, कविता शोबू का गीत-संगीत इस सीरीज़ को उस मक़ाम पर ला छोड़ते हैं कि इसके दूसरे सीजन की डिमांड भी दर्शक करने लगें तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। हिमांशु कुमार का सिंक साउंड, महीप की मेकअप कला, हिमांशु ठाकुर का वीएफएक्स आदि जैसे तमाम तकनीकी पहलू इस सीरीज़ में मौजूद हैं जो इसे देखने वाले दर्शकों से अपने लिए वाह-वाही बटोर लेने के लिए पर्याप्त हैं। हाँ दो-एक जगह पर हल्की चूकें भी इस सीरीज़ में नज़र आती हैं किंतु वे इतनी तेजी से आपके सामने से गुजर जाती हैं कि उन कमियों पर आपका कदाचित ध्यान ही नहीं जाएगा। मसलन सीरीज के हर एपिसोड के इंट्रो में कच्छाधारी की जगह कच्चाधारी लिखा नजर आना। या एक सीन में लड़की कपड़े धो रही है पास में कोई नल नहीं है और कपड़े धोते समय पानी की बोतल लेकर जैसे मानों किसी प्यासे का ही इंतजार कर रही हो।

कुलमिलाकर ‘छापा फिल्म नहीं बदनामी है’, के टैग से अब बाहर आइए और देखिए “छापा” के मसले का हल “कच्छाधारी” के असले से ही मिलेगा। क्योंकि इसके पहले जब “छापा” स्टेज हरियाणवी पर आई तब उसे देखते हुए जो मसले खड़े हुए थे वे अब “कच्छाधारी” से उस मसले का हल भी निकाल लाए हैं। जहां से आप दर्शकों को हरियाणवी सिनेमा में बोलियों की सही क्रांति देखने को मिल सकती है। भले इस सीरीज में कुछ एक जगहों पर गालियाँ हों किन्तु सच यही है कि यह है असली।

अपनी रेटिंग – 4.5 स्टार

Release Date- 6 September On Chaupal

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