रिव्यू- ‘छापा’ फ़िल्म नहीं बदनामी है
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हरियाणवी सिनेमा को आगे बढ़ाने का काम स्टेज ओटीटी वालों ने जरुर किया है इसमें कोई दोराय नहीं लेकिन एक सच यह भी है कि हरियाणवी सिनेमा को बदनाम करने में भी ये लोग कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे हैं।
हरियाणा के जलालपुर गांव में कोई एक-दो नहीं पूरा गांव बिजली चोरी कर रहा है। बिजली विभाग भी गांव वालों की दबंगई के आगे बेबस है। नया जेई आया तो उसने छापा मारना शुरू किया एक-एक गांव वाले के यहां। लेकिन इसी बीच उसकी नौकरी पर बन आई। अशोक कुमार जेई अपनी नई नौकरी के जाने और रिश्ता टूटने को लेकर जद्दोजहद कर रहा है। क्या अशोक बेगुनाही साबित कर पाएगा? या गांव में बिजली चोरी चलती रहेगी?
दूसरी ओर गांव का सरपंच जिसके कहे में भड़क उठने वाले गांव के लोग बिजली चोरी कर रहे हैं। जब उनके यहां मौतें होने लगीं तो गांव वाले चेतने लगे। लेकिन क्या इस बीच अशोक कुमार को नौकरी पर फिर से बहाल किया गया? क्या सचमुच उसने गांव की महिला से छेड़खानी की? क्या गांव वालों ने बिजली चोरी करना बंद कर दिया? क्या मौतें होना बंद हो गईं?
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आप और हम बचपन में एक खेल खेलते थे याद है? पोषम पा भाई पोषम पा डाकिए ने क्या किया? सौ रुपए की घड़ी चुराई। तो बस यही चोरी जितना गांव वाले करते हैं उतना ही बजट के मामले में स्टेज एप भी करता नजर आता है। चिराग भसीन हरियाणवी सिनेमा में एक ऐसे युवा हैं जिनके बनाए सिनेमा में आप अपार संभावनाएं खोज सकते हैं। बशर्ते उन्हें खुले हाथ रखकर देखा तो जाए। यह बात मैं पहले भी कह चुका हूं कि चिराग के बनाए सिनेमा को यदि स्टेज एप आगे ले जाना चाहता है। यदि हरियाणवी सिनेमा बनाने वाले अपने सिनेमा को आगे बढ़ता देखना चाहते हैं और चिराग को बतौर निर्देशक देखना चाहते हैं तो उन्हें बजट के मामले में खुले हाथ छोड़ना ही होगा।
वरना ‘छापा’ (Chhapa) जो बदनामी स्टेज के साथ-साथ बतौर निर्देशक चिराग भसीन की करने वाली है उसका अंजाम बेहद बुरा हो सकता है। शक्ल देखकर बजट का टीका लगाने वाले स्टेज जैसे निर्माताओं से हरियाणवी सिनेमा में बेहतरी की बात करना या उस गुंजाइश के बारे में सोचना भी गुनाह है। बजट का रोना भी इसलिए की आप जब इस फिल्म को देखते हैं तो इसमें पुलिस इंस्पैक्टर का किरदार निभाने वाला कोई सफाई कर्मचारी से ज्यादा नहीं दिखाई पड़ता। कांस्टेबल भी ऐसे हैं जैसे किसी ने उन्हें सब्जबाग दिखा दिए और वो खुद को असली कांस्टेबल मान बैठा।
जज साहब के किरदार की तो पूछिए ही मत और कोर्ट के सीन का क्या ही कहना। कायदे से यह फिल्म नहीं लानत है स्टेज के माथे पर और इसके अधिकांश किरदार उस लानत की मजबूती बयान करते हैं। बचना चाहिए चिराग जैसे निर्देशकों से ऐसे मजबूरी में काम करवाने वाले निर्माताओं से। अरे भाई आप निर्देशक हैं कि गाड़ी में जुते हुए कोई बैल जिसे जहां हांक दिया जाएगा चला जाएगा।
फिल्म में शिवराज गोयत, सोनू सीलन और चंद लम्हों के लिए आने वाली संगीता देवी के इतर प्रतिभा सिंह ठीक जमते हैं। सरपंच का बेटा खाम खां में तुर्रम खां बना फिरता नजर आता है। और ये कौन सा गांव है भाई जहां बिजली चोरी इतनी बड़ी संख्या में हो रही है और पुलिस के साथ-साथ बिजली विभाग भी बेचारा बना पड़ा है। भला बिजली विभाग वालों को कोई पीट दे ऐसी मजाल केवल सिनेमा ही आपको दिखा सकता है।
अभी भी समय बहुत बाकी है स्टेज वालों सुधार जाओ। हज़ारों दफा आपको कह चुकने के बाद भी जिस तरह आप दर्शकों का रुपया और कीमती समय जाया कर रहे हैं उसके लिए वे आपको कभी माफ़ नहीं करेंगे। हरियाणवी सिनेमा के नाम पर छापा रूपी इस बदनामी के दाग निकट भविष्य में यदि नजर आए दर्शकों को तो वे बाकी बची खुची आपकी इज्ज़त भी करना बंद कर देंगे।
अपनी रेटिंग – 2.5 स्टार
Release On Stage app- 10 August 2024
Tejas budget ke mamle to sahi bola stage ke liye. Chirag bhasin ki Partibha ko pankh Dene ki aawsykta h .ye bhot hi behtrin kam kr sakte hn . stage ko artist or Director ki pahchan karni hi hogi .bhai bhatijawad chhodkr . Agar achhe content chahien to .bhot bhot subhakamnen Tejas 🙏🙏
शुक्रिया आपका। आप हरियाणवी सिनेमा में एक अच्छे कलाकार हैं। शुभकामनाएं आपको भी।