वेब रिव्यू: पाताललोक के परमानेंट निवासी का एक और रोमांचक किस्सा है “पाताललोक सीजन 2”
Featured In IMDb Critic Reviews
ब्रॉस बैंड पर नरेन और बेनेडिक्ट का बनाया “Hope Floats” बजता है और उम्मीदों भरा हाथीराम चौधरी प्लेटफार्म पर दौड़ रहा है। सीरीज के सबसे प्रभावी दृश्यों में से है और ऐसे मुकाम पर आता है जिसे बता कर मैं आपका इंट्रेस्ट और सस्पेंस नहीं तोड़ना चाहूंगा।
“जब मिठाई अच्छी हो तो रेसिपी नहीं हलवाई का पता बताया जाता है।” तो हलवाई का नाम है “अमेजन प्राइम” और मिठाई है “पाताललोक सीजन 02” आठ एपिसोड्स लंबी ये सीरीज इस बार आपको उत्तर-पूर्व भारत के सुंदर राज्य नागालैंड के पाताललोक की सैर करवाती है।
दिल्ली के नागालैंड सदन में नागालैंड के प्रभावी नेता का सर काट कर निर्ममता से कत्ल कर दिया जाता है जो नागालैंड व्यापार समिट का मजबूत हिस्सा है। इसी केस की जांच से हमें पता लगता है कि हाथीराम चौधरी के ट्रेनी अंसारी जी अब एसीपी बन चुके हैं, इस केस की जांच उन्हें सौंपी जाती है। इधर हाथी राम अभी भी जमनापार के थाने में खुद को खपा रहा है कि तभी एक प्रवासी मजदूर के लापता होने की खबर उसके संज्ञान में आती है। अंसारी और हाथी दोनों के जूरिडिक्शन चेंज हो गए है पर दोनों अपने अपने केस की जांच के धागे एक दूसरे के केस से बंधे पाते है। और इस तरह शुरू होता है पाताललोक सीजन 2 के नए सफर का। मैं अपने रिव्यू में कभी भी कहानी खोलने पर जोर नहीं देता बल्कि दर्शक के समय और मनोरंजन भाव का सम्मान रखते हुए इस बात पर जोर देता हूं कि दर्शकों को इसे टाइम देना भी चाहिए कि नहीं, जिसका जवाब है “हां”।
तो 8 एपिसोड की ये सीरीज हिंदी, हरियाणवी, नागामी, और अंग्रेजी का भाषाई का भार अपने कंधे पर लेकर चलती है। जिसमें ठेठ हिंदी के दर्शक को सीरीज समझने में खासी दुविधा पेश आएंगी। बाकी अन्य भाषा डबिंग के लिए तकरीब सब काम आसान क्षेत्रीय डबिंग द्वारा कर दिया गया है। जयदीप अहलावत, तिलोत्तमा शोम, ईश्वाक सिंह, गुल पनाग और प्रशांत तमांग जैसे मंझे हुए कलाकारों के साथ क्षेत्रीय कलाकार भी बेहद अच्छा काम निभा कर सीरीज को ग्राहय बनाते हैं।
सीरीज अपनी पकड़ दर्शकों पर बनाए रखती है और बीच-बीच में लेखकों द्वारा किरदारों के हश्र के लिए गए कठोर फैसलों द्वारा दर्शकों को चकित भी करती है, पर फिर भी एक व्यापारिक राजनैतिक थ्रिलर की पृष्ठभूमि पर रचे गए इस क्राइम ड्रामा के कुछ चीजें है जो अतिवाद के कारण अखरती है मसलन कहानी के कोर आत्मा से न्याय हेतु नागामी भाषा के बहुत ज्यादा प्रयोग हिंदी पट्टी के दर्शकों को सबटाईटल की शरण में जाने के लिए मजबूर कर देता है। और मुझे लगता है की जयदीप अहलावत के किरदार का सेलिंग प्वाइंट मेकर्स ने उसके नेवर तो लूज एटीट्यूट से ज्यादा गाली बकने के स्वभाव को समझ लिया है। हाथीराम ने इस बार गालियों पर अपना नियंत्रण थोड़ा हल्का रखा है जो कि नोटिस होता है।
साथ ही सीरीज को अंत जिस मुकाम पर किया गया है वो एक सुखद अंत प्रतीत होता है जहां नरेन और बेनेडिक्ट के ब्रास बंद “hope floats” ने चार चांद लगा दिए है पर थोड़ा ध्यान से सुनने पर पता चलता है कि की नरेन और बेनेडिक्ट का बनाया ये पीस पाकिस्तानी बैंड “सोहनी बैंड” (sohani band) के ‘जिस दिन से पिया दिल लेके गए’ से ज्यादा मेल खा रहा है।
सीरीज की कलरिंग, एडिटिंग चुस्त की गई है। पर बुलेट शॉट इफेक्ट्स कहीं कहीं नकली महसूस होते है खास तौर पर तिलोत्तमा शोम पर फिल्माए गए सीक्वेंस पर। पिछली बार सीरीज ने मशीन और पुर्जे का उदाहरण देकर अपना क्लोजर स्टेटमेंट रखा था इस बार नाव और छेद का उदाहरण क्लोजर स्टेटमेंट में परोसा गया है जो सीरीज के मूल भाव को दर्शकों के सामने ईमानदारी से रखता है। इस प्रकार सीरीज निश्चय ही थोड़ी बहुत कमी के बावजूद मास ऑडियंस को पसंद आने वाली है।
मेरी तरफ से 5 में से 3.5 स्टार
नोट- यह रिव्यू गंगानगर वाला के लिए सिनेमा की गहरी समझ रखने वाले मित्र गौरव चौधरी ने लिखा है।
पाताललोक सीरीज के सीजन 2 को इस लिंक से देखा जा सकता है।