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रिव्यू- ‘मक्कार’ मर्दों की हकीकत

सिनेमा में मर्दों की मक्कारी को निर्माताओं, निर्देशकों ने अपने-अपने ढंग से बयाँ किया है। लेकिन फिलहाल फिल्म फेस्टिवल्स में काफी सराही जा रही अनिल आनंद की लघु फिल्म मर्दों की मक्कारी को किस तरह दिखाती है देखिए आज का यह रिव्यू-  ‘मक्कार’ मर्दों की हकीकत

इन मक्कार मर्दों को हर चीज़ पर कब्जा कर लेने की हवस होती है। हम औरतों को भी ये अपनी जायदाद समझते हैं। ‘मक्कार’ शॉर्ट फिल्म का एक मात्र यह संवाद इस पूरी फिल्म की तासीर बयां कर देता है। इस देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हमेशा से मर्दों की मक्कारी की बातें औरतें करती आईं हैं। औरतों के नजरिए से देखा जाए तो यह हकीकत भी है। और इस पूरी करीब 20 मिनट लंबी फिल्म में दो पात्रों के माध्यम से जिन मक्कार मर्दों की मक्कारी की हकीकत दिखाई गई है वह आपके और हमारे ही समाज का एक कड़वा सच भी है।

अब मर्द ही अपनी मक्कारी को क्यों मानने लगा। फिर हमेशा से हमारे। भारतीय समाज में जिस पितृसत्तात्मक समाज ने कब्जा जमाकर रखा हो वहां ऐसी फिल्में बहुतेरे मर्दों के हलक से भला नीचे कैसे उतर सकेगी! एक औरत अपने मर्द की मक्कारी की बातें अस्पताल में इलाज के दौरान दूसरी औरत से सुना रही है। दोनों के बीच उम्र का अच्छा खासा फासला होने के बाद भी जब दूसरी औरत को अपने मर्द की मक्कारी दिखाई पड़ती है तब फिल्म की पूरी कहानी महिला प्रधान होने के साथ-साथ महिलाओं की नजर से देखने की पैरवी भी करने लगती है।

लेखक, निर्माता, निर्देशक ‘अनिल कुमार आनंद’ ने इस छोटी सी फिल्म से उस महिला प्रधान कहानी को छुआ है जो गाहे-बगाहे हमें बड़ी फिल्मों में भी नजर नही आती। नादिरा बब्बर, युविका चौधरी, वीरेंद्र सक्सैना, राहत शाह काजमी, अली ईरानी जैसे थियेटर के कलाकारों ने निर्देशक अनिल की बनाई फिल्म को जो मुकाम दिया है वह भी काबिले तारीफ है।

इंडिपेंट डायरेक्टर्स की कई दुश्वारियां रहती हैं जिनके बारे में मैं पहले भी कई दफा कह-लिख चुका हूं। लेकिन यहां अनिल बतौर निर्देशक उन दुश्वारियों से बड़ी सावधानी से जूझते हैं। यही वजह है कि कई मर्दों को यह बनावटी महिला प्रधान फिल्म लग सकती है। लेकिन क्या कोई फिल्म या कला को किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर देखा जाना चाहिए?

अगर आप भी महिलाओं को लेकर किसी तरह के पूर्वागढ़ से ग्रस्त हैं तो ऐसी फिल्में देखने से गुरेज करिए और यदि आप हर फिल्म, हर कला, हर लेखनी को बिना पूर्वाग्रह के देख पाते हैं, पढ़ बातें हैं तब ऐसी फिल्में और ऐसी कलाएं सार्थक हो जाती हैं। फिल्म फेस्टिवल्स में कहीं यह फिल्म नजर आये तो अवश्य देखिएगा नहीं तो रिलीज होने का इंतजार करें।

अपनी रेटिंग …. 4 स्टार

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2 Comments

    1. शुक्रिया अभी फिल्म फेस्टिवल्स में चल रही है कई जगहों पर रिलीज होने का इंतजार करें

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